नयी दिल्ली, पांच दिसंबर प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्यमंत्री जितेंद्र सिंह ने बृहस्पतिवार को राज्यसभा में कहा कि भारत के परमाणु संयंत्र सुरक्षा के उच्चतम मानकों का पालन कर रहे हैं और इन संयंत्रों से उत्सर्जित विकिरण में प्रगतिशील साक्ष्य-आधारित गिरावट आई है।
प्रश्नकाल के दौरान पूरक प्रश्नों का उत्तर देते हुए उन्होंने कहा कि कुडनकुलम और कलपक्कम परमाणु संयंत्रों सहित विभिन्न स्थानों पर विकिरण का स्तर कम हुआ है।
मंत्री ने कहा, ‘‘परमाणु ऊर्जा विभाग में हम पहले सुरक्षा के नियम का पालन करते हैं और उत्पादन बाद में।’’
उन्होंने देश में परमाणु संयंत्रों की सुरक्षा का जिक्र करते हुए कहा कि आश्वस्त होने के पर्याप्त कारण हैं।
सिंह ने कांग्रेस सांसद जयराम रमेश के उस बयान पर चुटकी ली जिसमें उन्होंने दावा किया था कि परमाणु संयंत्र स्थापित करने में 10 साल लगते हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘हमने न केवल नए संयंत्र स्थापित किए हैं बल्कि उन संयंत्रों को भी चालू किया है जो उनके द्वारा अधूरे छोड़ दिए गए थे, जिनमें कुडनकुलम संयंत्र भी शामिल है।’’
रमेश ने सवाल किया कि परमाणु ऊर्जा नियामक बोर्ड 40 साल पहले बनाया गया था, तो क्या सरकार एक स्वतंत्र परमाणु ऊर्जा नियामक स्थापित करने के बारे में विचार कर रही है?
इस पर सिंह ने कहा कि देश के हित में सरकार सभी कदम उठाएगी। उन्होंने कहा कि सुरक्षा पर पहले और उत्पादन पर इसके बाद ध्यान दिया जाता है। उन्होंने पूर्ववर्ती संप्रग सरकार पर तंज करते हुए कहा कि वर्तमान सरकार न केवल प्रतिष्ठान की योजना बनाती है बल्कि उन्हें पूरा भी करती है और उनका क्रियान्वयन भी करती है।
उन्होंने कहा कि देश में अंतरराष्ट्रीय स्तर की निगरानी एजेंसी है।
मंत्री ने कहा, ‘‘जहां तक सुरक्षा का सवाल है, स्थल के चयन के समय परमाणु ऊर्जा नियामक बोर्ड के दिशानिर्देशों का पालन किया जाता है।’’
उन्होंने कहा कि संयंत्रों की समय-समय पर समीक्षा और जांच भी की जाती है।
सिंह ने सदन को बताया, हमने एक सर्वेक्षण के अनुसार भारतीय संयंत्रों की सुरक्षा को मापा है।
उन्होंने कहा, ‘‘पिछले 10 सालों में विकिरण का स्तर कम हुआ है, जिसमें कुडनकुलम और कलपक्कम संयंत्र शामिल हैं। धीरे-धीरे, संयंत्रों द्वारा उत्सर्जित विकिरण में साक्ष्य के आधार पर गिरावट आई है।’’
उन्होंने यह भी कहा कि पिछले 10 वर्षों में, कर्नाटक में केजीएस-1 संयंत्र ने 962 दिनों के निरंतर संचालन का रिकॉर्ड पूरा किया है। इसलिए, भारत जिसके बारे में माना जाता था कि परमाणु ऊर्जा की क्षमता बहुत निराशाजनक है, अब अन्य देशों के लिए मानदंड तय कर रहा है।
मंत्री ने कहा कि इसी तरह तारापुर संयंत्र ने परिचालन के 50 वर्ष पूरे कर लिए हैं, जो अपने आप में एक रिकॉर्ड है।
उन्होंने कहा, ‘‘पहला स्वदेशी प्रेशराइज्ड वाटर रिएक्टर गुजरात के ककरापुर में आ रहा है और सभी चार इकाइयों को चालू कर दिया गया है। कुडनकुनल संयंत्र, जिसकी परिकल्पना 1989 में की गई थी, लंबित पड़ा था, वह भी अब चालू है।’’
सिंह ने बताया कि सुरक्षा संबंधी समस्या मानकों का पालन किया जाता है और हादसे की स्थिति में पहली जिम्मेदारी संचालक की और फिर आपूर्तिकर्ता की होती है।
किसी भी तरह का परमाणु हादसा होने की स्थिति में जवाबदेही के संबंध में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के मनोज कुमार झा के पूरक प्रश्न के उत्तर में सिंह ने बताया कि बदलती प्रौद्योगिकी के साथ जोखिम भी बढ़ता है लेकिन समय समय पर सरकार स्थिति की समीक्षा कर फैसले लेती है।
सिंह ने बताया कि बीते तीन साल में अंतरिक्ष के क्षेत्र में निजी भागीदारों की संख्या बढ़ी है और परमाणु ऊर्जा विभाग विश्व मंच में अपनी पहचान बना रहा है तथा अंतरिक्ष के क्षेत्र में आज 300 से अधिक स्टार्ट अप हैं।
परमाणु संयंत्र के कारण विकिरण की समस्या के बारे में मंत्री ने कहा कि यह आशंका निर्मूल है और विकिरण में कमी देखी गई है।
समाजवादी पार्टी के राम गोपाल यादव ने कहा कि देश के एकमात्र फास्ट ब्रीडर रिएक्टर कलपक्कम की सीमाएं असुरक्षित हैं और दुश्मन अगर हमला करे तो क्या होगा ?
यादव ने जानना चाहा कि क्या इस संयंत्र की सुरक्षा के लिए कोई पोत या पनडुब्बी है क्योंकि यह बंगाल की खाड़ी के किनारे है।
प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्य मंत्री ने कहा कि संयंत्र की निगरानी की समुचित व्यवस्था है। उन्होंने कहा, ‘‘नित नए सिर उठाते जोखिमों के मद्देनजर सरकार परमाणु संयंत्रों की सुरक्षा के लिए पूरी तरह सतर्कता बरतते हुए कदम उठाती है। कलपक्कम संयंत्र की सुरक्षा की भी चाक चौबंद व्यवस्था की गई है।’’
शिवसेना (उबाठा) के संजय राउत ने पूछा कि महाराष्ट्र के तारापुर संयंत्र के लिए कई किसानों ने जमीन दी, मछुआरों ने भी समझौता कर अपना काम बंद कर दिया लेकिन आज भी इस क्षेत्र के परमाणु संयंत्र से प्रभावित दो हजार से अधिक परिवारों का पुनर्वास क्यों नहीं हो पाया?
उन्होंने कहा, ‘‘प्रभावितों को न नौकरी मिली न पक्के मकान मिले। प्रतिनिधिमंडल मंत्री और प्रधानमंत्री से भी मिल चुका है।’’
जितेंद्र सिंह ने इसके जवाब में बताया, ‘‘सरकार ऐसे मुद्दों पर संयंत्र की योजना बनाने के साथ ही विचार शुरु कर देती है। नियम भी तैयार किए जाते हैं। सीएसआर से भी ऐसे विस्थापितों के लिए व्यवस्था की जाती है। नौकरी में भी ऐसे परिवारों को प्राथमिकता और छूट दी जाती है। समय के साथ-साथ समस्या बढ़ती है लेकिन फिर भी यह सिलसिला जारी है।’’
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