अदालत ने पिता के अंतिम संस्कार में शामिल होने के लिए दुष्कर्म के आरोपी को जमानत देने से इनकार किया
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नयी दिल्ली, 16 अप्रैल दिल्ली उच्च न्यायालय ने दुष्कर्म के आरोपी को पिता के अंतिम संस्कार के लिए जमानत देने से इंकार करते हुए उसकी याचिका खारिज कर दी। अदालत ने कहा कि मौजूदा कोरोना वायरस की महामारी के चलते उसे रिहा करना खतरनाक है क्योंकि वह बाहर कई लोगों के संपर्क में आएगा जिससे संक्रमण का खतरा बढ़ जाएगा।

अदालत ने कहा कि आरोपी की ओर से दाखिल जमानत याचिका में कई पहलुओं पर चुप्पी साधी गई है जैसे याचिकाकर्ता के पिता की कथित तौर पर डूबने से मौत हुई थी ऐसे में शव कैसे बरामद हुआ है और दाह संस्कार और अन्य कार्यक्रमों की जानकारी आदि।

न्यायमूर्ति रजनीश भटनागर ने कहा, ‘‘मामले में एक पहलू यह भी है कि याचिकाकर्ता का गांव दिल्ली से 800 किलोमीटर दूर है, ऐसे में उसे अंतरिम जमानत पर रिहा करना खतरनाक होगा क्योंकि यह नहीं पता कि गांव जाने के दौरान वह कितने लोगों के संपर्क में आएगा।’’

अदालत ने कहा, ‘‘ऐसी संभावना है कि वह संक्रमित हो जाए और अंतरिम जमानत की मियाद खत्म होने के बाद जेल लौटने पर और जटिलताएं उत्पन्न हो और ऐसी महामारी की स्थिति में इसकी अनुमति नहीं दी जा सकती। यह दोहराने की आवश्यकता नहीं है कि जमानत अर्जी में कोई विस्तृत जानकारी नहीं दी गई है।’’

उल्लेखनीय है कि राकेश कुमार नामक आरोपी ने अपनी याचिका में दावा किया था कि उसके पिता की नौ अप्रैल को उत्तर प्रदेश के अंबेडकर जिले स्थित कुरवा गांव में नदी में डूबने से मौत हो गई थी और अंतिम संस्कार करने और पारिवारिक मामलों को सुलझाने के लिए दो महीने की अंतरिम जमानत दी जाए।

व्यक्ति, जिसके खिलाफ 2014 में आनंद पर्वत पुलिस थाने में दुष्कर्म का मामला दर्ज किया गया था, का कहना है कि वह छह साल से जेल में है।

हालांकि, अभियोजन पक्ष ने जमानत याचिका का विरोध करते हुए कहा कि ऐसा कोई दस्तावेज पेश नहीं किया गया है जिससे साबित हो कि आरोपी के पिता की नौ अप्रैल को डूबने से मौत हो गई है। वहीं आरोपी के खिलाफ नाबालिग से दुष्कर्म करने का गंभीर मामला है।

उच्च न्यायालय ने जमानत याचिका खारिज करते हुए कहा, ‘‘ यह रिकॉर्ड पर लाना चाहिए कि आरोपी के पिता की नौ अप्रैल को डूबने से मौत हो गई। याचिका में शव बरामद होने संबंधी पुलिस दस्तावेज और दाह संस्कार का कोई अन्य दस्तावेज सलंग्न करना चाहिए।’’

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