नयी दिल्ली, चार अगस्त उच्चतम न्यायालय ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता बहाल करने का मार्ग प्रशस्त करते हुए मोदी उपनाम को लेकर की गई टिप्पणी के संबंध में 2019 में उनके खिलाफ दर्ज आपराधिक मानहानि मामले में शुक्रवार को उनकी दोषसिद्धि पर रोक लगा दी।
दोषसिद्धि पर यह रोक इस आधार पर लगाई गई कि गुजरात के सूरत की अदालत यह बताने में विफल रही कि दोषी ठहराए जाने पर राहुल गांधी अधिकतम दो साल की सजा के हकदार क्यों थे, जिसके कारण उन्हें संसद के निचले सदन से अयोग्य घोषित कर दिया गया। शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि अगर सजा एक दिन भी कम होती तो वह संसद से अयोग्य करार नहीं होते। न्यायालय के इस फैसले के बाद गांधी 2024 का लोकसभा चुनाव लड़ सकेंगे।
न्यायालय ने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं कि गांधी के बयान ठीक नहीं थे और सार्वजनिक जीवन में रहने वाले व्यक्ति से सार्वजनिक भाषण देते समय सावधानी बरतने की अपेक्षा की जाती है।
इसके साथ, अदालत ने यह भी कहा कि गांधी की दोषसिद्धि और उसके बाद संसद की सदस्यता से अयोग्य करार दिए जाने से न केवल सार्वजनिक जीवन में बने रहने का उनका अधिकार प्रभावित हुआ, बल्कि मतदाताओं के अधिकार को भी प्रभावित किया, जिन्होंने उन्हें अपने निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने के लिए चुना था।
गांधी (53) लोकसभा में केरल की वायनाड सीट का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। उन्होंने कांग्रेस मुख्यालय में संवाददाता सम्मेलन में कहा, ‘‘सच्चाई हमेशा जीतती है, आज नहीं तो कल या परसों। मैं लोगों को उनके समर्थन के लिए धन्यवाद देता हूं।’’
विपक्षी दलों के गठबंधन ‘इंडिया’ (इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इन्क्लूसिव अलायंस) के कई नेताओं ने भी अदालत के फैसले की सराहना की।
कांग्रेस ने इस बात पर जोर दिया कि सरकार के किसी भी ‘‘बहाने’’ के कारण गांधी की संसद सदस्यता बहाल करने में देरी ‘दुर्भावनापूर्ण’, ‘अनुचित’ और संसदीय लोकतंत्र के दिल और आत्मा के पूरी तरह से विपरीत होगी।
लोकसभा में कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला से मुलाकात की और उनसे गांधी की सदस्यता जल्द से जल्द बहाल करने का आग्रह किया।
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा, ‘‘राहुल गांधी को संसद की सदस्यता से अयोग्य ठहराने में 24 घंटे लगे। अब देखते हैं कि उनकी सदस्यता बहाल करने में कितने घंटे लगेंगे। हम लोकसभा अध्यक्ष के आदेश का इंतजार करेंगे।’’
चौधरी ने संवाददाताओं से कहा, ‘‘हम चाहते हैं कि राहुल गांधी लोकसभा में सरकार के खिलाफ 'अविश्वास प्रस्ताव' पर बोलें।’’ प्रस्ताव पर आठ से 10 अगस्त तक चर्चा होगी। कांग्रेस प्रवक्ता और गांधी के वकील अभिषेक सिंघवी ने कहा कि लोगों के हितों के लिए गांधी की आवाज जल्द ही संसद में सुनी जाएगी।
कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाद्रा ने भगवान बुद्ध को उद्धृत करते हुए कहा, ‘‘तीन चीजों को लंबे समय तक छिपाया नहीं जा सकता: सूर्य, चंद्रमा और सत्य।’ उन्होंने कहा, ‘‘न्यायपूर्ण फैसला देने के लिए उच्चतम न्यायालय का धन्यवाद। सत्यमेव जयते।’’
फैसले पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सूचना और प्रौद्योगिकी विभाग के प्रमुख अमित मालवीय ने कहा कि संसद ‘अभी कुछ हद तक कुछ कर सकती है’ लेकिन कांग्रेस नेता पर अब भी खतरा बना हुआ है, क्योंकि उनके खिलाफ आपराधिक मानहानि के कई अन्य मामले लंबित हैं।
शीर्ष अदालत गुजरात उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली राहुल की एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी। उच्च न्यायालय ने सूरत से भाजपा विधायक पूर्णेश मोदी द्वारा दायर मानहानि मामले में कांग्रेस नेता की दोषसिद्धि पर रोक लगाने के अनुरोध वाली उनकी याचिका खारिज कर दी थी।
गांधी ने अपनी टिप्पणी के लिए माफी मांगने से इनकार कर दिया था, लेकिन उच्चतम न्यायालय से आग्रह किया था कि उनकी टिप्पणी के कारण शुरू आपराधिक मानहानि मामले में उनकी दोषसिद्धि पर रोक लगाई जाए और जोर दिया था कि वह दोषी नहीं हैं।
पूर्णेश मोदी ने 13 अप्रैल 2019 को कर्नाटक के कोलार में एक चुनावी सभा में मोदी उपनाम के संबंध में की गई कथित विवादित टिप्पणी को लेकर राहुल के खिलाफ आपराधिक मानहानि का मुकदमा दर्ज कराया था। राहुल ने सभा में टिप्पणी की थी कि ‘‘सभी चोरों का एक ही उपनाम मोदी कैसे हो सकता है?’’
