नयी दिल्ली,5 अक्टूबर: चीन की आक्रामकता उसके उदय के साथ और अधिक स्पष्ट है और भारत को अपनी समग्र “रणनीतिक गणना” में इस पहलू को ध्यान में रखना होगा। प्रमुख रक्षा अध्यक्ष (सीडीएस) जनरल अनिल चौहान ने बृहस्पतिवार को यह बात कही. वैश्विक भू-राजनीतिक व्यवस्था में व्यवधानों पर चर्चा करते हुए, उन्होंने भारत के अपने दृष्टिकोण में “रणनीतिक स्वायत्तता” बनाए रखने की आवश्यकता को भी रेखांकित किया और कहा कि देश “गुटनिरपेक्षता” के अपने दृष्टिकोण से विश्व-मित्र के युग में आगे बढ़ रहा है.
पांचवें जनरल केवी कृष्ण राव स्मृति व्याख्यान देते हुए सीडीएस ने चीन के साथ उत्तरी सीमाओं पर भारत के “प्रमुख विवाद” का भी उल्लेख किया और सुझाव दिया कि नयी दिल्ली को रणनीतिक स्वायत्तता का पत्ता चलना होगा. उन्होंने कहा, “रणनीतिक स्वायत्तता आपके खतरों से निपटने के बजाय अवसरों का फायदा उठाने के लिए प्रासंगिक हो सकती है. भविष्य यहीं होना चाहिए. हमें अवसरों के बारे में अधिक सोचना चाहिए.” उन्होंने कहा, “यह सब जो मैंने कहा वह उत्तरी पड़ोसी के कारण थोड़ी चेतावनी के साथ आता है. इस रणनीतिक गणना में भारत को चीन के एक प्रमुख शक्ति के रूप में उभरने को भी ध्यान में रखना होगा.”
सीडीएस ने कहा, “चीन की आक्रामकता उसके उदय के साथ और अधिक स्पष्ट है। भारत का चीन के साथ उत्तरी सीमाओं पर बड़ा विवाद है और उसे रणनीतिक स्वायत्तता का कार्ड खेलना होगा.” प्रमुख रक्षा अध्यक्ष ने भारत की गुटनिरपेक्ष होने से लेकर रणनीतिक स्वायत्तता हासिल करने की यात्रा का भी सार दिया. उन्होंने कहा, “अगर मुझे गुटनिरपेक्षता से लेकर रणनीतिक स्वायत्तता हासिल करने तक की भारत की यात्रा का सारांश प्रस्तुत करना हो, तो मैं जो कह सकता हूं वह ‘तीन एस’ पर आधारित हो सकता है. पहला है भारत को सुरक्षित करना। अगला है आत्मनिर्भरता. और अंत में, भारत के लाभ और हित के लिए पर्यावरण को आकार देना.”
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