वाशिंगटन, 14 अक्टूबर अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (आईएमएफ) ने बुधवार को कहा कि कोविड-19 संकट के कारण व्यय में बढ़ोतरी से भारत में सार्वजनिक कर्ज का अनुपात 17 प्रतिशत बढ़कर सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के करीब 90 प्रतिशत के स्तर पर पहुंच सकता है। एक दशक से यह जीडीपी के करीब 70 प्रतिशत के आस पास बना हुआ था।
आईएमएफ के राजकोषीय मामलों के प्रभाग के निदेशक विटोर गैसपर ने कहा, ‘‘हमारे अनुमान में कोविड-19 के कारण सार्वजनिक व्यय में वृद्धि और कर राजस्व तथा आर्थिक गतिविधियों में गिरावट से भारत में सार्वजनिक कर्ज 17 प्रतिशत बढ़कर जीडीपी का 90 प्रतिशत के करीब जाएगा।’’
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उन्होंने कहा, ‘‘इसके 2021 में स्थिर होने का अनुमान है और अनुमान अवधि 2025 के अंत तक धीरे-धीरे घटेगा। देखा जाए तो भारत में सार्वजनिक खर्च का जो प्रतिरूप है, वह दुनिया के लगभग सभी देशों के जैसा ही है।’’
गैसपर ने कहा कि ‘‘ यह दिलचस्प है कि कर्ज अनुपात जीडीपी के 70 प्रतिशत पर पिछले दशक से भी अधिक समय से स्थिर है।’’
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भारत की राजकोषीय स्थिति के आकलन के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि भारत 1991 में आर्थिक उदारीकरण के बाद से दुनिया की वृद्धि के लिहाज से महत्वपूर्ण स्रोत है।
गैसपर ने कहा कि देश की वास्तविक जीडीपी वृद्धि दर 1991 से 2019 के दौरान औसतन 6.5 प्रतिशत रही। वहीं वास्तविक जीडीपी प्रति व्यक्ति इस दौरान चार गुना हुई है। वृद्धि के मोर्चे पर इस शानदार प्रदर्शन के कारण करोड़ों लोग गरीबी रेखा से बाहर आ सके।
उन्होंने कहा कि अत्यंत गरीबी में रहने वाले यानी क्रय शक्ति समता के आधार पर 1.90 डॉलर से कम कमाने वालों (अंतरराष्ट्रीय गरीबी रेखा) का प्रतिशत 1993 में 45 था जो 2015 में घटकर 13 प्रतिशत पर आ गया।
गैसपर ने कहा कि भारत ने 2015 तक गरीबी में 1990 के स्तर से आधी कमी लाकर सहस्त्राब्दी विकास लक्ष्य हासिल किया है।
आईएमएफ अधिकारी ने कहा, ‘‘ भारत ने अन्य क्षेत्रों में भी शानदार काम किया है। प्राथमिक स्कूलों में दाखिला लगभग वैश्विक स्तर के बराबर है। नवजात मृत्यु दर 2000 के मुकाबले आधी हुई है। पेय जल और स्वच्छता, बिजली तथा सड़कों की पहुंच काफी बेहतर हुई है।’’
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