देश की खबरें | एआईक्यू में 27 प्रतिशत आरक्षण की केंद्र की पेशकश स्वीकार्य नहीं : द्रमुक ने उच्च न्यायालय से कहा

चेन्नई, तीन अगस्त द्रमुक ने मद्रास उच्च न्यायालय से मंगलवार को कहा कि स्नातक चिकित्सा पाठ्यक्रमों में अखिल भारतीय कोटे (एआईक्यू) के तहत ‘सरेंडर्ड’ सीटों के परिप्रेक्ष्य में मौजूदा शैक्षणिक सत्र से 27 प्रतिशत आरक्षण की केंद्र की पेशकश स्वीकार्य नहीं है।

मामले में केंद्र के खिलाफ द्रमुक की अवमानना याचिका पर सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता पी विल्सन ने यह बात कही।

मामला जब मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति संजीब बनर्जी और न्यायमूर्ति पी डी औदिकेसवलु की प्रथम पीठ के समक्ष आया तो विल्सन ने कहा कि राज्य सरकार यदि 69 प्रतिशत नहीं तो, 50 प्रतिशत से कम कुछ भी स्वीकार नहीं करेगी, जैसा कि उच्च न्यायालय की प्रथम पीठ ने पिछले साल जुलाई में अपने आदेश में सिफारिश की थी।

असल में, द्रमुक और इसके सहयोगियों की जनहित याचिकाओं पर आदेश पारित करते हुए तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति ए पी साही के नेतृत्व वाली पीठ ने अन्य चीजों के साथ ही याचिकाकर्ताओं के दावे के अनुसार आरक्षण के क्रियान्वयन संबंधी नियम शर्तें उपलब्ध कराने के लिए एक समिति के गठन का सुझाव दिया था।

इसने यह भी कहा था कि समिति आरक्षण का प्रतिशत भी निर्धारित कर सकती है।

मामला जब गत 19 जुलाई को मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति बनर्जी के नेतृत्व वाली मौजूदा पीठ के समक्ष आया तो इसने 2021-22 से चिकित्सा एवं दंत पाठ्यक्रम संबंधी कॉलेजों में 1993 के राज्य अधिनियम के संबंध में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) आरक्षण के क्रियान्वयन के तरीके पर केंद्र को अपना रुख बताने के लिए एक सप्ताह का समय दिया था।

तमिलनाडु में 1993 के राज्य अधिनयम के अनुसार छात्रों के प्रवेश के लिए आरक्षण 69 प्रतिशत है जो तमिलनाडु पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (शैक्षणिक संस्थानों में सीटों और नौकरियों में नियुक्ति और पदों पर आरक्षण) के आधार पर लागू किया गया था।

पीठ ने केंद्र को अपना रुख स्पष्ट करने के लिए एक सप्ताह का समय दिया था। बाद में केंद्र सरकार ने 27 प्रतिशत आरक्षण की घोषणा की। विल्सन ने दलील दी कि 27 प्रतिशत आरक्षण उच्च न्यायालय के जुलाई 2020 और उच्चतम न्यायालय के आदेशों के विपरीत है, जिसने उसी साल अक्टूबर में इसकी पुष्टि की थी।

आदेश में एआईक्यू के तहत ओबीसी के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण की बात कही गई थी।

अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल आर शंकरनारायणन ने न्यायाधीशों से कहा कि कुल आरक्षण 50 प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकता और इसलिए अकेले ओबीसी को 50 प्रतिशत आरक्षण देना मराठा मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा दिए गए आदेश के विपरीत होगा।

पीठ ने रेखांकित किया कि केंद्र सरकार के 29 जुलाई 2021 के आदेश के अनुसार ओबीसी को 27 प्रतिशत, अनुसूचित जातियों को 15 प्रतिशत, अनुसूचित जनजातियों को 7.5 प्रतिशत और आर्थिक रूप से कमजोर तबके (ईडब्ल्यूएस) के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था की गई है और इस तरह यह कुल 59.5 प्रतिशत आरक्षण होता है।

अदालत ने पूछा, ‘‘क्या 50 प्रतिशत में ईडब्ल्यूएस को दिया गया आरक्षण शामिल है।’’

अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि वह ईडब्ल्यूएस से संबंधित आरक्षण के संबंध में निर्देश लेंगे।

पीठ ने अपने पूर्व के रुख को दोहराते हुए कहा कि जुलाई 2020 के उच्च न्यायालय के आदेश और अक्टूबर 2020 के उच्चतम न्यायालय के आदेश का पूर्ण पालन होना चाहिए। इसने स्पष्ट किया कि तब तक नीट परीक्षा नहीं कराई जा सकती।

मामले में अगली सुनवाई अब नौ अगस्त को होगी।

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