मेहसाणा, 29 मार्च गुजरात के मेहसाणा जिले की एक सत्र अदालत ने कांग्रेस विधायक जिग्नेश मेवाणी और नौ अन्य को 2017 के एक मामले में एक निचली अदालत द्वारा सुनायी गई तीन महीने की सजा बुधवार को रद्द कर दी।
2017 का यह मामला पुलिस की अनुमति के बिना सार्वजनिक रैली निकालने से संबंधित है। अदालत ने इस मामले की सुनवायी के दौरान हुई जिरह के साथ ही इस तथ्य को भी संज्ञान में लिया कि सरकार के कृत्यों की नेक नीयत से आलोचना लोकतंत्र के अस्तित्व के लिए आवश्यक है।
सत्र अदालत ने अपने फैसले में अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन के इस कथन को भी उद्धृत किया कि ‘‘जो लोग दूसरों को स्वतंत्रता से वंचित करते हैं, वे खुद भी इसके अधिकारी नहीं हैं..।’’
अदालत ने कहा कि अभियोजन का पूरा मामला निराधार है और बिना किसी सबूत के है। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश सी. एम. पवार ने एक न्यायिक मजिस्ट्रेट अदालत के मई 2022 के उस आदेश के खिलाफ मेवाणी, आम आदमी पार्टी (आप) की नेता रेशमा पटेल और अन्य की अपील स्वीकार कर ली, जिसने उन्हें भारतीय दंड संहिता की धारा 143 के तहत दोषी पाया था। दोषसिद्धि के बाद मजिस्ट्रेट अदालत ने उन्हें तीन महीने जेल की सजा सुनाई थी।
यह मामला जुलाई 2017 का है जब दलित अधिकार कार्यकर्ता मेवाणी और अन्य के खिलाफ मेहसाणा ‘ए’ डिवीजन पुलिस थाने में मेहसाणा शहर से बनासकांठा जिले के ढनेरा तक पुलिस की अनुमति के बिना ‘‘आजादी मार्च’’ निकालने के लिए एक प्राथमिकी दर्ज की गई थी।
रैली क्षेत्र के भूमिहीन किसानों के अधिकारों के समर्थन में निकाली गई थी।
सत्र अदालत ने कहा कि लोकतंत्र में निर्वाचित नेता लोगों पर शासन करने के लिए नहीं बल्कि उनकी सेवा करने के लिए होते हैं। उसने कहा, ‘‘देश में लोकतंत्र के मूल्यों के अस्तित्व के लिए आलोचना के भय के बिना नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करना प्रत्येक लोकतांत्रिक राष्ट्र के शासक का परम कर्तव्य है।’’
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