नयी दिल्ली, 10 जनवरी उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को कहा कि गुजरात सरकार हत्या के एक मामले के दो अभियुक्तों को जमानत पर रिहा करने के उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ अपील दायर न करके पीड़ित के अधिकारों की रक्षा करने में ‘विफल’ रही है।
शीर्ष अदालत ने कहा कि यह सुनिश्चित करना सरकार और अभियोजन निदेशक का कर्तव्य है कि दोषियों के खिलाफ मुकदमा चलाया जाए और उसे दंडित किया जाए। इसके साथ ही इसने आरोपी को जमानत पर रिहा करने के गुजरात उच्च न्यायालय के आदेश को निरस्त कर दिया।
न्यायमूर्ति एम आर शाह और न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना की पीठ ने कहा कि यह एक यथोचित मामला है, जिसमें सरकार को उच्च न्यायालय के आदेशों को चुनौती देने वाली अपीलों को प्राथमिकता देनी चाहिए थी।
खंडपीठ ने कहा, ‘‘हम देख सकते हैं कि इस तरह के गंभीर मामले में आरोपी को जमानत पर रिहा करने के आदेश के खिलाफ अपील दायर न करके राज्य सरकार पीड़ित के अधिकारों की रक्षा करने में विफल रही है।’’
शीर्ष अदालत ने मूल शिकायतकर्ता द्वारा दायर अपील पर फैसला सुनाया, जो अपनी चाची और पति के साथ एक कारखाने के बाहर खुली जगह से कबाड़ लेने गई थी। उस वक्त शिकायतकर्ता के पति की आरोपियों द्वारा पिटाई की गयी थी, जिससे उसकी मौत हो गई थी। महिला ने 2019 में उच्च न्यायालय द्वारा दिये गए दो आदेशों को चुनौती दी थी।
शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में कहा कि सरकारी वकील की यह दलील कि अपील करने को लेकर निर्णय लेने में समय लगता है, “स्वीकार्य नहीं है”।
पीठ ने कहा, ‘‘हम आशा और विश्वास करते हैं कि भविष्य में राज्य सरकार/राज्य सरकार के कानूनी विभाग और अभियोजन निदेशक इस तरह के मामलों में त्वरित निर्णय लेंगे और जहां यह पाया जाए कि आरोपी वर्तमान जैसे गंभीर अपराधों में जमानत पर रिहा हैं, उनमें निचली अदालत और/या उच्च न्यायालय द्वारा सुनाए गए आदेश को चुनौती देंगे।’’
पीठ ने दोनों अभियुक्तों को संबंधित जेल अधिकारी के समक्ष आज से एक सप्ताह के भीतर आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया। ऐसा न करने की स्थिति में अभियुक्तों के खिलाफ गैर-जमानती वारंट जारी किये जाएंगे।
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