अब जापान के खिलाफ आक्रामक क्यों हो रहा चीन?
जापान ने चीनी खतरे को भांपते हुए पिछले कुछ सालों में अपनी सैन्य तैयारियां बढ़ाई हैं.
जापान ने चीनी खतरे को भांपते हुए पिछले कुछ सालों में अपनी सैन्य तैयारियां बढ़ाई हैं. जापान की यह सैन्य सक्रियता भी पूर्वी और दक्षिणी चीन सागर के इलाके में चीनी उत्तेजना की वजह हो सकती हैं.जापान ने दावा किया है कि चीन के सैन्य विमान ने उसकी वायुसीमा में बड़ी घुसपैठ की है. चीन का सैन्य टोही विमान वाई-9, जापान के एक छोटे से निर्जन द्वीप डान्जो के पास जापानी वायुसीमा में दाखिल हुआ. यह जापान के चार प्रमुख द्वीपों में से एक क्यूशू के पास स्थित है. घुसपैठ की नई घटना पर जापान की ओर से कड़ी प्रतिक्रिया आई है.
जापान के चीफ कैबिनेट सेक्रेटरी योशिमासा हायाशी ने कहा, "यह जापान की संप्रभुता का गंभीर हनन ही नहीं है, बल्कि हमारी सुरक्षा के लिए भी खतरा है." जापान की ओर से भविष्य में ऐसी किसी गतिविधि पर हर संभव कार्रवाई करने की चेतावनी भी दी गई है. जापान पिछले कुछ वर्षों से चीन को अपनी सीमाओं के लिए खतरे की तरह देख रहा है.
चीन की ओर से बढ़ता खतरा
चीनी सैन्य विमान 26 अगस्त को जिस डान्जो द्वीप के पास जापानी हवाई क्षेत्र में घुसा, वह जापान और चीन के बीच विवादित इलाके का हिस्सा नहीं है. जापानी और चीनी सैन्यपोत पहले पूर्वी चीन सागर के इलाके में एक-दूसरे के आमने-सामने आ चुके हैं. अतीत में ऐसी गहमा-गहमी उन द्वीपों को लेकर हुई है, जिनपर चीन अपना दावा जताता है. इनमें सबसे प्रमुख 'सेनकाकू' द्वीप है. चीन इसे 'द्याओयू' कहता है और इसे अपना इलाका बताता है.
जापान की सेना ने बताया है कि चीन के नागरिक विमान पहले भी जापानी वायुसीमा में दाखिल होते रहे हैं, लेकिन यह पहला मौका है जब चीन के किसी सैन्य विमान ने ऐसा किया है. सेना की ओर से बताया गया कि मार्च 2024 से पहले के एक साल में 660 बार जापान ने घुसपैठ के खिलाफ जवाबी कार्रवाई की है. इनमें से दो-तिहाई कार्रवाइयां चीन के विमान या पानी के जहाज की घुसपैठ के खिलाफ की गई हैं.
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दक्षिण चीन सागर के देशों से संबंध मजबूत करता जापान
वर्षों तक सैन्य मामलों में रुचि ना रखने के बाद पिछले कुछ वर्षों में जापान ने वापस सैन्य ताकत जुटानी शुरू की है. जापान ने साल 2022 से अपने रक्षा बजट में बढ़ोतरी की शुरुआत की है. चीन की ओर से खतरा इसकी अहम वजह रहा है. उसी साल प्रकाशित एक राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति दस्तावेज में जापान ने क्षेत्रीय सुरक्षा के माहौल को द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से सबसे गंभीर और खतरनाक बताया था.
जापान को इन कोशिशों में अमेरिका का साथ मिलता रहा है. जापान अब पलटवार करने की क्षमता और हथियार वगैरह को लेकर नियम आसान बना रहा है. जापान, दक्षिण चीन सागर के इलाके में बसे देशों को फंडिंग और सैन्य सामान देने की शुरुआत भी कर चुका है. जापान की ओर से दी जा रही सैन्य मदद में निगरानी जहाज जैसे संसाधन हैं. इसके अलावा जापान ने जुलाई में फिलीपींस के साथ एक-दूसरे की धरती पर सैनिकों की तैनाती को लेकर भी समझौता किया था.
"ताइवान और फिलीपींस से रणनीतिक संबंध बनाने के खिलाफ संदेश"
चीन सिर्फ दक्षिण और पूर्वी चीन सागर के इलाके में ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया की सबसे बड़ी समुद्री ताकतों में से एक माना जाता है. इसका करीब 700 सैन्य जहाजों वाला समुद्री बेड़ा काफी ताकतवर है. ऐसे में जापान का अगला लक्ष्य है, साल 2027 तक रक्षा संबंधी बजट को जीडीपी के दो फीसदी हिस्से तक लाना. इस बढ़े बजट का अच्छा-खासा हिस्सा जापान के सुदूर द्वीपों पर सुरक्षा स्थिति मजबूत करने पर खर्च किया जाएगा. अब यह जापान की राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति का अहम हिस्सा हैं.
चीन के सैन्य विमान की ओर से जापान में घुसपैठ का ताजा मामला अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जैक सुलिवन के चीन पहुंचने से ठीक पहले हुआ है. सुलिवन, चीन के विदेश मंत्री वांग यी से बात करने के लिए बीजिंग आए हैं. जानकारी के मुताबिक, दोनों को जलमार्गों के बारे में भी बात करनी है. ऐसे में कुछ जानकारों का मानना है कि चीन की ओर से यह घुसपैठ, अमेरिका को ताइवान और फिलीपींस जैसे देशों के साथ रणनीतिक संबंध बढ़ाने के खिलाफ संकेत देने की कोशिश है.
खनिज संसाधन संपन्न है दक्षिणी चीन सागर का इलाका
चीन लंबे समय से दक्षिण चीन सागर पर कब्जा जमाता रहा है. इसकी प्रमुख वजह इस रास्ते से हर साल होने वाला हजारों अरब डॉलर का व्यापार है. व्यस्त व्यापारिक मार्ग होने के अलावा दक्षिणी चीन सागर में प्राकृतिक गैस और तेल का भी बड़ा भंडार है. अमेरिका के एनर्जी इन्फॉर्मेशन एडमिनिस्ट्रेशन के मुताबिक, यहां तकरीबन 190 ट्रिलियन घन फीट गैस और 1,100 करोड़ बैरल तेल का भंडार होने का अनुमान है.
दक्षिण चीन सागर में रेयर अर्थ मिनरल का भी बड़ा भंडार है, जो इलेक्ट्रिक गाड़ियों की बैटरियों समेत कई विकसित इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के लिए अहम हैं. चीन कहता है कि पूरा दक्षिण चीन सागर उसकी सीमा में आता है, जबकि अंतरराष्ट्रीय कोर्ट फैसला दे चुका है कि बीजिंग के दावे का कोई कानूनी आधार नहीं है. हालांकि, चीन के इन दावों की वजह से उसका ताइवान, वियतनाम और मलेशिया के साथ संघर्ष होता रहा है.
अविनाश द्विवेदी (एपी, एएफपी)