नयी दिल्ली, आठ मार्च दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक करीबी रिश्तेदार द्वारा दो लड़कियों के यौन उत्पीड़न के मामले को मध्यस्थता से सुलझाने के कदम पर नाराजगी जताई और कहा कि गंभीर प्रकृति के ऐसे अपराधों का इस तरह समाधान नहीं किया जा सकता।
उच्च न्यायालय ने कहा कि यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि इस तरह के अपराधों में उपयुक्त कानूनी कार्यवाही की जाए।
अदालत ने कहा कि पीड़िता को आवश्यक सहयोग, संरक्षण और न्याय मिले जिनकी वे हकदार हैं।
उच्च न्यायालय अपनी पत्नी से अलग रह रहे एक व्यक्ति की याचिका पर सुनवाई कर रहा है, जिन्होंने यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम के तहत एक रिश्तेदार के खिलाफ अपनी शिकायत पर सात साल बाद फिर से विचार करने का अदालत से अनुरोध किया है। याचिकाकर्ता की एक बेटी अब बालिग हो गई है जबकि दूसरी 17 साल की है।
न्यायमूर्ति स्वर्णकांत शर्मा ने यौन उत्पीड़न के मामले को फिर से खोलने की याचिका को खारिज करते हुए कहा कि अदालत इस तरह की संवेदनहीनता नहीं दिखा सकती।
व्यक्ति ने अपनी याचिका में कहा है कि निचली अदालत ने पहले उसके और उसकी पत्नी के बीच के विवादों को मध्यस्थता के लिए भेजा और फिर उनके बीच हुए समझौते के आधार पर मामले को बंद कर दिया।
अदालत ने कहा कि न्यायाधीश के लिए यह उल्लेख करना अप्रिय है कि माता-पिता अपना हित साधने के लिए पॉक्सो अधिनियम के प्रावधानों का इस्तेमाल कर सकते हैं।
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