नयी दिल्ली, 12 अगस्त विदेशी बाजारों में गिरावट के रुख के बीच देश के खाद्य तेल-तिलहन बाजार में सोमवार को बिनौला तेल को छोड़कर बाकी सभी तेल-तिलहन के दाम गिरावट के साथ बंद हुए। नगण्य स्टॉक रहने के बीच थोड़ी मांग से बिनौला तेल के दाम सुधार दर्शाते बंद हुए।
शिकॉगो और मलेशिया एक्सचेंज में गिरावट थी।
बाजार के जानकार सूत्रों ने कहा कि बिनौला की लगभग 95 प्रतिशत पेराई मिलें बंद हो चुकी हैं और आगे कारोबार का रुख अक्टूबर में इसकी नयी फसल आने के बाद ही पता चलेगा। थोड़ी बहुत मांग निकलने से बिनौला तेल के दाम में सुधार आया।
कृषि मंत्रालय द्वारा जारी आंकडों में अभी तक खरीफ बुवाई के दौरान तिलहन खेती का रकबा मामूली वृद्धि दर्शाता है या लगभग स्थिर है लेकिन कपास खेती के रकबे में गिरावट है। यह आने वाले समय में खल की बढ़ती मांग पर असर डालेगा और खल के दाम बढ़ने पर खाद्य तेल के मुकाबले अधिक खपत वाले दूध के दाम बढ़ने के आसार बन रहे हैं।
सूत्रों ने कहा कि पिछले साल वायदा कारोबार में बिनौला खल के दिसंबर अनुबंध का भाव 2,400 रुपये क्विंटल था लेकिन इस बार एनसीडीईएक्स के वायदा कारोबार में दिसंबर अनुबंध का भाव 2,970 रुपये क्विंटल है। इस बार अभी तक बुवाई का रकबा भी कम है, ऐसे में आने वाले समय में जो खल की मांग आयेगी उसे कहां से पूरा किया जायेगा? इसकी जवाबदेही किसकी होगी? क्या इसकी जिम्मेदारी वे समीक्षक लेंगे जो महंगाई का रोना रोकर आयात शुल्क नीचे रखवाना चाहते हैं और खुदरा में इसी सस्ते तेल का मिश्रण के बाद महंगे दाम पर बेचने के मामले पर चुप्पी साधे रहते हैं?
सूत्रों ने कहा कि देशी खाद्य तेल के मुकाबले आयातित तेल के थोक दाम लगभग आधे हैं और इसलिए बाजार में खप रहे हैं। लेकिन इसी सस्ते थोक दाम के कारण देशी तेल-तिलहनों का बाजार में खपना दूभर हो गया है। खुदरा में यही सस्ता आयातित तेल महंगे में बिक रहा है लेकिन सस्ता थोक दाम बाजार की धारणा को बिगाड़े हुए है जिसकी वजह से देश में सरसों का पिछले तीन साल का कुछ स्टॉक बचा रह गया है। जब तक देशी तेल- तिलहन का बाजार विकसित नहीं होगा, उसके अनुकूल सारी नीतियां नहीं बनेंगी, तिलहन उत्पादन बढ़ाकर भी कुछ हासिल नहीं होगा।
उन्होंने कहा कि सरकार आंकड़ों का हवाला देकर कह सकती है कि तिलहन खेती के रकबे में अगर उल्लेखनीय वृद्धि नहीं हुई तो कम से कम वह स्थिर बनी हुई है लेकिन अगर आप देश में लगभग हर साल खाद्य तेलों की मांग में होने वाली लगभग 10 प्रतिशत की वृद्धि को ध्यान में रखें तो अभी के आंकड़े संतोषजनक नहीं कहे जा सकते।
सूत्रों ने कहा कि सरकार के प्रतिनिधियों और समीक्षकों को देश के तेल- तिलहन कारोबार की हालत को समझकर ही कोई राय या फैसला करना चाहिये। उन्हें इस बात की समीक्षा करनी होगी कि देश में पहले सूरजमुखी की पर्याप्त पैदावार होती थी लेकिन आज हम सूरजमुखी तेल के मामले में क्यों लगभग 98 प्रतिशत आयात पर निर्भर हो गये हैं? क्यों इस देश में महुआ और तरबूज बीज के तेल का कारोबार ठप हो गया? क्यों दक्षिण भारत से मूंगफली की पैदावार लगभग समाप्त हो गयी? इस संबंध में नीतियों की समीक्षा जरूरी है तभी भविष्य के लिए हम देशी तेल-तिलहनों का बाजार विकसित कर पायेंगे और तिलहन उत्पादन बढ़ाने का सपना साकार कर पायेंगे।
तेल-तिलहनों के भाव इस प्रकार रहे:
सरसों तिलहन - 5,925-5,965 रुपये प्रति क्विंटल।
मूंगफली - 6,425-6,700 रुपये प्रति क्विंटल।
मूंगफली तेल मिल डिलिवरी (गुजरात) - 15,350 रुपये प्रति क्विंटल।
मूंगफली रिफाइंड तेल 2,290-2,590 रुपये प्रति टिन।
सरसों तेल दादरी- 11,600 रुपये प्रति क्विंटल।
सरसों पक्की घानी- 1,880-1,980 रुपये प्रति टिन।
सरसों कच्ची घानी- 1,880-2,005 रुपये प्रति टिन।
तिल तेल मिल डिलिवरी - 18,900-21,000 रुपये प्रति क्विंटल।
सोयाबीन तेल मिल डिलिवरी दिल्ली- 10,150 रुपये प्रति क्विंटल।
सोयाबीन मिल डिलिवरी इंदौर- 9,850 रुपये प्रति क्विंटल।
सोयाबीन तेल डीगम, कांडला- 8,425 रुपये प्रति क्विंटल।
सीपीओ एक्स-कांडला- 8,750 रुपये प्रति क्विंटल।
बिनौला मिल डिलिवरी (हरियाणा)- 9,550 रुपये प्रति क्विंटल।
पामोलिन आरबीडी, दिल्ली- 9,950 रुपये प्रति क्विंटल।
पामोलिन एक्स- कांडला- 9,000 रुपये (बिना जीएसटी के) प्रति क्विंटल।
सोयाबीन दाना - 4,420-4,440 रुपये प्रति क्विंटल।
सोयाबीन लूज- 4,230-4,355 रुपये प्रति क्विंटल।
मक्का खल (सरिस्का)- 4,125 रुपये प्रति क्विंटल।
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