नयी दिल्ली, आठ अगस्त उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को पटना उच्च न्यायालय को सलाह दी कि वह बिहार के न्यायिक अधिकारी के खिलाफ चल रही अनुशासनात्मक कार्यवाही को ‘‘वापस’’ले ले।
न्यायिक अधिकारी ने अत्याधिक तेजी से न्याय देने की वजह से उच्च न्यायालय द्वारा उसे निलंबित करने के फैसले को चुनौती दी है।
न्यायमूर्ति यू.यू.ललित और न्यायमूर्ति एस.आर.भट की पीठ अररिया के अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश शशि कांत राय की याचिका पर सुनवाई कर रही थी।
पीठ ने उच्च न्यायालय का पक्ष रखने के लिए पेश अधिवक्ता से कहा,‘‘हमारी नेक सलाह है कि सबकुछ वापस लें।’’
शीर्ष अदालत ने टिप्पणी की, ‘‘ अगर आप वापस नहीं लेना चाहते, तो हमें इसपर विचार करना होगा।’’पीठ ने कहा कि इससे दूसरों के लिए ‘गलत’ संदेश जाएगा।
अदालत ने कहा, ‘‘इसे इतना न खींचे जिससे न्यायिक अधिकारी का भविष्य व संभावनाएं प्रभावित हों और तब संस्थान के लिए भी पूरी स्थिति पूरी तरह से असहज करने वाली होगी।’’
राय ने अपनी अर्जी में कहा कि ‘‘ उनके मानने के पीछे तथ्य’’है कि उनके खिलाफ ‘‘ संस्थागत पक्षपात’’ किया गया क्योंकि उन्होंने छह साल की बच्ची से दुष्कर्म संबंधी पॉक्सो के मामले की सुनवाई एक दिन के भीतर पूरी कर ली।
उन्होंने कहा कि एक अन्य मामले में उन्होंने चार दिन की सुनवाई में ही मृत्युदंड की सजा सुना दी। राय ने कहा कि इन फैसलों की वृहद पैमाने पर चर्चा हुई और सरकार एवं जनता ने सराहा।
शीर्ष अदालत ने इस मामले पर 15 अगस्त को या इससे पहले जरूरी कदम उठाने को कहा।पीठ ने इस मामले की अगली सुनवाई 18 अगस्त को सूचीबद्ध की है।
याचिका में आरोप लगाया गया कि आठ फरवरी 2022 को ‘‘नॉन स्पीकिंग’’ (बिना स्पष्ट कारण बताए)जारी आदेश में तत्काल प्रभाव से निलंबन ‘स्पष्ट रूप से मनमाना और नैसर्गिक न्याय के सिद्धांत का उल्लंघन करता है।
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