निवेश करने के लिए लगातार दूसरे साल भारत दुनिया की सबसे पहली पसंद के रूप में कायम है. अब सरकारें प्रतिबंधों के डर से अपना सोना विदेशों से वापस ला रही हैं.दुनिया में ऐसे देशों की संख्या बढ़ रही है जो अपने यहां सोने का भंडार बढ़ा रहे हैं क्योंकि पश्चिमी देशों द्वारा रूस पर लगाये गये प्रतिबंधों के बाद वे खुद को सुरक्षित करना चाहते हैं. सोमवार को प्रकाशित एक सर्वेक्षण में यह बात कही गयी है. इन्वेस्को नामक संस्था ने केंद्रीय बैंकों और वेल्थ फंड्स के सर्वे के आधार पर यह रिपोर्ट तैयार की है.
पिछले साल वित्तीय बाजार में मची उथल-पुथल से सरकारी फंड्स को खासा नुकसान उठाना पड़ा था. लिहाजा अब वे अपनी रणनीतियों में आमूल-चूल बदलाव करने पर विचार कर रहे हैं. ये बदलाव इस बात पर आधारित हैं कि उच्च मुद्रास्फीति और भू-राजनीतिक तनाव लंबे समय तक बना रहेगा.
इन्वेस्को ग्लोबल सॉवरिन एसेट मैनेजमेंट स्टडी नाम से हुए इस सर्वेक्षण में 57 केंद्रीय बैंकों और 85 सरकारी निवेश फंड शामिल हुए थे. इनमें से 85 फीसदी ने कहा कि उन्हें लगता है कि मुद्रास्फीति इस दशक में तो उच्च स्तर पर बनी रहेगी.
सोना सबसे अच्छा विकल्प
ऐसे माहौल में सोना और उभरते बाजारों के बॉन्ड अच्छा निवेश विकल्प माने जा रहे हैं. लेकिन पिछले साल जब रूस ने यूक्रेन पर हमला किया तो पश्चिमी देशों ने उस पर प्रतिबंध लगाते हुए उसके 640 अरब डॉलर का सोना और विदेशी मुद्रा भंडार फ्रीज कर दिया. इस बात ने भी निवेशकों की रणनीति को प्रभावित किया है.
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सर्वे की रिपोर्ट कहती है कि रूस के मामले में कायम की गई मिसाल से बड़ी संख्या में केंद्रीय बैंक चिंतित हैं. लगभग 60 फीसदी बैंकों ने कहा कि इससे सोने का आकर्षण बढ़ा है जबकि 68 फीसदी ने कहा कि अपने विदेशी मुद्रा भंडार को विदेश में निवेश करने के बजाय घर पर रखना ज्यादा सुरक्षित है. 2020 में ऐसा मानने वालों की संख्या 50 फीसदी थी.
एक केंद्रीय बैंक ने कहा, "हमारा सोना पहले लंदन में था लेकिन हमने उसे वापस स्वदेश भेज दिया है ताकि उसे सुरक्षित रखा जा सके.”
इन्वेस्को में आधिकारिक संस्थानों के प्रमुख रोड रिंगरो कहते हैं कि अब आमतौर पर सरकारें इसी तरह सोच रही हैं. उन्होंने कहा, ”पिछले एक साल का मंत्र यही रहा है कि अगर मेरे पास सोना है तो वो मेरे घर में होना चाहिए.”
डॉलर का आकर्षण घटा
भू-राजनीतिक चिंताएं और उभरते बाजारों में बढ़ते मौके मिलकर केंद्रीय बैंकों को डॉलर से विमुख होकर अन्य निवेश विकल्पों पर विचार के लिए उकसा रहे हैं. इसमें अमेरिका का 7 प्रतिशत की दर से बढ़ता कर्ज और ज्यादा योगदान दे रहा है. हालांकि ज्यादातर मानते हैं कि फिलहाल वैश्विक मुद्रा के तौर पर डॉलर का कोई विकल्प नहीं है. बल्कि युआन को डॉलर के विकल्प के तौर पर देखने वालों की संख्या पिछले साल के 29 फीसदी से घटकर 18 फीसदी रह गयी है.
सर्वे में शामिल कुल 142 संस्थानों में से लगभग 80 प्रतिशत ने माना है कि भू-राजनीतिक तनाव अगले दशक तक सबसे बड़ा खतरा बना रहेगा जबकि 83 फीसदी ने इसे अगले 12 महीने के लिए सबसे बड़े खतरे के रूप में देखा है.
इस वक्त विकास ढांचे को सबसे आकर्षक निवेश विकल्प माना जा रहा है, खासतौर पर वे परियोजनाएं जो अक्षय ऊर्जा से जुड़ी हैं.
भारत सबसे ऊपर
चीन को लेकर पश्चिमी जगत की चिंताओं का अर्थ यह है कि लगातार दूसरे साल भारत निवेशकों की पहली पसंद के रूप में कायम है. इस बात का चलन भी बढ़ रहा है कि फैक्ट्रियां वहां लगाई जाएं जहां उत्पाद बेचे जा रहे हैं. इसलिए मेक्सिको, इंडोनेशिया और ब्राजील आदि की ओर आकर्षण भी बढ़ रहा है.
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चीन, ब्रिटेन और इटली को सबसे कम आकर्षक देश माना गया है जबकि कोविड-19 के दौरान ऑनलाइन खरीदारी और घर से काम करने वाले लोगों की संख्या बढ़ने के कारण अब प्रॉपर्टी सबसे कम आकर्षक निजी संपत्ति हो गयी है.
रिंगरो कहते हैं कि पिछले साल जिन वेल्थ फंडों ने अच्छा प्रदर्शन किया वे वही थे जो अपने पोर्टफोलियो की जरूरत से ज्यादा बढ़ी कीमत के खतरों को पहचान पाये और अपने निवेश में विविधता ला पाये. ऐसा आगे भी जारी रहेगा.
रिंगरो कहते हैं, "फंड्स और केंद्रीय बैंक अब ऊंची मुद्रास्फीति दर के साथ जीने की आदत डाल रहे हैं. यह सबसे बड़ा बदलाव है.”
वीके/एए (रॉयटर्स)