ठाणे, 3 जुलाई : ठाणे की एक अदालत ने 2019 में 12 वर्षीय नाबालिग के साथ दुष्कर्म के जुर्म में एक दिव्यांग समेत दो लोगों को 20 वर्ष के कठोर कारावास की सजा सुनाई है. सजा सुनाते हुए अदालत ने कहा कि दोषियों ने बच्ची का पूरा जीवन बर्बाद कर दिया, जो अपूरणीय क्षति है. विशेष पॉक्सो अदालत की जज रूबी यू मालवंकर ने 29 जून को मामले में आदेश परित करते हुए दोनों दोषियों पर 26-26 हजार रुपये अर्थदंड भी लगाया है.
आदेश की प्रति बुधवार को उपलब्ध कराई गई. जज ने दोषियों से मिलने वाली जुर्माने की राशि पीड़िता को मुआवजे के रूप में देने के निर्देश दिए. उन्होंने पीड़िता को मुआवजा देने के लिए फैसला जिला विधिक सेवा प्राधिकरण (डीएलएसए) के पास भेजने के भी निर्देश दिए. विशेष लोक अभियोजक रेखा हिवराले ने अदालत को बताया कि पीड़िता और उसके भाई-बहन महाराष्ट्र के ठाणे शहर के कलवा इलाके में अपने दादा-दादी के साथ रहते थे. अक्टूबर 2019 में पीड़िता अपनी सहेली के साथ एक पार्क में गई, जहां एक आरोपी ने उसे लालच दे कर फुसलाया. आरोपी ने शारीरिक रूप से दिव्यांग दूसरे आरोपी के घर ले जाकर पीड़िता के साथ दुष्कर्म किया और शोर मचाने पर उसका मुंह बंद कर दिया. आरोपी ने उसे अपराध के बारे किसी को कुछ बताने पर जान से मारने की धमकी भी दी. उसने पीड़िता को धमकाकर कई बार उसके साथ दुष्कर्म किया. यह भी पढ़ें : 6 साल की बच्ची से रेप और हत्या के आरोपी को झारखंड हाई कोर्ट ने किया बरी, पॉक्सो कोर्ट ने सुनाई थी फांसी की सजा
तीन दिसंबर 2019 को पीड़िता ने शिकायत दर्ज कराई जिसके बाद दोनों आरोपियों को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. अदालत ने आरोपियों को यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम सहित प्रासंगिक कानूनी प्रावधानों के तहत दोषी ठहराया. जज ने आदेश में कहा, "अभियोजन पक्ष की ओर से प्रस्तुत साक्ष्यों के आधार पर, अपराध में दोनों आरोपियों की संलिप्तता स्पष्ट है." उन्होंने कहा कि हालांकि एक आरोपी ने "जबरन यौन अपराध" करने में व्यक्तिगत रूप से भाग नहीं लिया था, लेकिन उसने अपराध में मदद की. जज के अनुसार, वह पीड़िता को यह जानते हुए भी हर बार दूसरे आरोपी के घर ले गया कि वहां पीड़िता के साथ ‘जघन्य अपराध’ होगा. जज ने कहा कि दिव्यांग होने के बावजूद आरोपी ने अपराध में मदद की.
अदालत ने कहा, "मामले के तथ्यों और परिस्थितियों, प्रस्तुत साक्ष्यों और प्रस्तुत तर्कों के आलोक में प्रतीत होता है कि दोनों आरोपियों ने एक गंभीर और जघन्य अपराध किया तथा 12 साल की एक बच्ची का पूरा जीवन बर्बाद कर दिया. यह पीड़िता के लिए एक अपूरणीय क्षति है जिसकी भरपाई नहीं की जा सकती." उन्होंने कहा कि इसके साथ ही, सजा सुनाते समय इन तथ्यों पर विचार किया जाना भी आवश्यक है कि दोनों आरोपी युवा हैं और उनमें से एक दिव्यांग भी है, . जज ने कहा, "अतः अदालत के विचार में आजीवन कारावास या मृत्युदंड की सजा देने के बजाय, अभियुक्तों को जुर्माना सहित कम से कम सजा दी जानी चाहिए और इससे न्याय का उद्देश्य पूरा होना चाहिए."