पिथौरागढ़, नौ दिसंबर उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले के जौलजीबी में वनराजि जनजाति समुदाय की एक महिला के साथ कथित सामूहिक दुष्कर्म तथा दो दिन बाद उसकी मौत होने की घटना की पुलिस ने जांच शुरू कर दी है ।
क्षेत्र के पुलिस क्षेत्राधिकारी परवेज अली ने बताया कि मामले के संज्ञान में आते ही उसकी छानबीन शुरू कर दी गयी है । उन्होंने कहा, ‘‘स्थानीय समाचारपत्रों के जरिए हमें मामले के बारे में पता चला। शुरूआती जांच में पता चला कि महिला की जौलजीबी बाजार के पास स्थित किमखोला गांव में उसके घर में 25 नवंबर को मृत्यु हो गयी और उसी दिना गांव वालों ने उसका अंतिम संस्कार कर दिया । जबकि उसकी मौत के 15 दिन बाद उससे कथित दुष्कर्म के आरोप लगाए गए हैं।’’
अली ने बताया कि मामले के संबंध में अभी तक पुलिस में कोई तहरीर या प्राथमिकी दर्ज नहीं की गयी है। उन्होंने कहा कि गांव में भेजी गयी पुलिस टीम के सामने भी अब तक ऐसा कोई व्यक्ति नहीं आया जिसने उस महिला के साथ अपराध होते या उसे सड़क किनारे बेसुध पड़ा देखा हो ।
उन्होंने कहा, ‘‘मेडिकल जांच के लिए महिला का शव मौजूद नहीं है और इसके बावजूद इसे कथित दुष्कर्म की घटना के रूप में पेश किया गया। अगर कोई प्रमाण नहीं मिला तो ऐसा करने वाले व्यक्तियों के खिलाफ हम मामला दर्ज करेंगे।’’
कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं के हवाले से आ रही खबरों के अनुसार, किमखोला गांव की रहने वाली 32 वर्षीया महिला से 23 नवंबर की शाम को जौलजीबी बाजार से घर लौटते समय कथित रूप से कुछ कार सवार लोगों ने सामूहिक दुष्कर्म किया और बेसुध हालत में सड़क किनारे छोड़ दिया।
सामाजिक कार्यकर्ताओं ने बताया कि उसके गांव वाले उसे घर लाए जहां दो दिन तक बेहोश रहने के बाद उसकी मृत्यु हो गयी जिसके बाद उसी दिन काली नदी के किनारे गांव वालों ने उसका अंतिम संस्कार कर दिया ।
पिछले 30 सालों से वनराजि समुदाय के बीच काम करने वाले गैर सरकारी संगठन 'अर्पण' की निदेशक रेणु ठाकुर ने कहा कि इस जनजाति के लोग बहुत शर्मीले होते हैं और इस कारण पुलिस के पास नहीं गए होंगे।
उन्होंने कहा,"वनराजि एक शर्मीली जनजाति है और ये लोग गैर वनराजियों के साथ भी कोई मेलजोल नहीं रखते। अगर किसी ने अपराध होते देखा भी होगा तो वह पुलिस के पास जाने की बात से ही घबरा गया होगा।’’
वनराजि जनजाति उत्तराखंड के जंगलों में रहने वाली जनजाति हैं जो कुछ समय पहले तक गुफाओं में रहती थी। अब धीरे-धीरे इनका रहन सहन अन्य लोगों की तरह हो गया है लेकिन अभी भी यह सबसे दूर ही रहती है। इनकी जनसंख्या भी सिमटती जा रही है और धारचूला तथा मुनस्यारी ब्लॉक के नौ गांवों में ही इस जनजाति के लोग बचे हैं।
सं दीप्ति
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