देश की खबरें | छत्तीसगढ़ 2020 में कोरोना से ‘जंग’, नक्सली हिंसा, सरकार और राजभवन में ‘टकराव’ का साक्षी बना
एनडीआरएफ/प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credits: ANI)

रायपुर, 26 दिसंबर कांग्रेस के शासन वाला छत्तीसगढ़ गुजरने जा रहे साल 2020 में राज्य सरकार और राजभवन के बीच ‘टकराव’, हिंसक नक्सली घटनाओं का तो साक्षी बना ही, साथ ही देश और दुनिया की तरह कोरोना वायरस महामारी की गिरफ्त में भी आ गया।

प्रदेश की राजनीति में खासा दखल रखने वाले दिग्गज अजीत जोगी और मोतीलाल वोरा जैसे नेताओं ने जहां इस दुनिया को अलविदा कहा तो वहीं हजारों लोगों की मौत के सबब बने कोविड-19 के प्रबंधन को लेकर भी आरोप-प्रत्यारोप देखने को मिले।

इस साल 18 मार्च को राजधानी रायपुर में, राज्य में कोविड-19 का पहला मरीज सामने आया जो एक महिला थी। इसके बाद पूरे साल यह महामारी प्रदेश के स्वास्थ्य इंतजामों की परीक्षा लेती रही। प्रदेश में 25 दिसंबर तक 2,72,000 से अधिक लोग कोरोना वायरस से संक्रमित हुए और 3200 से अधिक लोगों की मृत्यु हो चुकी है।

कोरोना वायरस के संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए प्रदेश सरकार ने राज्य की सीमाओं को बंद करने के साथ ही स्कूलों तथा सार्वजनिक स्थानों को बंद रखने का ऐलान कर दिया। जब दूसरे राज्यों से मजदूरों का आना शुरू हुआ तब राज्य के 21,000 पृथकवास केंद्रों में सात लाख से अधिक लोगों को ठहराने की व्यवस्था की गई। राहत के उपायों के बीच राज्य सरकार पर लापरवाही बरतने का आरोप भी लगा। राज्य के मुख्य विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी ने आरोप लगाया कि राज्य सरकार की लचर व्यवस्था के कारण इन पृथकवास केंद्रों में 26 लोगों की जान गई है।

राज्य में इस वर्ष फरवरी में आयकर विभाग के छापों को लेकर सत्ताधारी दल कांग्रेस और विपक्षी दल भाजपा आमने-सामने हुए।

फरवरी के अंतिम सप्ताह में आयकर विभाग ने राज्य के वरिष्ठ अधिकारियों, कांग्रेस नेताओं और व्यापारियों के ठिकानों में छापा मारा था। छापों से नाराज सत्ताधारी दल ने इसे राज्य सरकार को अस्थिर करने की कोशिश कहा तो वहीं, भाजपा ने राज्य सरकार पर आयकर विभाग की कार्रवाई को बाधित करने का आरोप लगाया था।

प्रदेश में टकराव सिर्फ सत्तापक्ष और विपक्ष में ही नहीं दिखा, राज्य सरकार और राज्यपाल भी कई मुद्दों को लेकर टकराव की राह पर दिखे। मार्च महीने में कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विश्वविद्यालय में कथित तौर पर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की विचारधारा वाले प्रोफेसर बलदेव भाई शर्मा की कुलपति के रूप में नियुक्ति राज्य सरकार को ठीक नहीं लगी।

अक्टूबर में विधानसभा के विशेष सत्र की अनुमति देने के दौरान भी राजभवन और राज्य सरकार आमने सामने थे। इस विशेष सत्र में राज्य सरकार ने विधानसभा में छत्तीसगढ़ कृषि उपज मंडी (संशोधन) विधेयक 2020 पारित कराया था।

प्रशासनिक मोर्चे पर प्रदेश सरकार के लिये चुनौतियां भले ही कम न रही हों लेकिन साल 2020 सियासी तौर पर सत्ताधारी कांग्रेस के लिये अच्छा साबित हुआ।

राज्य में कोरोना वायरस संक्रमण के बीच प्रतिष्ठित मरवाही विधानसभा सीट के लिए उपचुनाव कराया गया जिसमें कांग्रेस ने जीत हासिल की। राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री अजीत जोगी की मृत्यु से रिक्त हुई सीट पर इस बार जोगी परिवार का कोई भी सदस्य चुनाव नहीं लड़ पाया।

इस वर्ष 29 मई को अजीत जोगी की मृत्यु के बाद उनकी परंपरागत मरवाही विधानसभा सीट के लिए नवंबर में चुनाव हुआ। इस सीट पर सत्ताधारी दल ने मुख्य विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी को 38 हजार से अधिक मतों से हराया।

मरवाही विधानसभा सीट के लिए उपचुनाव की घोषणा के बाद राज्य की राजनीति में शह और मात का खेल शुरू हुआ। उपचुनाव के दौरान जोगी की जाति मामले को लेकर अजीत जोगी के पुत्र अमित जोगी और उनकी पुत्र वधु ऋचा जोगी का नामांकन रद्द कर दिया गया। इसके चलते इस सीट से जोगी परिवार का कोई भी सदस्य चुनाव नहीं लड़ सका। अमित जोगी की पार्टी जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जे) ने चुनाव में भाजपा को समर्थन देने का फैसला किया लेकिन फिर भी भाजपा चुनाव हार गई।

