नयी दिल्ली, नौ दिसंबर उच्चतम न्यायालय ने दोषियों द्वारा दायर दया याचिकाओं के शीघ्र निस्तारण के लिए सोमवार को कई निर्देश जारी किए, और कहा कि ऐसी याचिकाओं से निपटने के लिए राज्य सरकारों/केंद्र शासित प्रदेशों के गृह विभाग या कारागार विभाग द्वारा एक विशेष प्रकोष्ठ का गठन किया जाए।
न्यायमूर्ति अभय एस ओका, न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्ला और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा कि विशेष प्रकोष्ठ संबंधित सरकारों द्वारा निर्धारित समय सीमा के भीतर दया याचिकाओं पर शीघ्र कार्रवाई करने के लिए जिम्मेदार होगा।
पीठ ने कहा, ‘‘विशेष प्रकोष्ठ के प्रभारी अधिकारी को पदनाम द्वारा नामित किया जाएगा। राज्य सरकारों/केंद्र शासित प्रदेशों के कानून और न्यायपालिका या न्याय विभाग के एक अधिकारी को इस प्रकार गठित विशेष प्रकोष्ठ से संबद्ध किया जाना चाहिए।’’
शीर्ष अदालत ने बंबई उच्च न्यायालय के उस आदेश को बरकरार रखा है जिसमें 2007 में पुणे की बीपीओ कर्मचारी से सामूहिक बलात्कार और हत्या मामले में दो दोषियों की मौत की सजा के क्रियान्वयन में अत्यधिक देरी के आधार पर मृत्यु दंड को 35 साल की अवधि के लिए आजीवन कारावास में बदल दिया गया था।
शीर्ष अदालत ने कहा कि सभी जेलों में विशेष प्रकोष्ठ के प्रभारी अधिकारी के पदनाम के साथ-साथ उनके पते और ईमेल आईडी के बारे में सूचित किया जाना चाहिए।
इसने कहा कि जैसे ही विशेष प्रकोष्ठ को दया याचिकाएं प्राप्त होंगी, याचिकाओं की प्रतियां मामले के आधार पर राज्य के राज्यपाल या भारत के राष्ट्रपति के सचिवालयों को भेज दी जाएंगी, ताकि सचिवालय अपने स्तर पर कार्रवाई शुरू कर सके।
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