जर्मन कंपनियों के लिए चीन में अपना कारोबार बंद करना क्यों है मुश्किल
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

कई दशकों से चीन जर्मन कारोबारों के लिए एक महत्वपूर्ण आर्थिक साझेदार रहा है. यह स्थिति अभी भी वैसी ही है. आर्थिक एवं राजनीतिक संबंधों में बदलाव के बावजूद जर्मन कारोबार चीन से दूर जाने को तैयार नहीं हैं. आखिर क्यों?जर्मनी के फ्रैंकफर्ट स्थित रेयर अर्थ एंड कमोडिटी ट्रेडिंग फर्म ‘ट्रेडियम' के प्रबंध निदेशक माथियास रूथ का मानना है कि चीन में बहुत ज्यादा निवेश करने के खतरों के बारे में सरकारी चेतावनियां बढ़ रही हैं. इसके बावजूद वह अपने कारोबार को चीन से हटाने के बारे में सोच भी नहीं रहे हैं.

चीन कारोबार के लिहाज से अहम बना हुआ है, क्योंकि रेयर अर्थ क्षेत्र पर उसका दबदबा है और रेयर अर्थ की मांग लगातार बढ़ रही है. उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया, "उदाहरण के तौर पर, चीन रेयर अर्थ खनिजों के बाजार का 95 फीसदी से अधिक हिस्सा नियंत्रित करता है. इसलिए इतनी जल्दी इसका विकल्प खोजना असंभव है. हमारे ये कारोबारी संबंध पुराने और भरोसेमंद हैं. मटीरियल और सभी प्रक्रियाएं पूरी तरह से जांची एवं परखी जा चुकी हैं.”

रूथ और जर्मनी की कई अन्य कंपनियों के लिए, चीन अभी भी कारोबार के लिए एक आकर्षक जगह बना हुआ है. लंबे समय तक, जर्मन सरकार ने भी इस नीति का पूरी तरह से समर्थन किया था और इसे बढ़ावा दिया था. हालांकि, शी जिनपिंग के सत्ता में आने के बाद ईयू-चीन के रिश्तों में बदलाव आया है. इसकी एक वजह यह भी है कि यूक्रेन पर रूसी हमले के बाद चीन ने रूस का साथ दिया है.

भू-राजनीतिक हालात बदल गए हैं. पिछले कुछ सालों से, जर्मन सरकार चीन से ‘डी-रिस्किंग', यानी सामान, कच्चे माल या उपकरण के लिए किसी एक देश पर निर्भरता कम करने की बात कर रही है. इसकी वजह यह है कि विदेशी कंपनियों को चीनी संस्थाओं की ओर से लागू किए जाने वाले सख्त कदमों का सामना करना पड़ सकता है.

हाल ही में, जर्मन चांसलर फ्रीडरिष मैर्त्स ने चीन में काम कर रही जर्मन कंपनियों के बारे में कहा, "जब मैं उनसे मिलता हूं, तो हमेशा कहता हूं कि अगर मामला बिगड़ता है तो नुकसान की जिम्मेदारी आपकी होगी. उस हालत में कृपया हमारी मदद की उम्मीद न रखें.”

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इस हफ्ते की शुरुआत में, जर्मनी के वित्त मंत्री लार्स क्लिंगबाइल ने दोनों देशों के बदलते आर्थिक रिश्तों पर बात करने के लिए चीन का दौरा किया. बीजिंग में उन्होंने कहा कि जर्मनी "निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा को खतरे में देखता है और औद्योगिक नौकरियों को भी खतरे में देखता है.” हालांकि, उन्होंने बातचीत की जरूरत पर जोर दिया और कहा, "हमें चीन के बारे में बात करने के बजाय चीन से बात करनी होगी.”

चीन के साथ संबंधों को तोड़ना मुश्किल

चीन के साथ अपने संबंधों को तोड़ना जर्मन उद्योग के लिए साफ तौर पर बहुत मुश्किल है और इसकी वजह भी है. इसी हफ्ते, चीन ने अमेरिका को पीछे छोड़ते हुए एक बार फिर से जर्मनी के सबसे बड़े व्यापारिक साझेदार की जगह ले ली. इस साल जनवरी से सितंबर के बीच दोनों देशों के बीच 185.9 अरब यूरो (215 अरब डॉलर) का व्यापार हुआ.

