न्यायालय ने अर्नब गोस्वामी की दंडात्मक कार्रवाई से संरक्षण की अवधि बढ़ाई
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नयी दिल्ली, 11 मई उच्चतम न्यायालय ने रिपब्लिक टीवी के प्रधान संपादक अर्नब गोस्वामी को किसी भी प्रकार की दंडात्मक कार्रवाई से प्राप्त संरक्षण की अवधि सोमवार को बढ़ा दी। न्यायालय ने इसके साथ ही अर्नब के समाचार कार्यक्रम के दौरान कुछ टिप्पणियो की वजह से एक समुदाय की धार्मिक भावनाओं को आहत करने के आरोप में मुंबई पुलिस द्वारा दर्ज प्राथमिकी रद्द करने के लिये उनकी याचिका पर सुनवाई पूरी कर ली। इस याचिका पर फैसला बाद में सुनाया जायेगा।

न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड़ और न्यायमूर्ति एम आर शाह की पीठ ने अर्नब गोस्वामी की याचिका पर वीडियो कांफ्रेन्सिंग के माध्यम से सुनवाई की। सुनवाई के दौरान अर्नब की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे, केन्द्र की ओर से सालिसीटर जनरल तुषार मेहता और महाराष्ट्र सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल की दलीलों को सुना।

अर्नब गोस्वामी के खिलाफ नयी प्राथमिकी दो मई को दर्ज की गयी है। इससे पहले, पालघर में दो साधुओं सहित तीन व्यक्तियों की पीट पीट कर हत्या किये जाने की घटना पर समाचार कार्यक्रम में अर्नब द्वारा कांग्रेस की मुखिया सोनिया गांधी के बारे में कथित रूप से मानहानिक कारक टिप्पणियों की वजह से उनके खिलाफ कई राज्यों में प्राथमिकी और शिकायतें दर्ज करायी गयी थीं।

अर्नब ने न्यायालय में दावा किया कि मुंबई पुलिस ने कथित मानहानिकारक बयानों के बारे में दर्ज प्राथमिकी के मामले में उनसे 12 घंटे पूछताछ की और ऐसा करने वाले दो जांच अधिकारियों में से एक अधिकारी में कोविड-19 के संक्रमण की पुष्टि हुयी है।

सभी पक्षों को सुनने के बाद पीठ ने कहा कि प्राथमिकी रद्द करने की अर्नब की याचिका और महाराष्ट्र पुलिस की अर्जी पर वह इस सप्ताह के उत्तरार्द्ध में आदेश सुनाया जायेगा। महाराष्ट्र पुलिस ने अपनी अर्जी में कहा है कि अर्नब गोस्वामी पूछताछ के दौरान जांच अधिकारियों को कथित रूप से धमका कर भय का माहौल पैदा कर रहे हैं।

सुनवाई के दोरान अर्नब की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने कहा कि यह कुल मिलाकर एक पत्रकार को एक राजनीतिक दल द्वारा निशाना बनाये जाने का मामला है क्योंकि सारे शिकायतकर्ता एक ही राजनीतिक दल के सदस्य हैं। उन्होंने कहा कि उन्हें (राजनीतिक दल) सरकार से परेशानी है और वे इस पत्रकार को सबक सिखाना चाहते हैं क्योंकि उनका असली मकसद असहमति की आवाज को दबाना है।

साल्वे ने कहा, ‘‘इसका प्रेस की आजादी पर बहुत बुरा असर होगा क्योंकि प्रेस का संस्थानीकरण नहीं हुआ है जबकि दूसरी संस्थाओं को संरक्षण प्राप्त है।’’ उन्होंने कहा कि न्यायाधीश, सांसद और नौकरशाहों तक को संरक्षण प्राप्त है।

साल्वे ने कहा, ‘‘हमें दोनों के बीच संतुलन बनाना होगा।’’

उन्होंने कहा कि शीर्ष अदालत के 24 अप्रैल के आदेश के बाद 25 अप्रैल को अगले दिन अर्नब गोस्वामी को इस मामले के सिलसिले में पुलिस के समक्ष पेश होने का नोटिस दिया गया था।

इस पर पीठ ने कहा कि इन सारे बिन्दुओं पर अग्रिम जमानत की अर्जी या फिर प्राथमकी रद्द कराने की याचिका पर सुनवाई के दैरान बंबई उच्च न्यायालय में बहस की जा सकती है। पीठ ने कहा कि वह पालघर मामले से संबंधित प्रकरण में शीर्ष अदालत द्वारा अर्नब को दी गयी अंतरिम संरक्षण की अवधि खत्म होने पर उन्हें उच्च न्यायालय जाने की छूट प्रदान कर सकती है।

