मुंबई, 25 नवंबर: विदेश मंत्री एस जयशंकर ने शनिवार को कहा कि अंतराराष्ट्रीय संबंधों को भारतीय विशिष्टताओं के अनुरूप स्वरूप दिया जाना चाहिए. उन्होंने भारत की सांस्कृतिक तथा ज्ञान संबंधी धरोहर पर गौर करने के लिए अधिक समय दिये जाने की आवश्यकता पर बल दिया. वह पुणे में एक शैक्षणिक संस्थान द्वारा आयोजित ‘भारत की सामरिक संस्कृति पर अंतरराष्ट्रीय संबंध सम्मेलन: वैश्विक और क्षेत्रीय चुनौतियों का समाधान’ कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे.
उन्होंने कहा, ‘‘मेरा सवाल भारतीय सामरिक संस्कृति विकसित करने को लेकर है; यदि हमें भारतीय विशिष्टताओं के साथ अंतरराष्ट्रीय संबंध बनाने हैं, तो क्या यह आवश्यक नहीं है कि हम वास्तव में संस्कृति, ज्ञान, इतिहास और परंपराओं संबंधी अपनी धरोहर पर गौर करने के लिए अधिक समय, ध्यान और ऊर्जा लगाये.’’ जयशंकर का लंबा राजनयिक करियर रहा है. मंत्री ने अपनी इस बात पर बल देने के लिए वर्षों पहले अफगानिस्तान के बारे में अपने अमेरिकी समकक्ष अधिकारियें के साथ अपनी बातचीत का हवाला दिया. उन्होंने कहा कि उन्होंने पाया कि अफगानिस्तान में 20 साल रहने के बाद भी, उस देश के बारे में अमेरिकी समझ अफगानिस्तान के बारे में ब्रिटिश विमर्श के अनुसार ढली हुई थी.
उन्होंने कहा कि जिन लोगों ने अपना ‘‘जीवनकाल’’ अफगानिस्तान में बिताया, उन्होंने महाराजा रणजीत सिंह के साम्राज्य के महान सिख योद्धा हरि सिंह नलवा जैसे व्यक्ति के बारे में कभी नहीं सुना था। नलवा अफगानिस्तान की सीमा पर सिख सेना के प्रमुख कमांडर थे.
जयशंकर ने कहा, ‘‘और यह आपको कुछ बताता है. यह आपको बताता है कि उन्होंने भूगोल को एक सांस्कृतिक चश्मे से देखा है.
जब तक हम अपने लेंस को सही जगह पर नहीं रखेंगे, वे इसे कभी भी उस तरह से नहीं देखेंगे जिससे हमारा हित हो.’’ उन्होंने कहा कि पश्चिमी बुद्धिजीवियों को ‘‘5000 साल पुराने चीनी इतिहास’’ को स्वीकार करने में कोई समस्या नहीं है, लेकिन उनमें से कई भारत को वही ‘‘विशेषाधिकार’’ और महत्व नहीं देंगे. उन्होंने कहा, ‘‘वास्तव में, इसका एक उदाहरण स्वयं चर्चिल थे, जिन्होंने कहा था कि भारत भूमध्य रेखा से अधिक कोई देश नहीं है.’’
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