कई दशकों से, जर्मनी के प्रमुख औद्योगिक समूहों ने चीन के बड़े बाजार को प्राथमिकता दी है. यही वजह है कि वहां उनका निवेश आज भी काफी ज्यादा बना हुआ है.

बर्लिन स्थित मर्केटर इंस्टीट्यूट फॉर चाइना स्टडीज के एक हालिया अध्ययन के मुताबिक, 2024 की पहली छमाही में, चीन में कुल यूरोपीय संघ के निवेश का 57 फीसदी हिस्सा जर्मन विदेशी प्रत्यक्ष निवेश से आया था. यह जर्मनी के कुल जीडीपी के लगभग 2.3 फीसदी के बराबर है. इस रिपोर्ट में बताया गया है कि निवेश अभी भी बढ़ रहा है. 2023 और 2024 के बीच कॉर्पोरेट निवेश 1.3 अरब यूरो तक बढ़ा है.

जर्मनी और चीन जिन सेक्टर में सबसे ज्यादा जुड़े हैं, उनमें से एक है कार बनाना. जर्मनी की कार बनाने वाली कुछ सबसे बड़ी कंपनियों, जैसे कि फॉक्सवागन और बीएमडब्ल्यू ने पिछले कुछ सालों में चीन में अरबों डॉलर निवेश किए हैं और कमाए हैं. हाल की चुनौतियों के बावजूद, उन्हें अभी भी लंबे समय तक सफलता की उम्मीद है. बीएमडब्ल्यू ने हाल ही में शेनयांग शहर में एक बैटरी प्रोजेक्ट में 3.8 अरब यूरो का निवेश किया है. कंपनी ने डीडब्ल्यू को बताया कि चीन से दूर जाने की उसकी कोई बड़ी योजना नहीं है.

कंपनी की प्रवक्ता ब्रिटा उलरिष ने डीडब्ल्यू को बताया, "बीएमडब्ल्यू समूह चीन के बाजार में दो संयुक्त कंपनियों के साथ मौजूद है और वहां उसके कई संयंत्र चल रहे हैं. दुनिया के सबसे बड़े बाजार में, हम एक लॉन्ग-टर्म मार्केट स्ट्रेटेजी अपनाते हैं. हमारी रणनीति लंबे समय के हिसाब से तैयार की गई है. हम समय-समय पर इसकी समीक्षा करते हैं और जरूरत के हिसाब से बदलाव करते हैं. फिलहाल, इस क्षेत्र में हमारी गतिविधियों में कोई बड़ा बुनियादी बदलाव नहीं किया गया है.”

जर्मन कार निर्माताओं के लिए चीन आज कितना भी महत्वपूर्ण क्यों न हो, इस रिश्ते में अब बड़ा बदलाव आ रहा है. यह सिर्फ भू-राजनीतिक कारणों से नहीं है. बल्कि, जर्मनी की कार कंपनियों को अब चीनी प्रतिद्वंद्वियों से कड़ी टक्कर मिल रही है. ऐसा माना जा रहा है कि इस प्रतिस्पर्धा की एक वजह चीन की ऐसी औद्योगिक नीतियां हैं जो अंतरराष्ट्रीय व्यापार नियमों को कमजोर करती हैं.

जर्मन एसोसिएशन ऑफ ऑटोमोटिव इंडस्ट्री (वीडीए) के एक प्रवक्ता ने डीडब्ल्यू को बताया, "यह बहुत जरूरी है कि दोनों तरफ प्रतिस्पर्धा से जुड़ी स्थितियां एक जैसी हों और सबको बराबर मौका मिले. इस मामले में, चीन से कहा गया है कि वह यूरोप के सामने अच्छे प्रस्ताव रखे, प्रतिस्पर्धा विरोधी गतिविधियों को तेजी से रोके, और मौजूदा स्थिति में मुक्त व्यापार सुनिश्चित करे.”

