प्रयागराज, सात मई मथुरा के कृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह विवाद मामले में हिंदू पक्ष की ओर से रीना एन. सिंह ने मंगलवार को दलील दी कि किसी भी संपत्ति पर अतिक्रमण करना, उसकी प्रकृति बदलना और बिना स्वामित्व के उसे अपनी संपत्ति बताना वक्फ का चरित्र रहा है। उन्होंने कहा कि इस व्यवस्था की अनुमति नहीं दी जा सकती है।
उन्होंने कहा कि वाद की पोषणीयता पर प्रारंभिक आपत्ति उठाते हुए मुस्लिम पक्ष की ओर से कहा गया कि 1968 में एक समझौते के तहत यह संपत्ति उनके पक्ष में आई, लेकिन उस समझौते में स्वामी पक्षकार नहीं था। उन्होंने कहा कि संपत्ति का स्वामी देवता हैं, लेकिन देवता को पक्षकार नहीं बनाया गया।
उन्होंने कहा कि पूजा स्थल अधिनियम और वक्फ अधिनियम के प्रावधान यहां लागू नहीं होते और यह वाद पोषणीय (सुनवाई योग्य) है। उन्होंने कहा कि गैर पोषणीयता के संबंध में अर्जी पर साक्ष्यों को देखने के बाद ही निर्णय किया जा सकता है।
इस मामले में सुनवाई न्यायमूर्ति मयंक कुमार जैन की अदालत द्वारा की जा रही है। अदालत ने इस मामले की अगली सुनवाई 15 मई को करने का निर्देश दिया।
इससे पूर्व, दो मई को, हिंदू पक्ष की ओर से दलील दी गई थी कि पूजा स्थल कानून, 1991 के प्रावधान इस मामले में लागू नहीं होंगे क्योंकि इस कानून में धार्मिक चरित्र परिभाषित नहीं किया गया है। उसने कहा कि किसी स्थान या ढांचे का धार्मिक चरित्र केवल साक्ष्य से ही निर्धारित किया जा सकता है जिसे दीवानी अदालत द्वारा ही तय किया जा सकता है।
हिंदू पक्ष के वकील ने ज्ञानवापी मामले में पारित निर्णय का भी हवाला दिया था जिसमें अदालत ने कहा था कि धार्मिक चरित्र एक दीवानी अदालत द्वारा ही तय किया जा सकता है।
यह वाद शाही ईदगाह मस्जिद को हटाने के बाद जमीन का कब्जा लेने और मंदिर बहाल करने के लिए दायर किया गया है।
राजेंद्र
(यह सिंडिकेटेड न्यूज़ फीड से अनएडिटेड और ऑटो-जेनरेटेड स्टोरी है, ऐसी संभावना है कि लेटेस्टली स्टाफ द्वारा इसमें कोई बदलाव या एडिट नहीं किया गया है)