नयी दिल्ली, नौ दिसंबर जॉर्ज सोरोस से जुड़े और उसके वित्त पोषित संगठन का इस्तेमाल भारत को अस्थिर करने के लिए किए जाने संबंधी आरोपों को अमेरिका की ओर से खारिज किए जाने के बाद भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने सोमवार को कहा कि अमेरिका को यह स्पष्ट करना होगा कि वह मोदी सरकार को अस्थिर करने के अरबपति निवेशक के रुख के साथ खड़ा है या नहीं।
भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी ने यहां भाजपा मुख्यालय में एक संवाददाता सम्मेलन में इस मुद्दे पर सवालों का जवाब देते हुए कहा कि भाजपा के आरोप फ्रांसीसी मीडिया मंच द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट पर आधारित हैं और अमेरिका को इस मामले पर अपनी स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए।
भाजपा ने बृहस्पतिवार को आरोप लगाया था कि मीडिया पोर्टल ‘आर्गनाइज्ड क्राइम एंड करप्शन रिपोर्टिंग प्रोजेक्ट’ (ओसीसीआरपी) और सोरोस ने भारत की अर्थव्यवस्था को बर्बाद करने तथा नरेन्द्र मोदी सरकार को बदनाम करने के लिए विपक्ष के साथ मिलीभगत की है।
अमेरिका ने शनिवार को भाजपा के आरोपों को खारिज कर दिया था। साथ ही अमेरिकी दूतावास के प्रवक्ता ने आरोपों को निराशाजनक बताया और कहा कि अमेरिका सरकार दुनियाभर में मीडिया की स्वतंत्रता की पैरोकार रही है।
इस बारे में पूछे जाने पर त्रिवेदी ने सोमवार को कहा कि उनकी पार्टी ने फ्रांसीसी मीडिया मंच (मीडियापार्ट) में प्रकाशित एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए यह मुद्दा उठाया है।
उन्होंने कहा, "और इसमें यह बहुत स्पष्ट है कि ओसीसीआरपी परियोजना को आंशिक रूप से अमेरिकी विदेश विभाग और सोरोस द्वारा भी वित्त पोषित किया गया था।"
ओसीसीआरपी एक मीडिया प्लेटफॉर्म है जो बड़े पैमाने पर अपराध और भ्रष्टाचार से संबंधित खबरों पर अपना ध्यान केंद्रित करता है। इसका मुख्यालय एम्स्टर्डम में है।
त्रिवेदी ने कहा, ''इसलिए उन्हें यह स्पष्ट करना चाहिए कि वे मोदी सरकार को अस्थिर करने के सोरोस के रुख के साथ खड़े हैं या नहीं।"
भाजपा नेता ने कहा कि रूस की सरकार ने साफ तौर पर कहा था कि इस साल लोकसभा चुनाव के दौरान 'भारत में विदेशी हस्तक्षेप' हुआ था।
उन्होंने कहा, "अब उन्हें (अमेरिका को) यह स्पष्ट करना चाहिए कि वे आंतरिक मामलों में शामिल हैं या नहीं। यदि नहीं तो उन्हें इन संगठनों (ओसीसीआरपी) से अपना समर्थन वापस ले लेना चाहिए।"
इससे पहले मई में, रूस ने अमेरिका पर भारत के घरेलू मामलों और देश में जारी चुनावों में हस्तक्षेप करने का आरोप लगाया था, जिसे बाद में वाशिंगटन ने खारिज कर दिया था।
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