राज्य की 90 सदस्यीय विधानसभा में अब कांग्रेस के 70, भाजपा के 14, जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जे) के चार तथा बहुजन समाज पार्टी के दो सदस्य हैं।

इससे पहले जनवरी में ही कांग्रेस ने राज्य के सभी 10 नगर निगमों में बहुमत हासिल कर अपनी ताकत का परिचय दिया था। राज्य में पहली बार नगरीय निकायों में महापौर और अध्यक्ष पद के लिए अप्रत्यक्ष प्रणाली से मतदान हुआ था। जिसका फायदा सत्ताधारी दल को मिला था।

राज्य का बड़ा इलाका वनों से आच्छादित है लेकिन दक्षिणी क्षेत्र के वन क्षेत्र बस्तर में जहां नक्सली चुनौती बने हुए हैं वहीं उत्तर क्षेत्र के वनीय इलाके सरगुजा और आसपास के जिलों में हाथियों ने उत्पात मचा रखा है।

इस वर्ष मार्च में बस्तर क्षेत्र के सुकमा जिले के मिनपा गांव के जंगल में नक्सलियों ने सुरक्षा बलों पर घात लगाकर हमला किया। इस हमले में 17 जवान मारे गए और 15 अन्य जवान घायल हो गए थे।

इसके अलावा अलग अलग नक्सली घटनाओं में भी सुरक्षा बल के जवान मारे गए हैं।

नक्सलियों ने अपने प्रभाव वाले क्षेत्रों में न केवल जवानों को निशाना बनाया बल्कि मुखबिरी करने के आरोप में कई ग्रामीणों की जान ले ली। नक्सलियों ने अक्टूबर में एक विज्ञप्ति जारी कर 25 ग्रामीणों की हत्या की जिम्मेदारी ली थी।

सुरक्षा बलों के नक्सल विरोधी अभियानों का असर दिखा जिनमें कई नक्सली मारे गए । इस दौरान कई ने आत्मसमर्पण भी किया।

राज्य के वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के मुताबिक, इस वर्ष राज्य के बस्तर क्षेत्र में सुरक्षा बलों ने 38 नक्सलियों को मार गिराया तथा 386 नक्सलियों को गिरफ्तार किया। जबकि 331 नक्सलियों ने पुलिस के सामने आत्मसमर्पण किया है।

इधर राज्य के उत्तर क्षेत्र सरगुजा और पड़ोसी जिलों में हाथियों ने जमकर उत्पात मचाया और कुछ ग्रामीणों की जान ले ली। इन क्षेत्रों में करंट लगने और अन्य कारणों से जून से अक्टूबर के मध्य 15 हाथी भी मारे गए।

राज्य ने 2020 अजीत जोगी और मोतीलाल वोरा जैसे राजनीतिज्ञों को भी खोया है।

इस वर्ष नौ मई को अजीत जोगी की अचानक तबियत बिगड़ने पर उन्हें शहर के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया था। 20 दिनों तक इलाज के बाद 74 वर्षीय जोगी ने 29 मई को इस दुनिया को विदा कह दिया।

भारतीय प्रशासनिक सेवा से राजनीति में आए अजीत जोगी मरवाही क्षेत्र से विधायक थे। वह वर्ष 2000 में छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के दौरान यहां के प्रथम मुख्यमंत्री बने तथा वर्ष 2003 तक मुख्यमंत्री रहे।

अविभाजित मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मोतीलाल वोरा का 21 दिसंबर को दिल्ली के एक अस्पताल में निधन हो गया। वोरा एक ऐसे राजनेता रहे हैं जिन्हें सभी गुटों से सम्मान मिला।

वैश्विक महामारी कोविड-19 का प्रदेश की अर्थव्यवस्था पर भी खासा असर पड़ा। प्रदेश सरकार ने मंदी से उबरने के लिये इस साल राजीव गांधी किसान न्याय योजना शुरू की जिसके तहत चार किस्तों में 5750 करोड़ रुपये किसानों के खातों में जमा किए जाएंगे।

प्रदेश सरकार ने गोधन न्याय योजना शुरू की है जिसमें दो रुपये प्रति किलोग्राम की दर से गोबर खरीदा जा रहा है। इस गोबर से वर्मी-कम्पोस्ट बनाया जाएगा।

छत्तीसगढ़ के लिये बीता साल महामारी की वजह से भले ही बहुत अच्छा न रहा हो लेकिन इस साल की शुरुआत बेहद सुकून देने वाली खबर से हुई थी। जनवरी में दिग्गज क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर ने नक्सल प्रभावित दंतेवाड़ा जिले के 12 वर्षीय दिव्यांग बालक मड्डा राम कवासी का, दोस्तों के साथ क्रिकेट खेलते हुए एक वीडियो सोशल मीडिया पर साझा कर कहा था, “इसने मेरे दिल को छू लिया है और मुझे यकीन है कि यह आपका भी दिल छू लेगा।”

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