देश की खबरें | ग्राम अदालतों की स्थापना से किफायती न्याय तक पहुंच सुनिश्चित होगी, लंबित मामले घटेंगे: शीर्ष अदालत

नयी दिल्ली, 12 जुलाई उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि ग्राम न्यायालय स्थापित करने से नागरिकों को उनके दरवाजे पर किफायती और त्वरित न्याय उपलब्ध कराने में मदद मिलेगी और निचली अदालतों में लंबित मामलों की बड़ी संख्या में कमी आएगी।

संसद द्वारा 2008 में पारित एक अधिनियम में नागरिकों को न्याय तक पहुंच प्रदान करने और यह सुनिश्चित करने के लिए जमीनी स्तर पर ग्राम न्यायालयों की स्थापना का प्रावधान किया गया था कि सामाजिक, आर्थिक या अन्य अक्षमताओं के कारण कोई भी न्याय हासिल करने के अवसरों से वंचित ना हो।

उच्चतम न्यायालय ने राज्यों के मुख्य सचिवों और उच्च न्यायालयों के महापंजीयकों (रजिस्ट्रार जनरल) को छह सप्ताह के भीतर हलफनामा दाखिल कर ग्राम न्यायालयों की स्थापना और संचालन के बारे में विस्तृत जानकारी देने का निर्देश दिया, जिसमें उनके लिए उपलब्ध कराए गए बुनियादी ढांचे का भी विवरण शामिल हो।

न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति के वी विश्वनाथन की पीठ ने यह आदेश तब पारित किया जब याचिकाकर्ता गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) ‘नेशनल फेडरेशन ऑफ सोसाइटीज फॉर फास्ट जस्टिस’ और अन्य की ओर से पेश अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा कि अधिनियम पारित होने के 16 साल बाद भी केवल 264 ग्राम न्यायालय ही कार्यरत हैं।

शीर्ष अदालत में 2019 में याचिका दायर कर केंद्र और सभी राज्यों को शीर्ष अदालत की निगरानी में ग्राम न्यायालय स्थापित करने के लिए कदम उठाने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया था।

याचिका में कहा गया है कि ग्राम न्यायालय अधिनियम, 2008 की धारा 5 और 6 में प्रावधान है कि राज्य सरकार उच्च न्यायालय के परामर्श से प्रत्येक ग्राम न्यायालय के लिए एक न्यायाधिकारी नियुक्त करेगी, जो प्रथम श्रेणी के न्यायिक मजिस्ट्रेट के रूप में नियुक्त होने के योग्य व्यक्ति होगा।

सुनवाई के दौरान भूषण ने कहा कि यह अधिनियम 2008 में अस्तित्व में आया था और अब तक कम से कम 6,000 ग्राम न्यायालय स्थापित हो जाने चाहिए थे। पीठ ने कहा कि उनके विचार में, ग्राम न्यायालयों की स्थापना से घर-घर तक किफायती और त्वरित न्याय उपलब्ध कराने के अलावा ‘‘निचली अदालतों में लंबित मामलों की बड़ी संख्या में कमी आएगी।’’

पीठ ने कहा कि ग्राम न्यायालयों की स्थापना के पीछे का विचार नागरिकों को न्याय तक आसान पहुंच प्रदान करना प्रतीत होता है। पीठ ने कहा कि न्याय के अधिकार में किफायती न्याय का अधिकार भी शामिल है।

पीठ ने कहा, ‘‘हम सभी राज्यों के मुख्य सचिवों और सभी उच्च न्यायालयों के रजिस्ट्रार जनरल को निर्देश देते हैं कि वे छह सप्ताह के भीतर हलफनामा दाखिल कर संबंधित राज्यों में ग्राम न्यायालयों की स्थापना और कामकाज के बारे में ब्यौरा दें।’’

भूषण ने कहा, ‘‘यह अधिनियम 2008 का है। सोलह वर्ष बीत चुके हैं और हम इस दयनीय स्थिति का सामना कर रहे हैं, जहां चार प्रतिशत ग्राम न्यायालय भी स्थापित नहीं हुए हैं।’’

जब मामले में उपस्थित एक वकील ने जनजातीय क्षेत्रों में उपलब्ध उपायों का मुद्दा उठाया, तो पीठ ने कहा, ‘‘इसे केवल आदिवासी क्षेत्रों तक सीमित न रखें।’’ पीठ ने कहा, ‘‘हम आज की वर्तमान स्थिति जानना चाहते हैं।’’

शीर्ष अदालत ने मामले की अगली सुनवाई 11 सितंबर को तय की।

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