नयी दिल्ली, 18 जुलाई एक नए अध्ययन के अनुसार हफ्ते भर की अनियमित नींद से लोगों में ‘टाइप 2’ मधुमेह का खतरा 34 प्रतिशत तक बढ़ सकता है।
हालांकि शोधकर्ताओं ने माना कि सोने की सात दिनों की अवधि का आकलन करने से दीर्घकालिक नींद के ‘पैटर्न’ का पता नहीं चल सकता है, लेकिन उन्होंने कहा कि जीवनशैली में इस कारक को बदलने से ‘टाइप 2’ मधुमेह के खतरे को कम करने में मदद मिल सकती है।
‘डायबिटीज केयर’ नामक पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन के मुताबिक, जो लोग अधिक समय तक सोते हैं और जिनमें मधुमेह का आनुवांशिक जोखिम कम होता है, उनमें यह संबंध “अधिक स्पष्ट” पाया गया है।
अमेरिका में ब्रिघम एवं महिला अस्पताल में शोधार्थी और अध्ययन की लेखिका सिना कियानेर्सी ने कहा कि अध्ययन ‘टाइप 2’ मधुमेह को कम करने की रणनीति के रूप में नींद के ‘पैटर्न’ के महत्व को रेखांकित करता है।
शोधकर्ताओं ने ब्रिटेन बायोबैंक डेटासेट से 84,000 से अधिक प्रतिभागियों की निगरानी की, जिनकी औसत आयु 62 वर्ष थी और वे शुरू में मधुमेह से पीड़ित नहीं थे। सात वर्षों तक उन्होंने मेडिकल रिकॉर्ड के माध्यम से चयापचय रोग के विकास पर नजर रखी।
शोधार्थी यह पता लगाना चाहते थे कि क्या अनियमित नींद शरीर की जैविक घड़ी को बाधित करती है और मधुमेह को बढ़ावा दे सकती है।
टीम ने पाया कि जिन व्यक्तियों की नींद की अवधि में 60 मिनट से अधिक का परिवर्तन होता है, उनमें मधुमेह का खतरा उन लोगों की तुलना में 34 प्रतिशत अधिक होता है जिनकी नींद की अवधि में 60 मिनट से कम का बदलाव होता है।
हालांकि जीवनशैली, स्वास्थ्य स्थितियों, पर्यावरणीय कारकों और शरीर में वसा को समायोजित करने के बाद, इन व्यक्तियों में खतरा घटकर 11 प्रतिशत रह गया।
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