देश की खबरें | रेलवे भूमि पर अवैध कब्जा: न्यायालय ने शहरी विकास मंत्रालय से पुनर्वास नीति का विवरण मांगा

नयी दिल्ली, 29 नवंबर उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को शहरी विकास मंत्रालय से कहा कि वह बताए कि गुजरात और हरियाणा में रेलवे की भूमि पर झुग्गियों में रहने वालों के पुर्नवास के लिए उसके पास कोई नीति है या नहीं।

न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति सी टी रविकुमार की पीठ को गुजरात और हरियाणा में रेलवे की भूमि पर किये गए अवैध कब्जे को हटाने से संबंधित दो अलग याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान रेल मंत्रालय ने यह जानकारी दी। रेल मंत्रालय ने पीठ से कहा कि उसने शीर्ष अदालत और उच्च न्यायालय में बराबर इस तथ्य को स्पष्ट किया है कि रेलवे की जमीन पर अवैध कब्जा करने वालों के पुनर्वास के लिए उनके पास कोई नीति नहीं है।

रेलवे की ओर से पेश हुए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के एम नटराज ने सुनवाई के दौरान दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा पहले दिए गए एक आदेश का हवाला दिया जिसमें कहा गया था कि इस संबंध में शहरी विकास मंत्रालय को 2015 में दिल्ली में अधिसूचित नीति पर कोई आपत्ति नहीं है।

पीठ ने टिप्पणी की, “इसलिए मंत्रालय इस नीति को रेलवे की संपत्तियों तक विस्तार देने के लिए राजी हो गया था।”

नटराज की इस दलील पर कि संबंधित राज्यों को पुर्नवास नीति लानी चाहिए, पीठ ने कहा, “शहरी विकास मंत्रालय और आप दोनों भारत सरकार हैं। इसलिए मंत्रालय को उसी प्रकार की नीति वहां लागू करने की जिम्मेदारी लेनी चाहिए।” पीठ ने कहा कि वह जानना चाहती है कि जैसा प्रावधान दिल्ली में है, क्या वैसा ही प्रावधान मंत्रालय द्वारा गुजरात और हरियाणा में किया जा सकता है। इस पर नटराज ने कहा कि वह इस मुद्दे पर निर्देश लेकर फिर न्यायालय को सूचित करेंगे।

इसके बाद, पीठ ने कहा, “शहरी विकास मंत्रालय भारत सरकार के सचिव को नोटिस जारी किया जाए… मंत्रालय को रिकॉर्ड पर बताना होगा कि क्या उसके पास गुजरात और हरियाणा में रेलवे की संपत्तियों के बारे में कोई नीति है।” इसके साथ ही न्यायालय ने इस मामले को तीन दिसंबर को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर दिया।

न्यायालय दो अलग-अलग याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है जिसमें से एक, गुजरात में रेलवे लाइन परियोजना के लिए पांच हजार झुग्गियों के ध्वंस से संबंधित है।

शीर्ष अदालत ने रेलवे मंत्रालय के सचिव से एक सप्ताह के भीतर हलफनामा दाखिल करने के लिए कहा है। गुजरात के मामले में दायर याचिका में कहा गया है कि अगर रेलवे की जमीन पर झुग्गी में रहने वालों के पुनर्वास और वैकल्पिक आवास की व्यवस्था नहीं की गई तो उससे “कभी न भरने वाले घाव” जैसी स्थिति उत्पन्न हो जाएगी।

दूसरी याचिका हरियाणा के फरीदाबाद में रेल की पटरियों के किनारे झुग्गियां गिराये जाने से संबंधित है। इसमें पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के 28 सितंबर के अंतरिम आदेश को चुनाती दी गई है। उच्च न्यायालय ने इस आदेश में झुग्गियां गिराने के आदेश पर रोक लगाने से इंकार कर दिया था।

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