नई दिल्ली, 7 जुलाई: तनाव कम होने के पहले संकेत के रूप में चीनी सेना ने सोमवार को पूर्वी लद्दाख में कुछ इलाकों से अपनी सीमित वापसी शुरू कर दी. इससे एक दिन पहले राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और चीनी विदेश मंत्री वांग यी (Wang Yi) ने टेलीफोन पर बात की जिसमें वे वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) से सैनिकों के तेजी से पीछे हटने की प्रक्रिया को पूरा करने पर सहमत हुए. विदेश मंत्रालय ने सोमवार को कहा कि डोभाल और वांग के बीच रविवार को हुई वार्ता में इस बात पर सहमति बनी कि सीमावर्ती क्षेत्रों में शांति एवं स्थिरता की पूर्ण बहाली के लिए जल्द से जल्द सैनिकों का पूरी तरह पीछे हटना आवश्यक है तथा दोनों पक्षों को मतभेदों को विवाद में तब्दील नहीं होने देना चाहिए.
डोभाल और वांग दोनों देशों के बीच सीमा वार्ता से संबंधित विशेष प्रतिनिधि हैं. सरकारी सूत्रों ने कहा कि चीनी सैनिकों ने सोमवार को गलवान घाटी से अपने तंबुओं को हटा लिया और वे गलवान घाटी में गश्ती बिन्दु 'प्वाइंट 14' के आसपास से 1.5 किलोमीटर तक पीछे चले गए हैं. उन्होंने कहा कि गोग्रा हॉट स्प्रिंग में भी चीनी सैनिक और वाहन पीछे हटते दिखाई दिए. खबरें ये भी हैं कि चीनी सैनिकों ने पैंगोंग सो में 'फिंगर 4' के आसपास से भी कुछ तंबू हटा लिए हैं. हालांकि, सूत्रों ने कहा कि स्पष्ट तस्वीर इसकी गहरी पड़ताल के बाद ही सामने आएगी.
सूत्रों ने कहा कि सैनिकों के पीछे हटने की कवायद 30 जून को सैन्य स्तर की वार्ता में हुए निर्णय के अनुरूप हो रही है जिसमें इस बात पर भी सहमति बनी थी कि दोनों पक्ष गलवान नदी के आसपास कम से कम तीन किलोमीटर के क्षेत्र में एक बफर जोन बनाएंगे और भारतीय सैनिक भी उसी के अनुसार चल रहे हैं. इस संबंध में एक सूत्र ने कहा कि भारतीय सेना चीन के पीछे हटने की कवायद की पूरी पड़ताल करेगी. विदेश मंत्रालय ने डोभाल और वांग के बीच हुई वार्ता को खुली और विचारों के व्यापक आदान-प्रदान वाली करार दिया और कहा कि इस दौरान पश्चिमी क्षेत्र में हालिया घटनाक्रमों को लेकर गहन चर्चा हुई.
मंत्रालय ने कहा कि डोभाल और वांग इस बात पर सहमत हुए कि दोनों पक्षों को एलएसी से सैनिकों के पीछे हटने की प्रक्रिया को तेजी से पूरा करना चाहिए. विदेश मंत्रालय ने कहा कि डोभाल और वांग ने दोहराया कि दोनों पक्षों को एलएसी का पूरा सम्मान एवं इसका कड़ा अनुसरण सुनिश्चित करना चाहिए तथा यथास्थिति को बदलने के लिए कोई एकतरफा कार्रवाई नहीं करनी चाहिए और भविष्य में ऐसी किसी भी घटना से बचना चाहिए जिससे सीमावर्ती क्षेत्रों में शांति एवं स्थिरता को नुकसान पहुंचने की आशंका हो.
दोनों विशेष प्रतिनिधि भारत-चीन सीमा क्षेत्रों में शांति और स्थिरता की पूर्ण और स्थायी बहाली सुनिश्चित करने के लिए बातचीत जारी रखने पर सहमत हुए. बीजिंग में चीनी विदेश मंत्रालय ने भी बयान जारी किया और कहा कि डोभाल तथा वांग के बीच मौजूदा सीमा स्थिति के मुद्दे पर सकारात्मक आम समझ बनी. उसने रेखांकित किया कि एलएसी पर अग्रिम मोर्चे पर तैनात सैनिकों को पूरी तरह पीछे हटाने के लिए सैन्य कमांडरों के बीच बनी सहमति पर तेजी से काम करने की आवश्यकता है. यह पहली बार है जब डोभाल और वांग ने पूर्वी लद्दाख में जारी गतिरोध पर बात की है. माना जाता है कि बातचीत लगभग दो घंटे तक चली.
