
जम्मू, 3 मार्च : जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने सोमवार को कहा कि मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली संप्रग सरकार के दौरान भारत और पाकिस्तान कश्मीर मुद्दे को सुलझाने के करीब पहुंच गए थे और उन्हें अपने जीवनकाल में पूर्व स्थिति की वापसी की उम्मीद नहीं है. जम्मू-कश्मीर विधानसभा के बजट सत्र के पहले दिन सिंह और चार अन्य पूर्व विधायकों को श्रद्धांजलि देते हुए अब्दुल्ला ने मनमोहन सिंह की प्रशंसा की और कहा कि उन्होंने विस्थापित कश्मीरी पंडितों की वापसी के लिए व्यावहारिक कदम उठाए और उनके कार्य समूह अब भी प्रासंगिक हैं. विधानसभा में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, पूर्व मंत्री सैयद गुलाम हुसैन गिलानी, पूर्व राज्यसभा सदस्य शमशेर सिंह मन्हास और पूर्व विधायक गुलाम हसन पर्रे और चौधरी प्यारा सिंह को श्रद्धांजलि देने के लिए दो मिनट का मौन रखा गया, जिनका नवंबर में अंतिम विधानसभा सत्र के बाद निधन हो गया था. उपराज्यपाल मनोज सिन्हा के अभिभाषण के बाद विधानसभा अध्यक्ष अब्दुल रहीम राठेर ने शोक प्रस्ताव रखा. शाम लाल शर्मा (भारतीय जनता पार्टी), जी ए मीर (कांग्रेस) और एम वाई तारिगामी (मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी) समेत कई सदस्यों ने भी सदन में अपनी बात रखी.
मुख्यमंत्री ने कहा, ‘‘पिछले विधानसभा सत्र (श्रीनगर में) में हमारे पास पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की अध्यक्षता वाली एक लंबी सूची थी और अब चार महीने बाद हमारे पास एक अन्य पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता वाली एक छोटी सूची है, जिन्होंने देश के लिए बहुत बड़ा योगदान दिया है.’’ उमर अब्दुल्ला ने सिंह के एक गांव (जो अब पाकिस्तान में है) से भारत के प्रधानमंत्री बनने तक की यात्रा तथा विशेष रूप से निजी क्षेत्र और सामाजिक कल्याण उपायों से संबंधित सुधारों को लागू करके भारत को एक आर्थिक शक्ति बनाने में उनके योगदान को याद किया. जम्मू-कश्मीर के बारे में मुख्यमंत्री ने कहा, ‘‘उन्होंने बाहरी देश (पाकिस्तान) के साथ समस्या का समाधान करने की कोशिश की. उन्होंने यह पहल नहीं की, बल्कि यह उन्हें विरासत में मिली, क्योंकि इसकी शुरुआत वाजपेयी और (तत्कालीन पाकिस्तान के राष्ट्रपति जनरल परवेज) मुशर्रफ ने की थी. उन्होंने प्रधानमंत्री (2004 में) बनने के बाद इस पहल को रोक दिया होता, लेकिन वह अच्छी तरह जानते थे कि वाजपेयी द्वारा की गई पहल को आगे बढ़ाना एक बड़ी जिम्मेदारी है.’’ उन्होंने आतंकवादी घटनाओं का स्पष्ट संदर्भ देते हुए कहा कि सिंह ने बिगड़ते हालात के बावजूद ईमानदारी से प्रयास किए. यह भी पढ़ें : मनमोहन सिंह के कार्यकाल में कश्मीर मुद्दा सुलझाने के करीब पहुंच गए थे भारत-पाक : उमर
उमर ने कहा, ‘‘मैं यह कहना चाहूंगा कि दोनों देश उस अवधि के दौरान इस (कश्मीर) समस्या को हल करने के करीब पहुंचे गए थे और मैं अपने जीवनकाल में उस स्थिति की वापसी नहीं देखता हूं.’’ उन्होंने कहा कि जब 2010 में स्थिति बिगड़ गई थी, तब सिंह ने कार्यसमूहों, चाहे वे राजनीति से संबंधित हों या शासन में सुधार के लिए हों, का गठन करके जख्मों पर मरहम लगाने का प्रयास किया और वे आज भी प्रासंगिक हैं. सिंह ने जम्मू-कश्मीर पर पांच कार्य समूहों का गठन किया था, ताकि राज्य में स्थायी शांति की स्थिति पैदा करके विकास के एक चरण की शुरुआत की जा सके. उमर ने विस्थापित कश्मीरी पंडितों का जिक्र करते हुए कहा कि हर कोई समुदाय के बारे में बात कर रहा है लेकिन उनके कल्याण के लिए व्यावहारिक कदम सिंह के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा उठाए गए.