न्यायालय ने केन्द्र से कहा:कोविड-19 के दौरान श्रमिकों को पूरा पारिश्रमिक देने के खिलाफ याचिका को आवश्यकता से ले
जियो

नयी दिल्ली, 26 मई उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को केन्द्र से कहा कि कोविड-19 लोकडाउन के दौरान निजी प्रतिष्ठानों को अपने श्रमिकों को पूरा पारिश्रमिक देने संबंधी गृह मंत्रालय की 29 मार्च की अधिसूचना को चुनौती देने वाली याचिकाओं में उठाये गये मुद्दे को तात्कालिकता के साथ ले। पीठ ने कहा कि इस अधिसूचना से बहुत अधिक लोग प्रभावित हैं।

न्यायमूर्ति अशोक भूषण, न्यायमूति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति एम आर शाह की पीठ ने वीडियो कांफ्रेंस के जरिये इस मामले की सुनवाई करते हुये केन्द्र को इन याचिकाओं पर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया। पीठ इस मामले पर अब अगले सप्ताह सुनवाई करेगी।

पीठ ने कहा कि इन लघु उद्योगों के खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं करने संबंधी उसका अंतरिम आदेश जारी रहेगा।

अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने पीठ से कहा कि केन्द्र ने 17 मई को 29 मार्च के गृह मंत्रालय के आदेश के स्थान पर नयी अधिसूचना जारी की है।

इस मामले में पेश सालिसीटर जनरल तुषार मेहता से पीठ ने कहा, ‘‘इसे आवश्यकता के आधार पर लिया जाये। अनेक लोग इससे प्रभावित हैं।’’

गृह मंत्रालय की इस अधिसूचना को माइक्रो, लघु और मध्यम उपक्रमों के संगठन ‘एमएसएमई’ तथा कई अन्य उद्यमियों ने चुनौती दी थी। इन प्रतिष्ठानों का कहना था कि काम नहीं होने के बावजूद श्रमिकों को पूरे पारिश्रमिक का भुगतान करने का मतलब कारोबार बंद करना होगा जिसका मतलब स्थाई रूप से बेरोजगारी होगा।

शीर्ष अदालत ने 15 मई को इस मामले की सुनवाई के दौरान टिप्पणी की थी कि 29 मार्च की अधिसूचना एक बहुअर्थी आदेश है और इसे एक बड़ा सवाल उठता है जिसका जवाब जरूरी है। इस अधिसूचना में कंपनियों से कहा गया था कि लॉकडाउन के दौरान परिचालन नहीं होने पर भी उन्हें अपने श्रमिकों को पूरे पारिश्रमिक का भुगतान करना होगा।

न्यायालय ने कहा था कि लॉकडाउन के दौरान बहुत ही छोटी इकाईयां प्रभावित हैं और अगर उनके पास आमदनी नहीं होगी तो वे अपने श्रमिकों को भुगतान कहां से करेंगी।

शीर्ष अदालत ने यह भी कहा था कि अगर सरकार इन छोटी इकाईयों की मदद नहीं करेगी तो वे शायद अपने श्रमिकों को पारिश्रमिक का भुगतान नहीं कर पायेंगी।

अनूप

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