नयी दिल्ली, 15 सितंबर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के झारखंड दौरे के बीच कांग्रेस ने रविवार को पूछा कि जमशेदपुर के लोग अब भी ‘‘खराब कनेक्टिविटी’’ से क्यों जूझ रहे हैं। साथ ही कांग्रेस ने प्रधानमंत्री पर आदिवासियों को उनकी धार्मिक पहचान से वंचित करने और सरना संहिता को मान्यता देने से इनकार करने का आरोप लगाया।
कांग्रेस महासचिव एवं संचार प्रभारी जयराम रमेश ने यह भी पूछा कि आदित्यपुर औद्योगिक क्षेत्र को अभी तक पर्यावरणीय मंजूरी क्यों नहीं मिली है।
रमेश ने ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में कहा, ‘‘नॉन-बायलॉजिकल प्रधानमंत्री आज झारखंड के जमशेदपुर में हैं। उन्हें झारखंड की जनता को इन तीन सवालों का जवाब देना चाहिए।’’
उन्होंने पूछा कि एक औद्योगिक केंद्र होने के बावजूद जमशेदपुर के लोग ख़राब परिवहन कनेक्टिविटी से क्यों जूझ रहे हैं।
रमेश ने कहा, “भागलपुर, बेंगलुरु और दिल्ली जैसे प्रमुख शहरों के लिए चलने वाली रेलगाड़ियों की संख्या पर्याप्त नहीं है। शहर में 2016 तक एक संचालित हवाई अड्डा था लेकिन 2018 में उड़ान योजना में शामिल होने के बावजूद, नए हवाई अड्डे की योजना साकार नहीं हुई।”
उन्होंने कहा कि दिसंबर 2022 तक धालभूमगढ़ हवाई अड्डे के निर्माण के लिए जनवरी 2019 में झारखंड सरकार और हवाई अड्डा प्राधिकरण के बीच एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए।
रमेश ने कहा कि इससे औद्योगिक क्षेत्र की टाटा जैसी प्रमुख कंपनियों समेत आदित्यपुर में एमएसएमई को अच्छा बढ़ावा मिलेगा।
कांग्रेस महासचिव ने कहा, “जब दिसंबर 2022 की तय समयसीमा में काम नहीं हुआ तो भाजपा के अपने सांसद इस मुद्दे को संसद में उठाने के लिए मजबूर हुए। 27 फरवरी, 2023 को केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री ने जवाब दिया और पुष्टि की कि परियोजना को छोड़ दिया गया था।”
उन्होंने कहा कि अब काफी मशक्कत के बाद पर्यावरण संबंधी इजाज़त मिलती दिख रही है।
रमेश ने पूछा कि केंद्र सरकार ने झारखंड में इतने ज़रूरी बुनियादी ढांचे की अनदेखी क्यों की और ‘‘सबका साथ सबका विकास’’ का क्या हुआ?
उन्होंने पूछा कि आदित्यपुर औद्योगिक क्षेत्र को अब तक पर्यावरण मंजूरी क्यों नहीं मिली?
कांग्रेस महासचिव ने कहा, “जमशेदपुर के महत्वपूर्ण औद्योगिक केंद्र - आदित्यपुर औद्योगिक क्षेत्र का आधे से अधिक हिस्सा 2015 से नियामक दायरे में है। इस विशेष आर्थिक क्षेत्र (एसईजेड) में 1,200 इकाइयां हैं। इनमें 11 बड़ी, 64 छोटी और 166 अन्य इकाइयां शामिल हैं।”
उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा कि 2015 में, झारखंड राज्य उद्योग विभाग ने आदित्यपुर औद्योगिक क्षेत्र में 276 एकड़ विशेष आर्थिक क्षेत्र (एसईजेड) के भीतर 54 एकड़ वन भूमि के संबंध में मंजूरी दी, लेकिन केंद्र सरकार ने वन और पर्यावरण मंजूरी देने में देरी करके इसके विकास में बाधा उत्पन्न की है।
रमेश ने कहा कि यह परियोजना तो लटकी हुई है लेकिन मोदी सरकार ने 2019 में गोड्डा में अडानी पावर के लिए 14,000 करोड़ रुपए की एसईजेड परियोजना को मंजूरी दी।
कांग्रेस नेता ने पूछा कि ऐसा क्यों है कि आदित्यपुर औद्योगिक क्षेत्र को लगभग 10 वर्षों तक इंतज़ार करना पड़ा, जबकि अडानी की परियोजनाओं को तेज़ी से आगे बढ़ाया गया? उन्होंने कहा, ‘‘क्या इस सौदे में काले धन से भरे टेंपो की भूमिका थी जिसके बारे में नॉन-बायोलॉजिकल प्रधानमंत्री ने हमें बताया था?’’
उन्होंने सवाल किया कि प्रधानमंत्री ने आदिवासियों को उनकी धार्मिक पहचान से वंचित क्यों किया और सरना संहिता को मान्यता देने से इनकार क्यों किया?
रमेश ने कहा, “झारखंड के आदिवासी समुदाय वर्षों से सरना धर्म को मानते आ रहे हैं। वे भारत में अपनी विशिष्ट धार्मिक पहचान को आधिकारिक रूप से मान्यता देने की मांग कर रहे हैं। लेकिन, जनगणना के धर्म कॉलम से ‘अन्य’ विकल्प को हटाने के हालिया निर्णय ने सरना अनुयायियों के लिए दुविधा पैदा कर दिया है।”
उन्होंने दावा किया कि उन्हें अब या तो विकल्पों में मौजूद धर्मों में से किसी एक को चुनना होगा या कॉलम को ख़ाली छोड़ना होगा।
रमेश ने कहा कि 2020 के नवंबर महीने में झारखंड विधानसभा ने विशिष्ट धार्मिक पहचान को मान्यता देने की इस मांग का समर्थन करते हुए एक प्रस्ताव पारित किया।
उन्होंने कहा, “भाजपा के पूर्व मुख्यमंत्री रघुबर दास के 2021 तक सरना संहिता लागू करने के आश्वासन और 2019 में गृह मंत्री अमित शाह के ऐसे ही वादे के बावजूद, केंद्र सरकार में इस मामले में कोई ख़ास प्रगति नहीं हुई है।”
कांग्रेस महासचिव ने कहा, “आज जब नॉन-बायोलॉजिकल प्रधानमंत्री झारखंड में हैं तो क्या वह इस मुद्दे का समाधान करेंगे और स्पष्ट करेंगे कि सरना संहिता लागू करने को लेकर उनका क्या रुख है? क्या रघुबर दास और अमित शाह के वादे महज़ जुमले थे?”
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