मुंबई, 16 अप्रैल बंबई उच्च न्यायालय की औरंगाबाद पीठ ने जिलाधिकारियों को निर्देश दिया है कि वे अपने जिलों में फंसे सभी प्रवासी कामगारों के संबंध में आंकड़े तैयार करें कि क्या उनकी बुनियादी जरूरतें पूरी की जा रही हैं?
इसके साथ ही अदालत ने यह भी सवाल किया कि कोरोना वायरस लॉकडाउन के मद्देनजर क्या ऐसे कामगारों को मनोवैज्ञानिक परामर्श (काउंसेलिंग) मुहैया कराया जा रहा है।
न्यायमूर्ति आर वी घुगे की पीठ ने बुधवार को राज्य के विभिन्न जिलों में प्रवासी श्रमिकों और दिहाड़ी मजदूरों की स्थिति और डॉक्टरों, नर्सों तथा अन्य चिकित्सा कर्मचारियों के सामने आ रही कठिनाइयों पर एक याचिका पर स्वत: संज्ञान लेते हुए सुनवाई की।
पीठ ने जिलाधिकारियों को निर्देश दिया कि वे अपने जिलों के सभी प्रवासी कामगारों के आंकड़े तैयार करें और यह गौर करें कि क्या ऐसे लोगों की देखभाल के लिए आश्रय गृह हैं जो अपने घर लौटने में असमर्थ हैं।
पीठ ने कहा कि जिलाधिकारी अदालत को यह भी सूचित करेंगे कि क्या स्थानीय प्रशासन ने ऐसे श्रमिकों के लिए मनोवैज्ञानिक परामर्श सुविधा की व्यवस्था करने लिए कोई प्रयास किया है।
पीठ ने दो सप्ताह के भीतर आंकड़े तैयार करने और चार मई को पेश करने का निर्देश दिया।
अदालत ने अधिकारियों को यह सुनिश्चित करने का भी निर्देश दिया कि डॉक्टरों और अन्य चिकित्सा कर्मचारियों की सुरक्षा के लिए पर्याप्त व्यवस्था की जाए जो कोरोना वायरस के खिलाफ लड़ाई में सबसे आगे हैं।
सरकारी वकील डी आर काले ने अदालत को आश्वासन दिया कि ऐसे डॉक्टरों और मेडिकल स्टाफ को पर्याप्त सुरक्षा दी जा रही है।
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