नयी दिल्ली, 12 जनवरी महाकुंभ पर एक नयी सचित्र पुस्तक इस विशाल आयोजन की पौराणिक कथाओं, जीवंत अनुष्ठानों और गहन आध्यात्मिकता पर प्रकाश डालती है। प्रयागराज में सोमवार से महाकुंभ की शुरुआत होगी।
दीपक कुमार सेन द्वारा लिखित ‘द डिवाइन कुंभ: इकोज ऑफ इटर्निटी : गंगा, शिप्रा, गोदावरी एंड संगम’ किताब मेले के शाश्वत सार पर प्रकाश डालती है, साथ ही उन आधुनिक नवाचारों की खोज करती है, जिन्होंने इस आयोजन को एक वैश्विक आकर्षण में बदल दिया है।
इस साल यह आयोजन और भी महत्वपूर्ण है क्योंकि महाकुंभ हर 12 साल में एक बार होता है और इसे सभी कुंभ मेलों में सबसे पवित्र माना जाता है। कुंभ मेला बारी-बारी से हर तीन साल में हरिद्वार, उज्जैन, नासिक और प्रयागराज में आयोजित किया जाता है।
कुंभ मेले को धरती पर लोगों के सबसे बड़े जमावड़े में से एक माना जाता है।
‘नियोगी बुक्स’ द्वारा प्रकाशित पुस्तक में कहा गया है कि लाखों लोग बिना किसी औपचारिक निमंत्रण के प्रयागराज में संगम (गंगा, यमुना और पौराणिक सरस्वती नदियों का संगम) और हरिद्वार में गंगा, उज्जैन में शिप्रा और नासिक में गोदावरी के तट पर एकत्रित होते हैं।
सेन के अनुसार, भारत में नदियों को देवी के रूप में पूजा जाता है और हर भारतीय के जीवन में उनका अपना महत्व है।
आयोजन के कार्यक्रम के बारे में लेखक कहते हैं कि ग्रहों की दशा-दिशा के आधार पर पूर्ण कुंभ मेला हर 12 साल में एक बार चार स्थानों-प्रयाग (इलाहाबाद), हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में नदी के तट पर आयोजित किया जाता है। अर्ध कुंभ मेला हर छह साल में हरिद्वार और प्रयाग में आयोजित किया जाता है।
सेन लिखते हैं, ‘‘इन स्थानों पर सूर्य, चंद्रमा और बृहस्पति ग्रह की विशिष्ट राशि स्थिति के आधार पर कुंभ का आयोजन किया जाता है। अगले कुंभ मेले के लिए स्थल का चयन सबसे पवित्र समय पर किया जाता है, जो ठीक उसी क्षण होता है जब ये राशि स्थितियां पूरी होती हैं।’’
उन्होंने अन्य संबंधित विषयों के अलावा अखाड़ों या साधु संतों के मठों, नागा साधुओं, शाही स्नान और मोक्ष या मुक्ति पर भी चर्चा की है।
सेन ने कहा कि साधु, जो कभी भोग विलास की चीजों से दूर रहते थे, अब आधुनिक सुविधाओं का भी आनंद ले रहे हैं। उन्होंने लिखा है कि कई साधु संत महंगे फोन और आलीशान वाहनों के काफिले के साथ नजर आते हैं।
उन्होंने यह भी कहा कि सूचना प्रौद्योगिकी क्रांति के साथ, दुनिया के सभी कोनों से तीर्थयात्री अब भक्ति के सागर को देख सकते हैं, उसमें डूब सकते हैं। सेन ने एक पंडित की वेबसाइट का हवाला देते हुए कहा, ‘‘जो श्रद्धालु कुंभ में नहीं आ पाते, वे पूजा, प्रसाद और अन्य चीजों सहित खास ऑनलाइन पैकेज के जरिये डिजिटल माध्यम से इसमें भाग ले सकते हैं।’’
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