विपक्ष की जलवायु परिवर्तन, कार्बन उत्सर्जन पर प्रतिबद्धतओं पर योजनाबद्ध तरीके से काम करने की मांग
जलवायु (Photo Credits: pixabay)

नयी दिल्ली, 10 दिसंबर : जलवायु परिवर्तन के कारण उत्पन्न चुनौतियों पर चिंता व्यक्त करते हुए विपक्षी दलों ने शुक्रवार को कहा कि कार्बन उत्सर्जन एवं इससे जुड़े अन्य विषयों पर अमेरिका, चीन जैसे अमीर एवं विकसित देशों की प्रतिबद्धता व्यावहारिक धरातल पर कमजोर होते हैं, ऐसे में भारत को अपनी प्रतिबद्धताओं पर काफी सोच समझकर एवं योजनाबद्ध तरीके से काम करना चाहिए . विपक्षी दलों ने पूछा कि कार्बन उत्सर्जन में कटौती करने के महत्वाकांक्षी लक्ष्यों को हासिल करने पर खर्च को कहां से पूरा किया जायेगा . सदन में नियम 193 के तहत जलवायु परिवर्तन पर शुरू हुई चर्चा को आगे बढ़ाते हुए भाजपा सांसद रमेश बिधूड़ी ने आरोप लगाया कि कांग्रेस नीत पूर्ववर्ती सरकार के समय जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण से निपटने के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठाये गए . उन्होंने कहा कि सरकार को ग्लासगो में हुए सीओपी26 सम्मेलन के समझौते पर काम करते हुए देश की जरूरतों और प्रतिबद्धताओं का ध्यान रखना चाहिए.

बिधूड़़ी ने जलवायु एवं पर्यावरण के क्षेत्र प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार के प्रयासों की सराहना की . उन्होंने कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा कि देश की आजादी के 75 साल के इतिहास में लगभग 55 साल तक एक परिवार के शासन में पर्यावरण संरक्षण के लिए कुछ नहीं किया. उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी ने स्वच्छता के संदेश पर कांग्रेस नीत सरकारों ने कोई ठोस पहल नहीं की और अब प्रधानमंत्री मोदी देश को स्वच्छ बनाने के सपनों को पूरा कर रहे हैं. भाजपा सदस्य ने भोपाल गैस त्रासदी को लेकर भी कांग्रेस पर निशाना साधा . उन्होंने दिल्ली के मुख्यमंत्री की आलोचना करते हुए कहा कि राजधानी में वायु प्रदूषण के नाम पर यातायात सिग्नल पर गाड़ी कुछ सैकंड के लिए बंद करने का अभियान ‘रेड लाइट ऑन, गाड़ी ऑफ’ चलाया जा रहा है जबकि विशेषज्ञों का कहना है कि गाड़ी 30 सैकंड के लिए भी बंद करके पुन: चालू करने से प्रदूषण 10 गुना होता है. यह भी पढ़ें : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रॉयल गोल्ड मेडल से नवाजे जाने वाले बालकृष्ण दोशी को बधाई दी

बिधूड़ी ने कहा कि दिल्ली सरकार को ऐसा अभियान चलाने से पहले विशेषज्ञों और अधिकारियों की ठीक से राय ले लेनी चाहिए थी. चर्चा में भाग लेते हुए आरएसपी के एन के प्रेमचंद्रन ने कहा कि 1992 से लेकर 2021 के ग्लासगो सम्मेलन तक ग्लोबल वॉर्मिंग से निपटने के समझौते में आधारभूत सिद्धांत के तौर पर विकासशील और विकसित देशों की गतिविधियों के बीच उनकी क्षमता के हिसाब से आकलन किया जाता रहा है. उन्होंने कहा कि अब विकासशील और विकसित देशों के बजाय प्रमुख अर्थव्यवस्था की अवधारणा का इस्तेमाल किया जा रहा है और ऐसे में भारत भी अमेरिका तथा चीन जैसे अमीर देशों की सूची में आ जाता है और उसकी सकारात्मक प्रतिबद्धता होने के बाद भी व्यावहारिक धरातल पर उनका पक्ष कमजोर होता है. प्रेमचंद्रन ने कहा कि क्या भारत सरकार इस नये घटनाक्रम पर चिंतित है क्योंकि अमीर देशों और गरीब देशों के कार्बन उत्सर्जन में समानता नहीं हो सकती. उन्होंने कहा कि अमीर देश इस बाबत गरीब देशों की आड़ में छिप रहे हैं, ऐसे में भारत को अपनी प्रतिबद्धताओं पर अमल काफी सोच समझकर और योजनाबद्ध तरीके से करना चाहिए . चर्चा में हिस्सा लेते हुए द्रमुक के डी रविकुमार ने भी भाग लिया और जलवायु परिवर्तन से पैदा हो रही समस्याओं पर चिंता जताई.