नयी दिल्ली, 13 अक्टूबर दिल्ली उच्च न्यायालय ने बृहस्पतिवार को पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) के पूर्व अध्यक्ष ई अबूबकर की जमानत अर्जी पर विचार करने से इनकार कर दिया। बकर ने चिकित्सा आधार पर जमानत का अनुरोध किया था।
हाल में प्रतिबंधित संगठन के खिलाफ कार्रवाई के दौरान राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) ने बकर को गिरफ्तार किया था। न्यायमूर्ति अनूप कुमार मेंदीरत्ता ने यह देखते हुए 70 वर्षीय याचिकाकर्ता को अपनी जमानत अर्जी वापस लेने की अनुमति दे दी कि उनकी अदालत के पास इस पर निर्णय लेने के लिए आवश्यक ‘‘शक्ति’’ नहीं है।
एनआईए की तरफ से पेश विशेष लोक अभियोजक अक्षय मलिक ने दलील दी कि जमानत अर्जी सुनवाई योग्य नहीं है क्योंकि एनआईए अधिनियम के तहत याचिकाकर्ता को निचली अदालत द्वारा आदेश पारित किए जाने के बाद उच्च न्यायालय में अपील करने की अनुमति है, जहां खंडपीठ सुनवाई करती है।
न्यायाधीश ने याचिकाकर्ता से कहा, ‘‘एनआईए (कानून) एक विशेष अधिनियम है। हमारे पास (जमानत अर्जी पर आदेश पारित करने का) अधिकार नहीं है।’’
एनआईए ने बकर को 22 सितंबर को गिरफ्तार किया था और वह अभी न्यायिक हिरासत में हैं। उन्होंने इस आधार पर जमानत का अनुरोध किया था कि वह कैंसर, पार्किंसंस और मधुमेह सहित विभिन्न गंभीर बीमारियों से पीड़ित हैं।
पीएफआई पर 28 सितंबर को राष्ट्रव्यापी प्रतिबंध लगाए जाने से पहले छापेमारी के दौरान कई राज्यों में बड़ी संख्या में कथित पीएफआई कार्यकर्ताओं को हिरासत में लिया गया था या गिरफ्तार किया गया था।
उच्च न्यायालय के समक्ष अर्जी में कहा गया कि याचिकाकर्ता ने अपने बिगड़ते स्वास्थ्य के कारण एक अक्टूबर को अंतरिम रिहाई के लिए अर्जी दी लेकिन निचली अदालत ने उन्हें राहत देने से इनकार कर दिया और इसके बजाय उनकी पुलिस हिरासत छह दिन के लिए बढ़ा दी।
अर्जी में कहा गया कि निरंतर कैद के कारण याचिकाकर्ता के व्यक्तिगत स्वतंत्रता और स्वास्थ्य के मौलिक अधिकार का उल्लंघन हो रहा है। अर्जी में कहा गया कि याचिकाकर्ता की चिकित्सा स्थिति ‘‘गंभीर’’ है।
याचिकाकर्ता ने दावा किया कि कथित अपराध में उनकी कोई भूमिका या संलिप्तता नहीं है और ‘‘खासकर याचिकाकर्ता की बिगड़ती स्वास्थ्य स्थिति के दौरान लगातार हिरासत में रखने से कोई उद्देश्य पूरा नहीं होगा।’’
सरकार ने पीएफआई और उसके कई सहयोगी संगठनों पर आईएसआईएस जैसे वैश्विक आतंकवादी समूहों के साथ ‘‘जुड़ाव’’ के आरोपों पर 28 सितंबर को कड़े आतंकवाद रोधी कानून यूएपीए के तहत पांच साल के लिए प्रतिबंध लगा दिया।
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