मेलबर्न, 8 अप्रैल (द कन्वरसेशन) युवाओं से जुड़ी नीतियों और सेवाओं में युवाओं की आवाज और भागीदारी का विचार नि्संदेह ‘‘अच्छी बात’’ है। लेकिन सवाल यह है कि यह कौन सी युवा आवाजें हैं? किसकी सुनी जाती है और किसे छोड़ दिया जाता है? मेलबर्न के भीतरी उत्तरी उपनगरों और जिलॉन्ग क्षेत्र में हमारे हालिया शोध के दौरान हमें इस सवाल से दो चार होना पड़ा।
हमने इन क्षेत्रों में कई वंचित, हाशिए के और साधनहीन युवाओं की चिंताओं को बेहतर ढंग से समझने के प्रयास में, महामारी की शुरुआत के बाद से 80 से अधिक युवाओं का साक्षात्कार लिया है।
हम पता लगाना चाहते थे:
- उन्हें किन चुनौतियों का सामना करना पड़ा है?
-ऐसा क्यों लगता है कि कुछ युवा अपनी बात कहने में सक्षम होते हैं, जबकि अन्य नहीं?
-ये युवा अपने स्वयं के भविष्य में सक्रिय हितधारक कैसे बन सकते हैं?
-इस सिलसिले को कैसे बदला जा सकता है?
महत्वपूर्ण रूप से, हमने युवाओं से अपने विचारों को एक ऐसे प्रारूप में साझा करने के लिए कहा, जिसमें वे सहज महसूस करते हैं - सीधे अपने वेबकैम या फोन कैमरों से बात करके। बातचीत के सामान्य विषयों में शामिल हैं:
- अभी और भविष्य में सुरक्षित काम की आवश्यकता
- बेहतर मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं की आवश्यकता
- स्कूल के आसपास दबाव की भावना
-सुने न जाने की भावना
-जलवायु परिवर्तन और ग्रह के भविष्य के बारे में चिंता।
हमने क्या किया
जिन युवाओं से हमने बात की उनमें से कई स्वास्थ्य और कल्याण चुनौतियों, न्यूरो-विविधता, और पारंपरिक शिक्षा, प्रशिक्षण और रोजगार के रास्ते से भटके हुए थे। इनमें वित्तीय संघर्ष आम था।
हमने युवाओं से कहा कि वह अपने योगदान को उनके कैमरा फोन या वेबकैम पर फिल्माकर अपने समुदायों और व्यापक दर्शकों से सीधे बात करें। इससे हमारे साक्षात्कारकर्ताओं से विचारों के अधिक प्राकृतिक प्रवाह में मदद मिली। हमने यूट्यूब और इंस्टाग्राम पर कई वीडियो प्रकाशित किए।
हमारे उदार साक्षात्कारकर्ताओं ने अपने स्वास्थ्य और कल्याण के बीच संबंधों के बारे में खुलकर बात की, और शिक्षा, काम, रिश्तों और ग्रह को लेकर - भविष्य के बारे में अपनी आशाओं, आकांक्षाओं और चिंताओं के बारे में बताया।
युवाओं ने हमें क्या बताया
उदाहरण के लिए, 16 वर्ष की रूबी को लें। वह अपने परिवार के साथ जिलॉन्ग में रहती है, काम की तलाश में है, और अपने स्थानीय टीएएफई में विक्टोरियन सर्टिफिकेट ऑफ एप्लाइड लर्निंग (स्कूल में वर्ष 11 और 12 के लिए एक विकल्प) में अध्ययन करती है। उसने हमें बताया, ‘‘... वे ऐसे लोगों को पसंद करते हैं, जिन्हें चिंता या अवसाद है, जीने के लिए, 'बस सांस लें'। और मुझे लगता है कि हम में से बहुत से लोगों के लिए यह काफी नहीं है। मुझे लगता है कि हमें सिर्फ कुछ बेहतर श्रोताओं की जरूरत है और मुझे लगता है कि हमें कुछ ऐसे लोगों की जरूरत है जो वास्तव में परवाह करते हैं।’’
24 साल की एमिली जिलॉन्ग के एक शेयरहाउस में रहती है। वह सामाजिक कार्य का अध्ययन करती है और भविष्य के बारे में अनिश्चित है, ‘‘मैं भविष्य के लिए आशान्वित होना चाहती हूं, लेकिन ईमानदारी से, मुझे नहीं पता कि मैं वास्तव में हूं या नहीं। कुछ मायनों में, मुझे लगता है कि सरकार इस बात पर ध्यान केंद्रित करती है कि मतदाता अगले चुनाव में उनसे क्या चाहते हैं।’’
2020 के दौरान, अस्टरिड, जो अब 20 वर्ष की है, अपनी मां और बिल्ली के बच्चे के साथ फिट्जरॉय में सामाजिक आवास में रह रही थी। डिस्लेक्सिया के कारण उसे कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। उसने हमसे कहा, ‘‘मुझे आशा है, मेरी सबसे बड़ी आशा यह है कि वे जलवायु परिवर्तन से निपटने के तरीके निकाल लेंगे। ओह, नहीं, मैं इसे वापस लेती हूं। वे जानते हैं कि जलवायु परिवर्तन से कैसे निपटना है। मुझे आशा है कि वे ऐसा करेंगे।‘‘
‘‘मैं यह भी आशा करती हूं कि जो लोग समुदाय चला रहे हैं वे इस तथ्य पर ध्यान दें कि युवा लोग इसमें अपनी अधिक भागीदारी चाहते हैं। और एक ऐसी जगह जहां उन्हें लगता है कि वे स्वयं हो सकते हैं।’’
कुछ युवा हाशिये पर क्यों दिखते हैं?
बहुत बार, सार्वजनिक प्रवचनों और मीडिया आख्यानों में उजागर की गई युवा आवाज़ें एक ऐसी प्रणाली के सुशिक्षित, अक्सर निजी रूप से शिक्षित लाभार्थी होते हैं, जो गरीबी या विकलांगता से पीड़ित लोगों को छोड़कर अमीर लोगों की सेवा करती है।
कैन द सबाल्टर्न स्पीक? शीर्षक वाले एक निबंध में भारतीय विद्वान गायत्री चक्रवर्ती स्पिवक ‘‘पोस्टकोलोनियल’’ राज्यों (जैसे भारत) और ‘‘सेटलर कोलोनीज’’ (जैसे ऑस्ट्रेलिया) में उपनिवेशवाद की विरासतों के साथ-साथ इन संदर्भों में स्वदेशी लोगों द्वारा अनुभव किए गए नुकसान की बात करती हैं।
‘‘सबाल्टर्न’’ समूह वे लोग हैं जिन्हें अक्सर कई प्रकार के नुकसान का सामना करना पड़ता है, जिन्हें उन प्रक्रियाओं तक पहुंच से वंचित कर दिया जाता है जो उनके उत्पीड़न का कारण बनते हैं। उनकी कोई आवाज नहीं होती है।
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