नयी दिल्ली, 18 अक्टूबर राष्ट्रीय राजधानी में रविवार सुबह वायु गुणवत्ता ‘‘खराब’’ श्रेणी में दर्ज की गई और वातावरण में ‘पीएम 2.5’ कणों में पराली जलाने की हिस्सेदारी ‘‘काफी अधिक’’ बढ़ सकती है। एक केंद्रीय एजेंसी ने यह जानकारी दी।
वातावरण में शनिवार को कुल ‘पीएम 2.5’ कणों में से 19 फीसदी पराली जलाने की वजह से आए थे जो पहले के मुकाबले बढ़ गए हैं। ‘पीएम 2.5’ के कुल कणों में से शुक्रवार को 18 फीसदी पराली जलाने के कारण आए जबकि बुधवार को करीब एक फीसदी और मंगलवार, सोमवार तथा रविवार को करीब तीन फीसदी कण इस वजह से आए थे।
शहर में सुबह साढ़े आठ बजे वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) 275 दर्ज किया गया। शनिवार को 24 घंटे का औसत वायु गुणवत्ता सूचकांक 287 दर्ज किया गया था। शुक्रवार को यह 239, बृहस्पतिवार को 315 दर्ज था जो इस वर्ष 12 फरवरी के बाद से सबसे ज्यादा खराब है। उस दिन एक्यूआई 320 था।
शून्य और 50 के बीच एक्यूआई को 'अच्छा', 51 और 100 के बीच 'संतोषजनक', 101 और 200 के बीच ‘मध्यम’, 201 और 300 के बीच 'खराब', 301 और 400 के बीच 'बहुत खराब' और 401 और 500 के बीच को 'गंभीर' माना जाता है।
मौसम विज्ञान विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि दिन के वक्त उत्तरपश्चिमी हवाएं चल रही हैं और पराली जलाने से पैदा होने वाले प्रदूषक तत्वों को अपने साथ ला रही है। रात में हवा के स्थिर होने तथा तापमान घटने की वजह से प्रदूषक तत्व जमा हो जाते हैं।
पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय की ‘वायु गुणवत्ता निगरानी एवं मौसम पूर्वानुमान तथा अनुसंधान प्रणाली’ (सफर) के मुताबिक हरियाणा, पंजाब और नजदीकी सीमा पर स्थित क्षेत्रों में शनिवार को पराली जलाने की 882 घटनाएं हुईं।
इसमें बताया गया कि ‘पीएम 2.5’ प्रदूषक तत्वों में पराली जलाने की हिस्सेदारी शनिवार को करीब 19 फीसदी रही।
पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय की वायु गुणवत्ता पूर्व चेतावनी प्रणाली ने कहा है कि वायु संचार सूचकांक 12,500 वर्गमीटर प्रति सेकेंड रहने की उम्मीद है जो प्रदूषक तत्वों के बिखरने के लिए अनुकूल है।
वायु संचार सूचकांक छह हजार से कम होने और औसत वायु गति दस किमी प्रतिघंटा से कम होने पर प्रदूषक तत्वों के बिखराव के लिए प्रतिकूल स्थिति होती है।
प्रणाली की ओर से कहा गया कि राष्ट्रीय राजधानी की वायु गुणवत्ता पर पराली जलाने का प्रभाव सोमवार तक ‘‘काफी बढ़ सकता है।’’
अधिकारियों ने शनिवार को कहा था कि पिछले वर्ष के मुकाबले इस वर्ष इस मौसम में अब तक पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने की घटनाएं अधिक हुई हैं जिसकी वजह धान की समयपूर्व कटाई और कोरोना वायरस महामारी के कारण खेतों में काम करने वाले श्रमिकों की अनुपलब्धता है।
केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने शुक्रवार को कहा था कि दिल्ली में पिछले साल की तुलना में इस साल सितंबर के बाद से प्रदूषकों के व्यापक स्तर पर फैलने के लिये मौसमी दशाएं ''अत्यधिक प्रतिकूल'' रही हैं।
बोर्ड के सदस्य सचिव प्रशांत गार्गव ने उम्मीद जताई थी कि इस साल कम क्षेत्र में गैर बासमती धान की खेती होने के चलते पराली जलाने की घटना 2019 की तुलना में इस साल कम होगी।
उल्लेखनीय है कि गैर बासमती धान की पराली चारे के रूप में बेकार मानी जाती है क्योंकि इसमें ‘‘सिलिका’’ की अधिक मात्रा होती है और इसलिये किसान इसे जला देते हैं।
(यह सिंडिकेटेड न्यूज़ फीड से अनएडिटेड और ऑटो-जेनरेटेड स्टोरी है, ऐसी संभावना है कि लेटेस्टली स्टाफ द्वारा इसमें कोई बदलाव या एडिट नहीं किया गया है)