देश की खबरें | हैदरपुरा मुठभेड़ : अदालत ने तीसरे नागरिक का शव कब्र से निकालने का आदेश दिया

श्रीनगर, 27 मई जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय ने प्रशासन की कार्रवाई को समानता के अधिकार का उल्लंघन बताते हुए शुक्रवार को एक नागरिक का शव कब्र से निकालने तथा अंतिम संस्कार के लिए उसके परिवार को सौंपने का आदेश दिया। पुलिस ने पिछले साल नवंबर में हैदरपुरा मुठभेड़ के दौरान इस शख्स को आतंकवादी बताया था तथा एक मुठभेड़ में उसे मार गिराया था।

न्यायमूर्ति संजीव कुमार ने 13 पृष्ठों के अपने आदेश में कहा कि अगर शव ‘‘पूरी तरह सड़ गया है ’’ और इसे कब्र से निकालने से जनता को खतरा पहुंचता है तो प्रशासन परिवार को अपनी परंपराओं के अनुसार गरिमापूर्ण तरीके से अंतिम संस्कार करने से वंचित रखने के लिए मुआवजे के तौर पर परिवार को पांच लाख रुपये देगा।

आदेश में कहा गया है, ‘‘प्रतिवादियों (जम्मू कश्मीर प्रशासन) का याचिकाकर्ता को अपने बेटे का शव अंतिम संस्कार के लिए उसके पैतृक गांव ले जाने की अनुमति न देना मनमाना और भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता के अधिकार) का उल्लंघन है।

आमिर लतीफ माग्रे उन चार लोगों में से एक था जो 15 नवंबर 2021 को श्रीनगर के बाहरी इलाके में हैदरपुरा में मारे गए थे। पुलिस ने दावा किया था कि ये सभी आतंकवादी थे और उनका शव उत्तरी कश्मीर के कुपवाड़ा में दफना दिया था।

जम्मू कश्मीर पुलिस ने 2020 में फैसला किया था कि वह ‘‘आतंकवादियों’’ के शव उनके परिवार के सदस्यों को नहीं सौंपेगी और कानून एवं व्यवस्था की स्थिति से बचने के लिए अलग स्थानों पर उनका शव दफनाएगी।

हालांकि, मुठभेड़ की प्रमाणिकता को लेकर जन आक्रोश के बाद जम्मू कश्मीर प्रशासन दबाव में आया और उसने अल्ताफ अहमद भट तथा डॉ. मुदासिर गुल के शव कब्र से निकाले तथा उनके परिवार के सदस्यों को सौंपे।

मुठभेड़ के बारे में पुलिस के दावों पर सवाल उठाए जाने के बीच जम्मू कश्मीर सरकार ने मामले की जांच के लिए एक विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन किया था।

आमिर के पिता मोहम्मद लतीफ माग्रे ने अपनी वकील दीपिका सिंह राजावत के जरिए पुलिस के दावों का विरोध किया और कहा कि वह ‘‘प्रतिवादियों (पुलिस/प्रशासन) के दावे से पूरी तरह असंतुष्ट है कि वह एक आतंकवादी था और मुठभेड़ में मारा गया तथा अत: उन्होंने हस्तक्षेप के लिए प्रशासन का रुख किया।’’

आदेश में कहा गया है कि माग्रे की शिकायत है कि ‘‘प्रतिवादियों ने बहुत आसानी से उनके बेटे को आतंकवादी ठहरा दिया और उन्हें शव को गरिमापूर्ण तरीके से दफनाने भी नहीं दिया।’’

उन्होंने अदालत को बताया कि उन्होंने आमिर का शव सौंपने के लिए सभी प्राधिकारियों का दरवाजा खटखटाया लेकिन किसी ने उनकी नहीं सुनी और उनके बेटे का शव उनकी अनुपस्थिति में कुपवाड़ा में वद्देर पायीन कब्रगाह में दफना दिया गया।

न्यायमूर्ति कुमार ने पुलिस और प्रशासन के रुख पर सवाल उठाते हुए कहा कि अदालत में दिए उनके जवाब और सीलबंद लिफाफे में सौंपे दस्तावेजों से ‘‘यह पता नहीं चल रहा कि याचिकाकर्ता की उनके बेटे आमिर लतीफ माग्रे का शव लौटने का अनुरोध क्यों नहीं स्वीकार किया गया और मोहम्मद अल्ताफ भट तथा डॉ. मुदासिर गुल के साथ उसका शव कब्र से निकाला जाए।’’

आदेश में कहा गया है कि हालांकि सरकार ने दलील दी है कि याचिकाकर्ता को अंतिम संस्कार के लिए शव न देने का फैसला वृहद जनहित और कानून एवं व्यवस्था को बिगड़ने से रोकने के लिए लिया गया, लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि ‘‘मुठभेड़ में मारे गए चार लोगों में दो का शव क्यों कब्र से निकाला गया और अंतिम संस्कार के लिए उनके परिजन को सौंपा गया तथा याचिकाकर्ता को यह अधिकार क्यों नहीं दिया गया।’’

न्यायमूर्ति कुमार ने एसआईटी की रिपोर्ट का हवाला दिया, जिसमें आमिर को ‘‘सत्यापित आतंकवादी बताया गया जबकि दो अन्य लोगों अल्ताफ अहमद भट और डॉ. मुदासिर गुल केवल आतंकवादियों के साथी बताए गए।’’

उन्होंने कहा, ‘‘मुझे प्रतिवादियों द्वारा किए गए किसी भेद में कोई तुक नजर नहीं आया। ऐसा लगता है कि जनता के दबाव और दोनों मृतकों के रिश्तेदारों की मांग पर प्रतिवादी मान गए और उनके शव कब्र से निकालने तथा परिजनों को सौंपने की अनुमति दे दी।’’

अदालत ने कहा, ‘‘चूंकि याचिकाकर्ता जम्मू प्रांत में दूरवर्ती गांव गूल का निवासी है तो उसके अनुरोध को मनमाने ढंग से ठुकरा दिया गया।’’

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