सरकारी सूत्रों ने कहा भारत इस बारे में कड़ी नजर रख रहा है कि क्या चीन अपने सैनिकों को हटा रहा है. सूत्रों ने कहा कि हो सकता है कि भारत को वैश्विक समर्थन और पिछले सप्ताह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लद्दाख दौरे का बीजिंग पर अपनी सेना को हटाने के लिए कुछ असर पड़ा हो. सूत्रों ने कहा कि पारस्परिक समझ के तहत भारत द्वारा भी विवादित क्षेत्रों में अपने सैनिकों की संख्या में कमी किए जाने की संभावना है. विदेश मंत्रालय ने कहा कि डोभाल और वांग के मध्य नेताओं के बीच बनी सहमति से दिशा-निर्देश लेने पर रजामंदी बनी कि द्विपक्षीय संबंधों में आगे के विकास के लिए सीमावर्ती क्षेत्रों में शांति एवं स्थिरता बनाए रखना आवश्यक है और दोनों पक्षों को मतभेदों को विवाद में नहीं बदलने देना चाहिए.
इसने कहा, "इसलिए, वे इस बारे में सहमत हुए कि शांति और स्थिरता की पूर्ण बहाली के लिए वास्तविक नियंत्रण रेखा से सैनिकों का पूरी तरह पीछे हटना और सीमावर्ती क्षेत्रों में तनाव में कमी सुनिश्चित करना आवश्यक है." विदेश मंत्रालय ने कहा कि डोभाल और वांग इस बात पर भी सहमत हुए कि दोनों पक्षों को एलएसी से पीछे हटने की जारी प्रक्रिया को तेजी से पूरा करना चाहिए और भारत-चीन सीमा क्षेत्रों में तनाव कम करने के लिए दोनों पक्षों को चरणबद्ध कार्रवाई सुनिश्चित करनी चाहिए.
मंत्रालय ने कहा कि दोनों विशेष प्रतिनिधि इस बारे में सहमत हुए कि कूटनीतिक और सैन्य अधिकारियों को अपनी चर्चा जारी रखनी चाहिए तथा आपस में बनी समझ को समयबद्ध तरीके से क्रियान्वित करना चाहिए. भारत-चीन सीमा मामलों पर चर्चा एवं समन्वय के लिए स्थापित तंत्र के ढांचे के तहत भी चर्चा जारी रहनी चाहिए. विदेश मंत्रालय ने कहा, "इस बारे में भी सहमति बनी कि दोनों विशेष प्रतिनिधि द्विपक्षीय संबंधों और प्रोटोकॉल के अनुरूप भारत-चीन सीमा क्षेत्रों में पूर्ण एवं स्थायी शांति तथा स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए अपनी चर्चा जारी रखेंगे." भारत और चीन की सेनाओं के बीच पिछले आठ सप्ताह से पूर्वी लद्दाख में कई जगहों पर तनातनी जारी है.
दोनों देशों के सैन्य अधिकारियों के बीच गत 30 जून को लेफ्टिनेंट जनरल स्तर की तीसरे दौर की वार्ता हुई थी जिसमें दोनों पक्ष गतिरोध को समाप्त करने के लिए प्राथमिकता के रूप में तेजी से और चरणबद्ध तरीके से कदम उठाने पर सहमत हुए थे.
लेफ्टिनेंट जनरल स्तर की पहले दौर की वार्ता छह जून को हुई थी जिसमें दोनों पक्षों ने गतिरोध वाले सभी स्थानों से धीरे-धीरे पीछे हटने के लिए समझौते को अंतिम रूप दिया था जिसकी शुरुआत गलवान घाटी से होनी थी. इसके बाद दोनों पक्षों के बीच 22 जून को भी बैठक हुई थी जिसमें सभी टकराव बिन्दुओं से पीछे हटने पर पारस्परिक सहमति बनी थी.
हालांकि, स्थिति तब बिगड़ गई जब 15 जून को गलवान घाटी में दोनों देशों के सैनिकों के बीच हुई झड़प में भारत के 20 जवान शहीद हो गए. झड़प में चीनी सेना को भी काफी नुकसान होने की खबर है हालांकि उसने अब तक इसका ब्योरा साझा नहीं किया है. इस घटना के बाद दोनों देशों ने एलएसी से लगते अधिकतर क्षेत्रों में अपनी-अपनी सेनाओं की तैनाती और मजबूत कर दी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शुक्रवार को लद्दाख का अचानक दौरा किया था. वहां उन्होंने सैनिकों का उत्साह बढ़ाते हुए कहा था कि विस्तारवाद के दिन अब लद गए हैं. इतिहास गवाह है कि विस्तारवादी ताकतें मिट गई हैं. उनके इस संबोधन को चीन के लिए यह स्पष्ट संदेश माना गया था कि भारत पीछे नहीं हटने वाला है और वह स्थिति से सख्ती से निपटेगा.
(यह सिंडिकेटेड न्यूज़ फीड से अनएडिटेड और ऑटो-जेनरेटेड स्टोरी है, ऐसी संभावना है कि लेटेस्टली स्टाफ द्वारा इसमें कोई बदलाव या एडिट नहीं किया गया है)