मुंबई, 15 अप्रैल कोविद -19 वायरस को लेकर देश भर में ‘लॉकडाऊन’ के समय जहां किसान अपनी उपज को बेचने और उसका समुचित मूल्य प्राप्त करने के लिए जूझ रहे हैं, वहीं इस स्थिति को कृषि उपजों की विपणन व्यवस्था में सुधार के एक अवसर के रुपय में देखा जा रहा है। एक ताजा रपट में कहा गया है कि किसान देश भर में कृषि जिंसों की आनलाईन बिक्री और कारोबार का तरीका चुनें तो यह समस्या एक संभावित बेहतर समाधान का रास्ता भी हो सकती है।
साख निर्धारक एजेंसी एक्वाइट रेटिंग्स एंड रिसर्च की एक रिपोर्ट के मुताबिक, मौजूदा लॉकडाउन के बीच रबी फसल की कटाई के मौसम की शुरुआत देश भर में कृषि वस्तुओं की ऑनलाइन बिक्री और व्यापार के लिए एक अच्छा मौका बनकर आया है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि हालांकि, केंद्र और राज्य सरकारों के पास न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) का एक तंत्र है, लेकिन अक्सर इन सरकारी एजेंसियों की खरीद की दिक्कतों को देखते हुए, किसानों को एमएसपी से कम दर पर खुले बाजार में अपनी उपज बेचने के लिए मजबूर किया जाता है।
इसने आगे कहा गया है कि ऐसी वस्तुओं की उपलब्धता में पर्याप्त अंतर-क्षेत्रीय असमानता के साथ ऐसी वस्तुओं की उपभोक्ता कीमतें देश भर में असमान हैं।
इसके अलावा, रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में कृषि उत्पादों के विपणन के लिए कृषि उपज बाजार समिति (एपीएमसी) संरचना की आंतरिक कमजोरी की वजह से भारत में कृषि उपज की आपूर्ति में दिक्कत है और मूल्य कहीं अधिक कहीं कम होते हैं।
एक्वाइट रेटिंग्स एंड रिसर्च के मुख्य विश्लेषक अधिकारी सुमन चौधरी ने कहा, ‘‘स्पष्ट है कि, एपीएमसी प्रणाली ने भारत के कृषि व्यापार को अत्यधिक क्षेत्र केंद्रित बना दिया है और राष्ट्रीय कृषि नीलामी मंच के विकास में बाधा बन रहा है। हमारी राय में, इस समस्या को इलेक्ट्रॉनिक राष्ट्रीय कृषि बाजार या ‘ई-नाम’ मंच का लाभ उठाकर हल किया जा सकता है
एक अनुमान के मुताबिक, अप्रैल 2016 में शुरु होने के बाद से अब तक भारत के कुल खाद्यान्न उत्पादन (तिलहनों) विपणन में ई-नाम की हिस्सेदारी औसतन 8.6 प्रतिशत ही है।
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