इंग्लैंड की टीम ने उम्मीद जतायी थी कि वह वर्षों से चली आ रही निराशा को समाप्त कर देगी। इंग्लैंड ने 1966 में विश्व कप के बाद कोई बड़ा टूर्नामेंट नहीं जीता था लेकिन इस बार जिस तरह से टीम प्रदर्शन कर रही थी उसे देखते हुए लग रहा था कि वह यूरोपीय चैंपियन बन जाएगी।
लेकिन इंग्लैंड पेनल्टी शूट आउट में फिर से मार खा गया। इटली ने उसे 3-2 से हराकर खिताब जीता। इससे पूरा इंग्लैंड गमगीन हो गया।
इटली की जीत के साथ जहां उसके प्रशंसक खुशी से झूम रहे थे वहीं वेम्बले स्टेडियम की अधिकतर सीटों पर मुर्दानगी छायी थी। इंग्लैंड के प्रशंसक सिर पकड़कर बैठे थे। यही हाल बाहर सड़कों पर था। प्रशंसकों की जमकर जश्न मनाने की सारी तैयारियां धरी की धरी रह गयी।
दक्षिण लंदन के क्रोयडोन में प्रशंसकों के लिये बने विशेष क्षेत्र में लोग रो रहे थे और एक दूसरे को सांत्वना दे रहे थे। लंदन के ट्रैफलगार स्क्वायर पर मौजूद सैकड़ों लोगों ने अपना गुस्सा बीयर की बोतलों पर निकाला।
उत्तरी इंग्लैंड के न्यूकास्टल में कुछ लोग हालांकि निराश टीम के समर्थन में खड़े भी हुए।
अठारह वर्षीय छात्रा मिली कार्सन ने कहा, ‘‘हमने लंबी राह तय कर ली थी, जीत महत्वपूर्ण होती। टीम ने देश को एकजुट कर दिया था। सभी इस मुश्किल दौर में खुशी के साथ जीवन बिता रहे थे। ’’
इंग्लैंड की टीम की फाइनल से पहले की सफलता ने देश की उम्मीदों को बढ़ा दिया था विशेषकर उस दौर में जबकि ब्रिटेन में कोरोना वायरस महामारी के कारण 128,000 से अधिक लोगों की जान गयी।
रविवार को लोगों ने मैच शुरू होने से काफी पहले ही जश्न की तैयारियां शुरू कर दी थी। इंग्लैंड ने जब दूसरे मिनट में गोल किया तो कुछ लोगों ने पार्टी मनानी भी शुरू कर दी थी। मैच आगे बढ़ने के साथ उनकी धड़कनें बढ़ती गयी जो पेनल्टी शूटआउट समाप्त होते ही थम सी गयी।
एपी
(यह सिंडिकेटेड न्यूज़ फीड से अनएडिटेड और ऑटो-जेनरेटेड स्टोरी है, ऐसी संभावना है कि लेटेस्टली स्टाफ द्वारा इसमें कोई बदलाव या एडिट नहीं किया गया है)