
ट्रंप ने कहा कि इसके बदले में अमेरिका भी चीन को वह सब प्रदान करेगा जिस पर सहमति बनी है। इसमें चीनी छात्रों को अमेरिकी कॉलेजों एवं विश्वविद्यालयों में जाने की अनुमति देना भी शामिल है।
दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं अमेरिका और चीन ने एक दिन पहले ही लंदन में व्यापार वार्ता को पटरी पर लाने के लिए एक रूपरेखा पर सहमति जताई। यह दो-दिवसीय बैठक खनिज और प्रौद्योगिकी निर्यात से जुड़े विवादों के समाधान पर केंद्रित थी।
अप्रैल में ट्रंप द्वारा चीनी आयात पर उच्च शुल्क लगाने की घोषणा के बाद चीन ने भी जवाबी शुल्क लगा दिया था। हालांकि, बाद में दोनों देश इस पर व्यापक बातचीत करने के लिए सहमत हो गए थे।
इस बीच, नीदरलैंड स्थित अंतरराष्ट्रीय अधिकार समूह ‘ग्लोबल राइट्स कंप्लायंस’ ने एक रिपोर्ट जारी कर चिंता जताई है कि कई वैश्विक ब्रांड अपनी चीनी आपूर्ति शृंखलाओं के माध्यम से जबरन श्रम का उपयोग करने के जोखिम में हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक, एवन, वॉलमार्ट, नेस्कैफे, कोका-कोला और पेंट आपूर्तिकर्ता शेरविन-विलियम्स जैसी कंपनियां चीन के सुदूर-पश्चिमी क्षेत्र झिंजियांग से प्राप्त खनिजों, विशेष रूप से टाइटेनियम से संबंधित हो सकती हैं।
अधिकार समूहों का आरोप है कि चीनी सरकार झिंजियांग में मुख्य रूप से मुस्लिम समुदाय उइगर और अन्य तुर्क अल्पसंख्यकों को निशाना बनाकर जबरन श्रम प्रथाएं चला रही है।
इस रिपोर्ट में झिंजियांग में टाइटेनियम, लिथियम, बेरिलियम और मैग्नीशियम उद्योगों में 77 चीनी आपूर्तिकर्ताओं का उल्लेख है। इन आपूर्तिकर्ताओं पर चीनी सरकार के 'श्रम हस्तांतरण कार्यक्रमों' में भाग लेने का खतरा है, जिसके तहत उइगरों को कारखानों में काम करने के लिए मजबूर किया जाता है।
रिपोर्ट ने कंपनियों से अपनी आपूर्ति श्रृंखलाओं की समीक्षा करने का आग्रह किया है, क्योंकि झिंजियांग में खनिज खनन और प्रसंस्करण आंशिक रूप से उइगरों और अन्य तुर्क लोगों के लिए राज्य के जबरन श्रम कार्यक्रमों पर निर्भर करता है।
चीन के विदेश मंत्रालय ने इस रिपोर्ट में लगाए आरोपों का खंडन करते हुए कहा कि चीन के झिंजियांग में कभी भी किसी को भी काम के कार्यक्रमों के तहत जबरन स्थानांतरित नहीं किया गया है।
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने इसे ‘कुछ चीन विरोधी ताकतों द्वारा गढ़ा गया झूठ’ बताया।
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