मथुरा (उप्र), 20 अक्टूबर उत्तर प्रदेश के वृन्दावन में सोमवार से आयोजित होने वाली 16वीं अंतरराष्ट्रीय ‘पैराट्यूबरकुलोसिस’ संगोष्ठी (आईसीपी-2024) में मवेशियों सहित जुगाली करने वाले पशुओं को प्रभावित करने वाली बीमारी की पहचान, निदान और नियंत्रण पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।
यह संगोष्ठी पहली बार किसी एशियाई देश में आयोजित की जा रही है। यह संगोष्ठी 21 से 25 अक्टूबर तक वृन्दावन में आयोजित होगी। इसका आयोजन मथुरा के जीएलए विश्वविद्यालय के जैव प्रौद्योगिकी विभाग अमेरिका स्थित ‘पैराट्यूबरकुलोसिस एसोसिएशन’ के सहयोग कर रहा है।
संगोष्ठी के आयोजकों के अनुसार, इस संगोष्ठी में रोमंथी पशुओं से इंसानों में तेजी से फैल रही आंतों की टीबी की पहचान, निदान और रोकथाम विषयों पर भी विचार की जाएगी।
एक बयान के मुताबिक, इसके लिए एक दिन विशेष तौर पर ‘जूनोटिक’ (जानवरों से इंसानों में फैलने वाली) बीमारियों पर विचार के लिए रखा गया है, जिसमें देश और विदेश के वैज्ञानिक अब तक हुई शोधों की जानकारी देंगे।
संगोष्ठी के आयोजक एवं जीएलए विवि के जैव प्रौद्योगिकी विभागाध्यक्ष प्रो. शूरवीर सिंह बताया, "पैराट्यूबरकुलोसिस को जॉन्स रोग के रूप में भी जाना जाता है। यह एक पुरानी, संक्रामक, लाइलाज जीवाणु रोग है जो मवेशियों, भेड़, बकरियों, भैंस और ऊंटों जैसे जुगाली करने वाले जानवरों की उत्पादकता को प्रभावित करता है।''
उन्होंने यह भी बताया कि अब यह जीवाणु पशुओं के दूध के माध्यम से इंसानों में भी तेजी से फैलता जा रहा है जिससे इंसानों में जॉन्स रोग पनपने के प्रमाण सामने आए हैं।
सिंह ने कहा कि इसे नियंत्रित करना इंसानों के स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के लिए अत्यंत आवश्यक है।
उन्होंने कहा कि जैसा कि यह माना जाता रहा है कि ‘पाश्चराइज्ड’ दूध इंसानों के लिए पूरी तरह से सुरक्षित है, लेकिन यह धारणा इस जीवाणु के कारण गलत साबित हो रही है।
सिंह ने बताया कि संगोष्ठी में भाग लेने के लिए 18 देशों के 53 प्रतिनिधि वृन्दावन पहुंच चुके हैं।
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