उन्होंने कहा कि शीर्ष कानूनी अधिकारियों की तीखी आलोचना और विरोध के बावजूद सरकार की योजना है कि देश की न्यायिक प्रणाली में बदलाव किये जाएं।
नेतन्याहू ने कानूनी बदलावों को अपनी नई सरकार के एजेंडे का केंद्र बिंदु बना दिया है। हालांकि, इन प्रस्तावित बदलावों को लेकर व्यापक पैमाने पर विरोध किया जा रहा है।
न्यायिक प्रणाली में प्रस्तावित बदलाव से सुप्रीम कोर्ट की शक्ति कम हो जाएगी, सांसद सामान्य बहुमत से उन कानूनों को पारित कर सकेंगे, जिन्हें अदालत ने निरस्त कर दिया होगा। इसके अलावा न्यायाधीशों की नियुक्ति में सरकार को अधिक शक्ति मिल जाएगी तथा सरकारी कानूनी सलाहकार की स्वतंत्रता सीमित हो जाएगी।
प्रस्तावित बदलाव को लेकर विरोध के स्वर भी उठने लगे हैं। उच्चतम न्यायालय के एक शीर्ष न्यायाधीश ने प्रस्तावित बदलावों की आलोचना करते हुए इसे न्यायिक प्रणाली पर अनियंत्रित हमला करार दिया।
विरोध के बावजूद, नेतन्याहू ने मंत्रिमंडल की एक बैठक में कहा कि मतदाताओं ने न्यायिक प्रणाली में आमूल-चूल परिवर्तन के वादे के समर्थन में नवंबर के चुनावों में मतदान किया था।
नेतन्याहू ने कहा, ‘‘हम न्यायिक प्रणाली में इस तरह से बदलाव करेंगे, जिससे व्यक्तिगत अधिकार पूरी तरह से सुरक्षित रहेंगे और न्याय प्रणाली में जनता का विश्वास बहाल होगा।’’
नेतन्याहू और उनके सहयोगी इन बदलावों को शासन की प्रक्रिया को आसान बनाने के तरीके के रूप में देख रहे हैं।
इन प्रस्तावित बदलावों को सरकार बनने के कुछ सप्ताह बाद पेश किया गया था।
नेतन्याहू का कहना है कि ये बदलाव संसदीय चर्चा के बाद किये जायेंगे। लेकिन आलोचकों का कहना है कि व्यवस्था में इतने बड़े बदलाव के लिए अधिक गंभीर और विचारशील दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है।
आलोचकों का दावा है कि बदलाव नेतन्याहू को भ्रष्टाचार के उनके मुकदमे में दोषसिद्धि से बचने में मदद कर सकते हैं, या मुकदमे को पूरी तरह से खारिज कर सकते हैं।
हालांकि, नेतन्याहू ने इस तरह के दावों को खारिज किया है।
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