बाकू में हुए संयुक्त राष्ट्र के जलवायु सम्मेलन कॉप29 में क्लाइमेट फाइनेंस को लेकर समझौता हो गया. लेकिन गरीब और अमीर देशों के बीच इस समझौते पर तीखा मतभेद है.दुनिया ने रविवार को एक विवादित जलवायु समझौते को मंजूरी दी, लेकिन जलवायु आपदाओं का सबसे ज्यादा सामना कर रहे गरीब देशों ने इसे नाकाफी और अपमानजनक बताया. अमीर देशों ने हर साल क्लाइमेट फाइनेंस के रूप में 300 अरब डॉलर देने का वादा किया है, लेकिन यह रकम गरीब देशों को बेहद कम लगी.
दो हफ्तों की थकाऊ बातचीत और बिना सोए गुजारी रातों के बाद, लगभग 200 देशों ने अजरबैजान के बाकू में एक स्टेडियम में यह वित्तीय समझौता पास किया. लेकिन भारत ने इसे तुरंत खारिज कर दिया. भारत की प्रतिनिधि चांदनी रैना ने कहा, "यह बहुत ही मामूली रकम है. यह दस्तावेज एक दिखावा है. इससे हमारी समस्याएं हल नहीं होंगी."
सिएरा लियोन के पर्यावरण मंत्री जिवोह अब्दुलई ने इसे अमीर देशों की "अच्छी नीयत की कमी" बताया. नाइजीरिया की प्रतिनिधि निकिरुका मडुकवे ने इसे "अपमानजनक" कहा. कुछ देशों ने आरोप लगाया कि अजरबैजान जलवायु परिवर्तन की गंभीरता को समझने में असमर्थ है. कॉप29 का आयोजक देश अजरबैजान खुद एक बड़ा तेल और गैस निर्यातक देश है.
अमीर देशों पर भरोसे की कमी
बाकू में जब सम्मेलन शुरू हुआ तो इस बात की आलोचना हुई कि सबसे बड़े प्रदूषक देशों के नेता उसमें शामिल नहीं हुए. गरीब मुल्कों ने विकसित देशों के इरादों संदेह जताया. मार्शल आइलैंड्स की जलवायु दूत टीना स्टीग ने कहा, "हमें वह नहीं मिला जिसकी हमें जरूरत थी, लेकिन हम खाली हाथ भी नहीं लौट रहे."
विकसित और विकासशील देशों के बीच यह मतभेद रहा कि जलवायु संकट में सबसे ज्यादा योगदान देने वाले अमीर देशों को कितनी मदद देनी चाहिए. जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल को खत्म करने का वादा, जो पिछले साल दुबई में कॉप28 में किया गया था, इस बार के समझौते से हटा दिया गया.
45 गरीब देशों के समूह ने कॉप29 के नतीजे को "विश्वासघात" बताया. उनका कहना था कि यह समझौता न तो ग्लोबल वॉर्मिंग पर लगाम लगा सकता है और न ही कमजोर देशों की मदद कर सकता है. संयुक्त राष्ट्र ने कहा कि वैश्विक तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने की कोशिश जारी है, लेकिन अभी दुनिया 2.6 से 3.1 डिग्री सेल्सियस तक गर्म होने की राह पर है.
संयुक्त राष्ट्र महासचिव अंटोनियो गुटेरेश ने कहा, "मुझे उम्मीद थी कि नतीजा ज्यादा महत्वाकांक्षी होगा लेकिन इसे एक शुरुआत के तौर पर देखना चाहिए."
300 अरब डॉलर का वादा
कॉप29 के अंतिम दिन अमीर देशों ने 300 अरब डॉलर सालाना देने की पेशकश की. यह पेशकश तब आई जब वार्ता समय से ज्यादा लंबी खिंच गई. हालांकि यह रकम संयुक्त राष्ट्र द्वारा सुझाए गए 390 अरब डॉलर के आंकड़े से कम है. अमेरिका और यूरोपीय संघ ने कहा कि आज के भू-राजनीतिक हालात और आर्थिक समस्याओं को देखते हुए इससे ज्यादा रकम संभव नहीं है.
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने इस समझौते को "ऐतिहासिक" बताया. वहीं, यूरोपीय संघ के जलवायु दूत वॉप्के होकस्त्रा ने इसे "जलवायु वित्त के नए युग की शुरुआत" कहा. कॉप29 में कई बार वार्ता टूटने के कगार पर पहुंच गई थी. प्रतिनिधियों ने मीटिंग से वॉकआउट किया और तीखे बयान दिए.
अमीर देशों ने कहा कि विकासशील देशों को भी अपनी तरफ से योगदान देना चाहिए. हालांकि दुनिया के सबसे बड़े प्रदूषक चीन ने कोई अतिरिक्त जिम्मेदारी लेने से इनकार कर दिया.
गरीब देशों ने सौदे को रोकने की धमकी दी लेकिन अंत में कोई विरोध नहीं किया. फिर भी, यह समझौता "स्वैच्छिक योगदान" को बढ़ावा देता है. इसका मतलब है कि चीन जैसे देश अपनी मर्जी से योगदान कर सकते हैं. समझौते में 13 खरब डॉलर सालाना का बड़ा लक्ष्य रखा गया है. लेकिन इसका ज्यादातर हिस्सा निजी फंडिंग से आएगा.
विकसित देशों पर वित्तीय दबाव
कई गरीब देशों ने इस बात की आलोचना की कि यह रकम कर्ज के तौर पर आएगी, न कि अनुदान के रूप में. कई विशेषज्ञों ने कहा कि जलवायु वित्त के लिए बहुपक्षीय बैंक सबसे अच्छे साधन हो सकते हैं. विश्व बैंक और एशियन इंफ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट बैंक जैसे संस्थानों से 120 अरब डॉलर सालाना जुटाने की उम्मीद है.
कॉप30 ब्राजील में होगा, जहां वित्तीय संस्थानों में सुधार और कर्ज के बोझ तले दबे देशों के हितों को शामिल करने पर चर्चा होगी. विशेषज्ञों ने कहा कि यह समझौता अभी पर्याप्त नहीं है लेकिन इसे एक "प्रारंभिक भुगतान" माना जा सकता है.
वीके/सीके (एएफपी, रॉयटर्स)