पीठ ने कहा कि अगर अर्नब चाहते हैं कि मुंबई में उनके खिलाफ दर्ज प्राथमकी रद्द की जाये तो वह उच्च न्यायालय जा सकते हैं। पीठ ने कहा कि उसने इस मामले में पहले दखल दिया था क्योंकि एक ही घटना को लेकर कई प्राथमिकी दर्ज की गयी थी।।

पीठ ने कहा, ‘‘हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि किसी व्यक्ति को परेशान नहीं किया जाये लेकिन हम ऐसा माहौल भी पैदा नहीं करना चाहते जिसमें किसी व्यक्ति विशेष को कार्यवाही की सामान्य प्रक्रिया से छूट प्रदान की जाये।

साल्वे ने कहा कि पालघर घटना से संबंधित टिप्पणियों से जुडा मामला सीबीआई को सौंपा जा सकता है।उन्होंने जांच के दौरान मुंबई पुलिस द्वारा पूछे गये सवालों के औचित्य पर सवाल उठाये और कहा कि उनसे संपादकीय टीम और सामग्री के विवरण के बारे में पूछताछ की गयी। अर्नब से बार बार यह सवाल किया गया कि क्या उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष का अपमान किया और इस चैनल में किसका धन लगा हुआ है।

केन्द्र की ओर से सालिसीटर जनरल तुषार मेहता ने इस मामले को अजीबोगरीब बताया और कहा कि पुलिस आरोपी पर दबाव डालने के आरोप लगा रही है और उससे 12 घंटे पूछताछ भी कर रही है जबकि न्यायालय में पुलिस खुद को आरोपी के दबाव से मुक्त करने का अनुरोध न्यायालय से कर रही है।

मेहता ने कहा कि आरोपी ने पुलिस पर कुछ आरोप लगाये हैं जिन पर न्यायालय को गौर करना चाहिए। उन्होने कहा कि न्यायालय को इस मामले की किसी स्वतंत्र जांच एजेन्सी से जांच कराने पर भी विचार करना चाहिए। उन्होंने कहा कि यह ऐसा मामला है जिसमें पुलिस का व्यवहार अनपेक्षित रहा है और अगर पहली नजर में यह साबित होता है तो इसकी जांच किसी स्वतंत्र एजेन्सी को सौंपी जानी चाहिए।

महाराष्ट्र सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि यह सरासर संविधान के अनुच्छेद 19 का उल्लंघन है और वह इस तरह के सनसनीखेज आरोप लगाकर किसी को लांछित नहीं कर सकते।

सुनवाई के अंतिम क्षणों में पीठ ने टिप्पणी की कि इस मामले मे दर्ज सारी प्राथमिकी हूबहू एक जैसी ही हैं।

इस पर सिब्बल ने कहा कि अगर वे एक जैसी हैं तो न्यायालय उन्हें रद्द कर सकता है क्योंकि संभव है कि शिकायतें दर्ज कराते समय कांग्रेस कार्यकर्ताओं के पास पहली प्राथमिकी की प्रति रही हो।

शीर्ष अदालत ने 24 अप्रैल को अपने आदेश में पालघर की घटना को लेकर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी पर की गयी टिप्पणियों पर अर्नब गोस्वामी के खिलाफ विभिन्न राज्यों में दर्ज करायी गयी प्राथमिकी और शिकायतों के मामले में किसी भी प्रकार की दंडात्मक कार्रवाई पर तीन सप्ताह के लिये रोक लगा दी थी।

अर्नब के खिलाफ इसके बाद दो मई को रजा एजूकेशन वेलफेयर सोसायटी के सचिव इरफान अबूबकर शेख ने दक्षिण मुंबई के पायधोनी थाने में प्राथमिकी दर्ज करायी थी। यह प्राथमिकी 14 अप्रैल को बांद्रा में एक मस्जिद के निकट प्रवासी कामगारों के एकत्र होने की घटना को लेकर की गयी टिप्पणियों के संबंध में थी। प्राथमिकी में आरोप लगाया गया था कि इन टिप्पणियों से एक समुदाय की धार्मिक भावनाएं आहत हुयी हैं।

अनूप

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