नयी दिल्ली, 25 अप्रैल दिल्ली उच्च न्यायालय ने दिल्ली पुलिस आयुक्त को पिछले महीने मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के आवास के बाहर ‘‘गंभीर चूक’’ की उस घटना की जांच करने और ‘‘जिम्मेदारी तय करने’’ का सोमवार को निर्देश दिया जब कुछ शरारती तत्व बैरिकेड तोड़ते हुए प्रवेश द्वार तक पहुंच गए थे और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाया था। अदालत ने इस घटना को ‘‘बहुत परेशान करने वाली स्थिति’’ बताया।
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति विपिन सांघी और न्यायमूर्ति नवीन चावला की पीठ फिल्म 'द कश्मीर फाइल्स' पर केजरीवाल की टिप्पणी को लेकर 30 मार्च को मुख्यमंत्री के आवास पर हुए कथित हमले से संबंधित आम आदमी पार्टी (आप) के विधायक सौरभ भारद्वाज की याचिका पर सुनवाई कर रही थी।
पीठ ने कहा कि यह स्पष्ट है कि पुलिस बल से ''चूक'' हुई है और बंदोबस्त (सुरक्षा प्रबंध) पर्याप्त नहीं थे।
इसने कहा, ''भारतीय जनता युवा मोर्चा की ओर से मांगी गई उस अनुमति के आलोक में मुख्यमंत्री के आवास के बाहर और आवास की ओर जाने वाली सड़क पर किया गया बंदोबस्त पर्याप्त नहीं था जिसे खारिज कर दिया गया था।’’
अदालत ने कहा कि पुलिस द्वारा दायर की गई स्थिति रिपोर्ट के अनुसार, कुछ शरारती तत्वों ने बैरिकेड तोड़ दिए और निवास के प्रवेश द्वार तक पहुंच गए। अदालत ने कहा, ‘‘हमारे विचार में, उपरोक्त चूक एक गंभीर चूक है और इस पर दिल्ली पुलिस आयुक्त द्वारा गौर किया जाना चाहिए।’’
इसने कहा, ‘‘किसी भी संवैधानिक पदाधिकारी के आवास पर इस तरह की घटना, चाहे वह कोई मुख्यमंत्री हो या उच्च न्यायालय या उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश या कोई अन्य केंद्रीय मंत्री.. यह बहुत परेशान करने वाला है कि ऐसी स्थिति उत्पन्न हो या ऐसे शरारती तत्व अपने प्रयास में सफल हो जाएं.. आपने कैसा बंदोबस्त किया कि लोग तीन बैरिकेड पार कर गए। फिर आपको गंभीरता से अपनी दक्षता और कामकाज पर गौर करने की जरूरत है।’’
अदालत ने कहा, ‘‘यह बहुत स्पष्ट है कि घटना को रोकने में बल की ओर से चूक हुई। हम चाहते हैं कि पुलिस की चूक पर पुलिस आयुक्त गौर करें।’’
इसने सवाल किया कि जब पहले बैरिकेड को तोड़ा गया या भीड़ मुख्यमंत्री के आवास पर पहुंची तब क्या अतिरिक्त बल बुलाया गया था? अदालत ने कहा कि सुरक्षा व्यवस्था से संबंधित मुद्दे की ‘‘उच्चतम स्तर पर जांच की जरूरत है।’’
अदालत ने कहा, ‘‘उन्हें (पुलिस आयुक्त) पहले इस बात की जांच करनी चाहिए कि क्या बंदोबस्त पर्याप्त था, दूसरा- की गई व्यवस्थाओं के विफल होने के कारण और तीसरा- जो चूक हुई है उसके लिए जिम्मेदारी तय करें।’’
इसने स्पष्ट किया कि जहां तक सुरक्षा व्यवस्था का संबंध है तो वह पुलिस की वर्तमान स्थिति रिपोर्ट से संतुष्ट नहीं है, जो एक सीलबंद लिफाफे में दी गई थी। अदालत ने पुलिस आयुक्त को दो सप्ताह का समय दिया ताकि वह इस पहलू पर एक और स्थिति रिपोर्ट दाखिल कर सकें, जिसमें मुख्यमंत्री की सुरक्षा की समीक्षा भी शामिल है।
पीठ ने कहा कि मामले में जांच में कोई चूक होने पर संबंधित मजिस्ट्रेट इसे देख सकते हैं और न्यायिक उपाय उपलब्ध हैं।
दिल्ली पुलिस की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल संजय जैन ने कहा कि मामले की जांच जारी है और मुख्यमंत्री की सुरक्षा की समीक्षा की गई है तथा याचिका को बंद किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि हालांकि घटना ‘‘नहीं होनी चाहिए थी’’, एक चूक का यह मतलब नहीं है कि बंदोबस्त ‘‘मौलिक रूप से त्रुटिपूर्ण’’ था।
अदालत ने कहा, ‘‘एक बार चूक होने के बाद इसके परिणाम भुगतने होते हैं..जिम्मेदारी तय की जानी चाहिए ताकि सुधारात्मक कदम उठाए जा सकें... विचारधारा चाहे जो भी हो, यह लोकतंत्र का एक बहुत ही महत्वपूर्ण पहलू है.. जैसा कि हम कहते हैं कि कोई भी यह नहीं कह सकता कि वह हमारे प्रधानमंत्री नहीं हैं। वह संवैधानिक पद होता है जिससे हम जुड़़े होते हैं। यह किसी व्यक्ति या दूसरे व्यक्ति के बारे में नहीं है।’’
याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी और राहुल मेहता ने अदालत से इस घटना की निष्पक्ष और स्वतंत्र जांच के लिए एक एसआईटी गठित करने का आग्रह किया। सिंघवी ने दावा किया कि घटना के वीडियो और तस्वीरों में देखे गए कुछ लोगों को बाद में एक राजनीतिक दल द्वारा "सम्मानित" किया गया।
भारद्वाज ने अधिवक्ता भरत गुप्ता के माध्यम से अपनी याचिका में कथित हमले की जांच के लिए एक एसआईटी के गठन का अनुरोध किया था और दलील दी थी कि 'द कश्मीर फाइल्स' फिल्म पर मुख्यमंत्री की टिप्पणी के विरोध के दौरान उनके सरकारी आवास में तोड़फोड़ दिल्ली पुलिस की मिलीभगत से की गई प्रतीत होती है।
याचिका में आरोप लगाया गया है, ‘‘30 मार्च, 2022 को, भाजपा के कई गुंडों ने विरोध की आड़ में, दिल्ली के मुख्यमंत्री के सरकारी आवास पर हमला किया। वीडियो और तस्वीरों से पता चलता है कि ये गुंडे (दिल्ली पुलिस द्वारा बनाए गए) सुरक्षा घेरे को आसानी से पार कर गए, बूम बैरियर को तोड़ दिया, सीसीटीवी कैमरों को लाठियों से तोड़ दिया, निवास के गेट पर पेंट फेंका और लगभग गेट पर चढ़ गए, जबकि दिल्ली पुलिस के जवान देखते रहे और प्रदर्शनकारियों को रोकने के लिए कुछ नहीं किया।’’
उच्च न्यायालय ने एक अप्रैल को घटना के संबंध में पुलिस से स्थिति रिपोर्ट मांगी थी। मामले की अगली सुनवाई 17 मई को होगी।
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