नयी दिल्ली, 17 नवंबर दिल्ली उच्च न्यायालय ने फिरौती के लिए एक 10 साल के बच्चे का अपहरण करने और पैसे लेने के बाद उसकी हत्या करने के जुर्म में एक व्यक्ति को सुनाई गई उम्रकैद की सजा बरकरार रखी है।
उच्च न्यायालय ने साक्ष्यों और पक्षकारों की दलीलों की पड़ताल करने के बाद कहा कि अभियोजन पक्ष ने अपीलकर्ता सिद्धार्थ जेटली का दोष साबित कर दिया है, जिस पर संदेह नहीं किया जा सकता है।
न्यायमूर्ति मुक्ता गुप्ता और न्यायमूर्ति अनीश दयाल की पीठ ने अक्टूबर 2007 में फिरौती के लिए अपहरण और हत्या के अपराधों के लिए जेटली को निचली अदालत द्वारा दोषी ठहराये जाने तथा आजीवन कारावास की सजा को चुनौती देने वाली अपील खारिज कर दी।
निचली अदालत ने दोषी पर दो लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया था।
पीठ ने कहा, ‘‘अपीलकर्ता (जेटली) द्वारा अपनाया गया अपराध का तरीका स्पष्ट तौर पर पैशाचिक था, क्योंकि उसने आवासीय सोसाइटी से एक निश्चित समय पर, जान-पहचान वाले परिवार का बच्चा अगवा किया था और फिरौती की रकम मांगते हुए उस बच्चे की हत्या भी कर दी थी। वह बच्चे के माता-पिता से फिरौती भी सुनिश्चित करना चाहता था, जबकि उसने बाद में न केवल सिम को फेंक दिया था, बल्कि यमुना नदी में/या उसके आसपास मोबाइल हैंडसेट भी फेंक दिया था।
नाबालिग लड़के के पिता ने अक्टूबर 2007 में प्रशांत विहार थाने में शिकायत दर्ज कराई कि उनके बेटे का अपहरण कर लिया गया है। शुरुआत में अपहरणकर्ता ने डेढ़ करोड़ रुपये की मांग की, लेकिन बाद में फिरौती की रकम 33 लाख रुपये तय की गई।
अभियोजन पक्ष के अनुसार, 15 अक्टूबर, 2007 को जब बच्चा स्कूल से घर लौट रहा था, तब जेटली ने बच्चे का अपहरण कर लिया था।
मोबाइल फोन के कॉल डिटेल रिकॉर्ड और आईएमईआई नंबर तथा रिकॉर्ड की गई बातचीत का विश्लेषण करने के बाद पुलिस ने आरोपी को ‘ओल्ड राजिंदर नगर’ स्थित उसके घर से गिरफ्तार किया था और फिरौती की रकम उसके बेडरूम से बरामद की थी। अगले दिन आरोपी की निशानदेही पर पुलिस ने सोनीपत के मुरथल क्षेत्र के एक गांव के पास झाड़ियों से बच्चे का शव बरामद किया था।
उस व्यक्ति ने निचली अदालत के फैसले को यह कहते हुए चुनौती दी थी कि पूरा मामला परिस्थितिजन्य साक्ष्य पर आधारित था और निचली अदालत ने कई टूटी कड़ियों और अस्पष्ट परिस्थितियों को नजरअंदाज कर दोषसिद्धि और सजा का आदेश दिया था।
उच्च न्यायालय ने हालांकि कहा, ‘‘यह अदालत पाती है कि मृतक की हत्या के लिए अपीलकर्ता का दोष अभियोजन पक्ष द्वारा उचित संदेह से परे साबित किया गया है। नतीजतन, इस अदालत को निचली अदालत द्वारा दोषसिद्धि के अक्षेपित फैसले और सजा पर दिये गये आदेश में कोई त्रुटि नजर नहीं आती। तदनुसार, अपील खारिज की जाती है।’’
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