फिर भी, जर्मन कारोबार के लिए चीन की अहमियत बने रहने के बावजूद, हर तरफ से वित्तीय दबाव आ रहा है. 2019 से चीन को जर्मन निर्यात में 25 फीसदी की कमी आई है. इसका कारण यह है कि चीन ने तेजी से अपने इलेक्ट्रिक वाहनों का उत्पादन बढ़ाया है. इसके चलते जर्मनी की प्रमुख कार कंपनियों फॉक्सवागन, मर्सिडीज और बीएमडब्ल्यू की बाजार हिस्सेदारी में पिछले कुछ वर्षों में भारी गिरावट आई है.

वीडीए के प्रवक्ता ने कहा, "भले ही कार उद्योग से जुड़ी कंपनियां तेजी से जरूरी जोखिम कम करने (डी-रिस्किंग) के काम में जुटी हुई हैं, लेकिन सिर्फ कंपनियों से ही ऐसा करने के लिए नहीं कहा जाना चाहिए, बल्कि सरकार की ओर से ‘राजनीतिक सहयोग' भी मिलना चाहिए.” उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि जोखिम कम करने का मतलब यह नहीं होना चाहिए कि किसी बाजार में कारोबार को पूरी तरह से बंद कर दिया जाए.

उन्होंने कहा, "सबसे अच्छी नीति यह है कि कारोबार की जगहों, प्रतिस्पर्धा, और आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए हर मुमकिन कोशिश की जाए. इससे न सिर्फ हमारी मोलभाव या सौदेबाजी की क्षमता मजबूत होती है, बल्कि अपने देश के भीतर भी निवेश और नई खोजों को बढ़ावा मिलता है.”

बाजार के दबाव की कड़वी सच्चाई

रेयर अर्थ ट्रेडर माथियास रूथ का कहना है कि यह ध्यान रखना जरूरी है कि भू-राजनीतिक तनाव का असर चीन में उनके व्यापारिक सहयोगियों पर भी पड़ रहा है. उन्होंने कहा, "मौजूदा मुश्किलें आपूर्तिकर्ताओं की वजह से नहीं, बल्कि मुख्य रूप से राजनीतिक फैसलों के कारण पैदा हुई हैं.”

कारों के अलावा भी इन जर्मन उद्योगों पर है चीन की नजर

चीन की ओर से रेयर अर्थ के निर्यात पर सख्ती से प्रतिबंध लगाने के कारण उनका कारोबार मुख्य रूप से प्रभावित हुआ है. इससे उनके आपूर्तिकर्ताओं को भी निराशा हुई है. उन्होंने कहा, "उन्हें भी मौजूदा निर्यात पाबंदियों की वजह से नुकसान और चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है.” उनका कहना है कि उनकी कंपनी को चीन से ‘जोखिम कम करने' के लिए राजनीतिक दबाव का सामना नहीं करना पड़ा है.

हालांकि, उन्हें बाजार के दबाव की कड़वी सच्चाई का सामना करना पड़ा है, जिसे वैश्विक शुल्कों और चीन के निर्यात प्रतिबंधों ने और बढ़ा दिया है. वह कहते हैं, "हम जैसे आपूर्तिकर्ताओं के लिए, अब सालों पुरानी हमारी खरीद की प्रक्रियाएं पहले जितनी भरोसेमंद नहीं रहीं. हम अभी भी अपने पुराने चीनी साझेदारों पर निर्भर हैं, क्योंकि कई मटीरियल के लिए चीन के अलावा दूसरा कोई विकल्प मौजूद नहीं है.”

वह बताते हैं कि इसके बावजूद उनकी कंपनी अब चीन के बाहर आपूर्ति के विकल्प तलाशने में ज्यादा समय और संसाधन लगा रही है. वह कहते हैं, "यह कोई राजनीतिक आदेश नहीं है जो हमें बताता है कि हमें क्या करना चाहिए. यह तो बाजार है, जो हर सीरियस ट्रेडर और रॉ मटीरियल प्रोसेसिंग कंपनी को अपनी खरीद की रणनीति पर दोबारा विचार करने के लिए मजबूर कर रहा है और यह दबाव बढ़ता ही जाएगा. यही हमारी रोज की सच्चाई है.”