फैसले में खामी दूर करने को विधायिका कानून बना सकती है, पर इसे खारिज नहीं कर सकती: प्रधान न्यायाधीश
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नयी दिल्ली, चार नवंबर भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) डी. वाई. चंद्रचूड़ ने शनिवार को कहा कि न्यायिक आदेश की खामी दूर करने के लिए विधायिका नया कानून लागू करने के विकल्प का इस्तेमाल कर सकती है, लेकिन उसे प्रत्यक्ष रूप से खारिज नहीं कर सकती है. न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने यहां ‘हिंदुस्तान टाइम्स लीडरशिप समिट’ में कहा कि सरकार के विभिन्न अंगों के उलट न्यायाधीश इस पर गौर नहीं करते हैं कि जब वे मुकदमों का फैसला करेंगे तो समाज कैसी प्रतिक्रिया देगा.

उन्होंने कहा, ‘‘अदालत का फैसला आने पर विधायिका क्या कर सकती है और क्या नहीं, इसके लिए विभाजनकारी रेखा है. अगर किसी विशेष मुद्दे पर फैसला दिया जाता है और इसमें कानून में खामी का जिक्र किया जाता है तो विधायिका उस खामी को दूर करने के लिए नया कानून लागू कर सकती है.’’ सीजेआई ने कहा, ‘‘विधायिका यह नहीं कह सकती कि हमें लगता है कि फैसला गलत है और इसलिए हम फैसले को खारिज करते हैं. विधायिका किसी भी अदालत के फैसले को सीधे खारिज नहीं कर सकती है.’’

उन्होंने यह भी कहा कि न्यायाधीश मुकदमों का फैसला करते समय संवैधानिक नैतिकता का अनुसरण करते हैं न कि सार्वजनिक नैतिकता का. उन्होंने कहा, ‘‘तथ्य यह है कि न्यायाधीश निर्वाचित नहीं होते हैं, (और) यह हमारी कमी नहीं, बल्कि हमारी ताकत है."

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि भारत का सर्वोच्च न्यायालय जनता की अदालत है, जिसका उद्देश्य लोगों की शिकायतों को समझना है और यह (न्यायालय) जो करता है वह अमेरिका के सर्वोच्च न्यायालय से बहुत भिन्न है.

उन्होंने कहा, ‘‘हमने इस साल कम से कम 72,000 मुकदमों का निस्तारण किया है और अभी दो महीने बाकी हैं. एक अदालत के रूप में हमारे लिए यह महत्वपूर्ण है कि हम जो काम करते हैं उसके संदर्भ में नागरिकों का विश्वास बना रहे.’’ न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने कहा कि न्यायपालिका में प्रवेश स्तर पर संरचनात्मक बाधाएं हैं. उन्होंने कहा कि यदि समान अवसर उपलब्ध होंगे तो अधिक महिलाएं न्यायपालिका में आएंगी.

उन्होंने कहा, ‘‘हमें समावेशी अर्थ में योग्यता को पुन: परिभाषित करने की आवश्यकता है। यदि आप न्यायपालिका में प्रवेश स्तर पर समान अवसर पैदा करते हैं तो अधिक महिलाएं इसका हिस्सा बनेंगी.’’ उन्होंने कहा, "हमें समावेशी अर्थ में योग्यता को फिर से परिभाषित करने की आवश्यकता है. हां, यह सही है कि हमारे पास उच्च न्यायपालिका में पर्याप्त महिलाएं नहीं हैं क्योंकि न्यायिक प्रणाली के प्रवेश स्तर में संरचनात्मक बाधाएं हैं. अधिकांश परीक्षाएं अंग्रेजी में आयोजित की जाती हैं तथा शहर केंद्रित होती हैं.’’

उन्होंने कहा, ‘‘उदाहरण के लिए, वरिष्ठ अधिवक्ता के कक्ष में प्रवेश योग्यता के आधार पर नहीं होता है और यह पुराने लोगों का क्लब है। यदि आप महिलाओं के लिए समान अवसर प्रदान करते हैं, तो वे प्रवेश पाने में सक्षम हैं, (फिर) आपके पास न्यायपालिका में अधिक महिलाएं होंगी.’’ चंद्रचूड़ ने कहा कि अदालती प्रक्रिया को समझने या न्याय तक पहुंचने में महत्वपूर्ण बाधाओं में से एक है.

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