न्यायमूर्ति बी आर गवई, न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने कहा कि निचली अदालत के न्यायाधीश ने राहुल गांधी को दोषी ठहराते समय कोई कारण नहीं बताया, सिवाय इसके कि उन्हें अवमानना मामले में शीर्ष अदालत ने चेतावनी दी थी।
शीर्ष अदालत ने राफेल मामले के संबंध में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ उनकी ‘‘चौकीदार चोर है’’ टिप्पणी पर राहुल गांधी द्वारा बिना शर्त माफी मांगे जाने के बाद उनके खिलाफ अवमानना कार्यवाही बंद करते हुए भविष्य में उन्हें और अधिक सावधान रहने की चेतावनी दी थी।
न्यायालय ने कहा कि जहां तक दोषसिद्धि का सवाल है, तो भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 499 (मानहानि) के तहत दंडनीय अपराध के लिए सजा अधिकतम दो साल की कैद या जुर्माना या दोनों है और निचली अदालत ने अधिकतम दो वर्ष की सजा सुनाई।
पीठ ने कहा, ‘‘अवमानना मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा दी गई चेतावनी के अलावा निचली अदालत के न्यायाधीश द्वारा इसके (दोषसिद्धि) लिए कोई अन्य कारण नहीं बताया गया। केवल निचली अदालत के न्यायाधीश द्वारा सुनाई गई इस अधिकतम सजा के कारण, वह जन प्रतिनिधित्व अधिनियम के प्रावधानों के दायरे में आ गए।’’
पीठ ने कहा, ‘‘यदि सजा एक दिन कम होती, तो प्रावधान लागू नहीं होते, खासकर जब कोई अपराध गैर संज्ञेय, जमानती और समझौता योग्य हो। निचली अदालत के न्यायाधीश से कम से कम यह अपेक्षा थी कि वह अधिकतम सजा देने के लिए कुछ कारण बताते। हालांकि अपीलीय अदालत और उच्च न्यायालय ने दोषसिद्धि पर रोक को खारिज करने के लिए काफी पन्ने भरे हैं, लेकिन उनके आदेशों में इन पहलुओं पर विचार नहीं किया गया है।’’
शीर्ष अदालत ने गांधी के खिलाफ अवमानना मामले में अपने पूर्व के आदेश का हवाला देते हुए कहा कि अवमानना याचिका में अपना हलफनामा दाखिल करते समय उनसे ऐसी टिप्पणियां करने में अधिक सावधान रहने और संयम बरतने को कहा गया था, जो कथित तौर पर मानहानिकारक हों।
पीठ ने कहा, ‘‘इसमें कोई संदेह नहीं कि बयान ठीक नहीं थे और सार्वजनिक जीवन में रहने वाले व्यक्ति से सार्वजनिक भाषण देते समय सावधानी बरतने की अपेक्षा की जाती है। इन पहलुओं को ध्यान में रखते हुए और चूंकि निचली अदालत के न्यायाधीश द्वारा अधिकतम सजा देने के लिए कोई कारण नहीं बताया गया, दोषसिद्धि के आदेश पर अंतिम फैसला आने तक रोक लगाने की जरूरत है।’’
शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया कि वर्तमान अपील का लंबित रहना अपीली अदालत में अपील की राह में बाधक नहीं बनेगा, जिसका निर्णय कानून के अनुसार उसके गुण-दोष के आधार पर किया जाएगा।
(यह सिंडिकेटेड न्यूज़ फीड से अनएडिटेड और ऑटो-जेनरेटेड स्टोरी है, ऐसी संभावना है कि लेटेस्टली स्टाफ द्वारा इसमें कोई बदलाव या एडिट नहीं किया गया है)