देश की खबरें | न्यायालय ने यूएपीए मामले में उमर खालिद की जमानत याचिका पर सुनवाई 24 जनवरी तक स्थगित की

नयी दिल्ली, 10 जनवरी उच्चतम न्यायालय ने फरवरी 2020 में उत्तर पूर्वी दिल्ली में दंगों की साजिश में संलिप्तता के आरोप में गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत दर्ज मामले में जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के पूर्व छात्र उमर खालिद की जमानत याचिका पर सुनवाई बुधवार को 24 जनवरी तक स्थगित कर दी।

न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी और न्यायमूर्ति पंकज मिथल की पीठ ने खालिद की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल के स्थगन के अनुरोध के बाद मामले को स्थगित कर दिया। सिब्बल ने यह कहकर अदालत से स्थगन का अनुरोध किया था कि वह संविधान पीठ के मामले में व्यस्त हैं।

सिब्बल ने कहा कि अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) एस. वी. राजू भी उपलब्ध नहीं हैं।

पीठ ने इस पर नाराजगी व्यक्त की और कहा कि वह इस मामले को टालने की इच्छुक नहीं है।

सिब्बल ने इस पर कहा, ‘‘वह (खालिद) जेल में है। इससे क्या फर्क पड़ता है? हमने कभी समय नहीं मांगा। राजू ने कहा कि वह भी उपलब्ध नहीं है। मैं संविधान पीठ में व्यस्त हूं। कृपया एक सप्ताह का समय दें। आपसे यही अनुरोध है।’’

पीठ ने तब कहा, ‘‘आपने पहले कहा था कि मामले में सुनवाई नहीं हो रही है। यह अनावश्यक है, हम आपको छूट नहीं दे सकते।’’

सिब्बल के लगातार अनुरोध करने पर शीर्ष अदालत ने मामले को स्थगित कर दिया।

शीर्ष अदालत ने तब अपने आदेश में कहा, ‘‘याचिकाकर्ता की ओर से अनुरोध किया गया है। वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कुछ समय का अनुरोध किया है क्योंकि वह संविधान पीठ में हैं। एएसजी की ओर से भी अनुरोध किया गया है कि वह आज व्यस्त हैं। इसलिए मामला सुनवाई के लिए 24 जनवरी को सूचीबद्ध किया जाता है। उस दिन कोई और स्थगन नहीं दिया जाएगा।’’

इस मामले को यूएपीए के विभिन्न प्रावधानों को चुनौती देने वाली याचिकाओं के साथ सूचीबद्ध किया गया था।

उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा ने नौ अगस्त को खालिद की याचिका पर सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था।

खालिद की याचिका उनकी जमानत याचिका खारिज करने वाले दिल्ली उच्च न्यायालय के 18 अक्टूबर, 2022 के आदेश को चुनौती देती है। याचिका न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति मिश्रा की पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए आई थी।

उच्च न्यायालय ने खालिद की जमानत याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी थी कि वह अन्य सह-अभियुक्तों के साथ लगातार संपर्क में थे और उनके खिलाफ आरोप प्रथम दृष्टया सही हैं।

उच्च न्यायालय ने यह भी कहा था कि आरोपियों की हरकतें प्रथम दृष्टया गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के तहत ‘‘आतंकवादी कृत्य’’ के रूप में सही पाई गई हैं।

खालिद, शरजील इमाम और कई अन्य पर फरवरी 2020 के दंगों का ‘‘मास्टरमाइंड’’ होने के आरोप में आतंकवाद रोधी कानून यूएपीए और भारतीय दंड संहिता के कई प्रावधानों के तहत मामला दर्ज किया गया है। इस दंगे में 53 लोग मारे गए और 700 से अधिक घायल हो गए।

संशोधित नागरिकता अधिनियम (सीएए) और राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के दौरान हिंसा भड़क गई थी।

सितंबर 2020 में दिल्ली पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए गए खालिद ने इस आधार पर जमानत का अनुरोध किया था कि हिंसा में उनकी न तो कोई आपराधिक भूमिका थी और न ही मामले में किसी अन्य आरोपी के साथ कोई ‘‘षड्यंत्रकारी संबंध’’ था।

दिल्ली पुलिस ने उच्च न्यायालय में खालिद की जमानत याचिका का विरोध करते हुए कहा था कि उनके द्वारा दिया गया भाषण ‘‘सुनियोजित’’ था और उन्होंने बाबरी मस्जिद, तीन तलाक, कश्मीर, मुसलमानों के कथित दमन और सीएए और एनआरसी जैसे विवादास्पद मुद्दों को उठाया था।

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