नयी दिल्ली, 31 दिसंबर राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की एक अदालत ने दो साल पुराने हत्या के प्रयास के एक मामले में पीड़ित की गवाही में खामियां पाए जाने के बाद दो लोगों को बरी कर दिया है।
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश (एएसजे) विपिन खरब ने कहा कि गवाही न तो पूरी तरह से विश्वसनीय है और न ही पूरी तरह से अविश्वसनीय तथा तथ्यों के आधार पर विभिन्न पहलुओं की पुष्टि किये जाने की आवश्यकता है।
अदालत अफशान और फैसल के खिलाफ एक मामले की सुनवाई कर रही थी, जिन पर 28 अक्टूबर, 2022 को मोहम्मद यावर नामक व्यक्ति को चाकू मारने का आरोप है।
अदालत ने 22 दिसंबर को दिए गए अपने फैसले में कहा कि शिकायतकर्ता या पीड़ित की एकमात्र गवाही के आधार पर किसी व्यक्ति को दोषी ठहराने में कोई कानूनी बाधा नहीं है, लेकिन यावर के बयानों में संदेह को देखते हुए उसे पुष्टि पर जोर देना पड़ा।
आदेश में कहा गया है, "सामान्य रूप से, इस संदर्भ में मौखिक गवाही को तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है, अर्थात्, पूरी तरह से विश्वसनीय, पूरी तरह से अविश्वसनीय और न तो पूरी तरह से विश्वसनीय या न तो पूरी तरह से अविश्वसनीय।"
पीड़ित के अनुसार, चाकू घोंपे जाने और हमला किए जाने के बाद वह घर चला गया था, जो अपराध स्थल से लगभग दो किलोमीटर दूर था।
अदालत ने कहा, ‘‘पीड़ित इस हद तक स्वस्थ और होश में था कि वह बिना किसी की सहायता के 1-2 किलोमीटर की दूरी पर स्थित अपने घर तक पहुंच गया था। इतना ही नहीं, वह इलाज के लिए न तो किसी अस्पताल गया, न तो किसी पुलिसकर्मी या अपने परिजनों को कोई कॉल ही की, जबकि ऐसी हालत में कोई भी विवेकशील व्यक्ति ऐसा (पुलिस या परिजनों को कॉल) करता।’’
अदालत ने कहा, ‘‘पीड़ित की गवाही असंगत पाई गई, विशेष रूप से हमलावरों की संख्या, अपराध के पीछे का मकसद और घटना के बाद उसका आचरण।’’
अदालत ने कहा, ‘‘इसलिए अभियोजन पक्ष के गवाह संख्या-एक (यावर) की गवाही तीसरी श्रेणी में आती है, यानी यह न तो पूरी तरह विश्वसनीय है और न ही पूरी तरह अविश्वसनीय। इसलिए, तथ्यों के आधार पर विभिन्न पहलुओं की पुष्टि की आवश्यकता है। अभियोजन पक्ष द्वारा उसकी (यावर की) गवाही की पुष्टि के लिए कोई अन्य साक्ष्य रिकॉर्ड पर नहीं लाया गया है।’’
अदालत ने कहा कि मामले का दूसरा चश्मदीद गवाह मुकर गया और उसने आरोपी व्यक्तियों की पहचान के बारे में अभियोजन पक्ष के सिद्धांत का समर्थन नहीं किया।
एएसजे ने कहा, "अदालत को यह निष्कर्ष निकालने में कोई हिचकिचाहट नहीं है कि घायल यावर की गवाही में कई विरोधाभास हैं और यह सुसंगत नहीं है तथा इसकी सत्यता की पूर्णरूपेण पुष्टि नहीं की जा सकती।’’
अभियोजन पक्ष दोनों आरोपियों के खिलाफ उचित संदेह से परे आरोपों को साबित करने में विफल रहा, इसलिए इन्हें बरी कर दिया गया।
जामिया नगर पुलिस थाने ने दोनों के खिलाफ आईपीसी की धारा 307 (हत्या का प्रयास) और 34 (सामान्य इरादा) के तहत एक प्राथमिकी दर्ज की थी।
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