सऊदी अरब और यूएई आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर दुनिया में सबसे ज्यादा पैसा खर्च वाले देश बनते जा रहे हैं. वहीं दूसरी ओर, इन देशों में एआई के दुरुपयोग को लेकर चिंताएं भी बढ़ रही हैं.ChatGPT से डीडब्ल्यू पत्रकार ने जब सवाल किया कि क्या इससे मध्य पूर्व में दिक्कतें पैदा हो सकती हैं, तो उसका जवाब था, "सऊदी अरब में मानवाधिकार हनन संबंधी रिपोर्ट्स और चिंताई जताई गई हैं जिनमें डिजिटल तकनीक का उपयोग किया गया है.”
ChatGPT आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का लैंग्वेज मॉडल है जिसे नवंबर में शुरू किया गया है और तभी से यह दुनिया भर में सुर्खियां बटोर रहा है. लेकिन यही रोबोटिक असिस्टेंट आगे जवाब देता है, "यह जानना महत्वपूर्ण है कि ये रिपोर्ट्स और आरोप सिर्फ आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस तक ही सीमित नहीं हैं बल्कि इसमें डिजिटल तकनीकों की एक विस्तृत श्रृंखला और उसके संभावित दुरुपयोग भी शामिल हैं.”
सऊदी अरब ने हाल के कई मामलों में दूसरे देशों में रह रहे अपने विरोधियों और उनके परिवारों की जासूसी करने के लिए डिजिटल तकनीकों का इस्तेमाल किया है. साथ ही, सरकार के विरोधियों की पहचान के लिए फर्जी अकाउंट्स के जरिए ट्विटर में भी घुसपैठ की जा रही है.
इसीलिए ये चिंताएं जताई जा रही हैं कि सरकार एआई तकनीक के व्यापक इस्तेमाल के जरिए क्या कर सकती है. क्योंकि यह एक ऐसी तकनीक है जिसके इस्तेमाल को लेकर डिजिटल अधिकारों के लिए काम कर रहे लोग अक्सर सवाल उठाते रहते हैं.
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बर्लिन स्थित संगठन, अल्गोरिदम वॉच की पॉलिसी एंड एडवोकेसी हेड अंगेला मुलर कहती हैं, "तथाकथित एआई और उस पर आधारित तंत्र का इस्तेमाल पूरी दुनिया में बढ़ रहा है और ये लोगों की जांच करके और उसमें छेड़छाड़ करके उनके मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के नित नए तरीके खोज रहे हैं. निश्चित रूप से यह खतरा है कि एआई-आधारित तंत्र मौजूदा अन्याय को और बढ़ा देगा, खासकर तब जबकि ऐसे देश एआई के विकास को बढ़ा रहे हैं और उस पर अरबों डॉलर खर्च कर रहे हैं जहां मानवाधिकारों के संरक्षण और कानून के शासन का अभाव है.”
एआई पर सबसे ज्यादा खर्च करने वाले
हाल की मार्केट इंटेलिजेंस से पता चलता है कि यूएई, सऊदी अरब और कतर जैसे कुछ अमीर तेल उत्पादक खाड़ी देश अपने यहां एआई से संबंधित तकनीकों पर इतना खर्च कर रहे हैं जितना कई यूरोपियन देश नहीं कर रहे हैं.
एआई पर दुनिया भर में हो रहे खर्च पर इंटरनेशनल डाटा कॉर्पोरेशन की एक रिपोर्ट आई है जिसके मुताबिक, मध्य पूर्व के देश इस साल एआई पर पर तीन अरब डॉलर खर्च करेंगे जो साल 2026 तक बढ़कर 6.4 अरब डॉलर हो जाएगा. मार्केट रिसर्चर्स का कहना है कि निवेश में बढ़ोत्तरी जारी रहेगी. इस क्षेत्र में अगले तीन वर्षों तक इस तकनीक पर हर साल करीब 30 फीसदी की बढ़ोत्तरी का अनुमान है. रिपोर्ट का कहना है कि यह आने वाले दिनों में दुनिया भर में यह सबसे ज्यादा विकास दर है.
कैसे एक ऐप से पहलवानों की तस्वीर बदल दी गई
एआई एक बहुप्रचारित शब्द है जिसमें डिजिटल तकनीकों की एक विस्तृत श्रृंखला शामिल है. इसमें बड़े डिजिटल डाटा का तेजी से विश्लेषण करने से लेकर ‘जेनरेटिव एआई' तकनीक शामिल हैं. ChatGPT भी ‘जेनरेटिव एआई' का हिस्सा है जिसे एआई के सबसे रोमांचकारी विकास में से एक माना जा रहा है क्योंकि यह जानकारी के साथ अंतर्दृष्टि भी पैदा कर सकता है.
तकनीक के ऊपर एक कार्यक्रम में डॉयचे बैंक रिसर्च विश्लेषकों का कहना था, "इसे जितनी ज्यादा कंप्यूटिंग पॉवर, डाटा और उपयोगकर्ता मिलते हैं, यह उतना ही बेहतर प्रदर्शन करता है, कभी-कभी तो बिल्कुल अप्रत्याशित तरीके से. इसकी प्रतिभा को इस तरह से पहचाना जा सकता है कि यह डाटा के विश्लेषण, तस्वीरों और भाषण को पहचानने से लेकर दस्तावेजों में निहित संदर्भों को पहचानने और टेक्स्ट, फोटो और कोड उत्पन्न करने तक में सक्षम है. भविष्य में इससे भी ज्यादा आगे जाने की संभावना है. सबसे महत्वपूर्ण बात है कि यह ऐसा रास्ता तैयार करता है ताकि ये एक-दूसरे का पोषण कर सकें.”
खाड़ी देशों की पसंदीदा रणनीति
खाड़ी देश एआई तकनीक पर इतना इसलिए खर्च कर रहे हैं क्योंकि यह उनकी भविष्य की योजनाओं का महत्वपूर्ण हिस्सा है जिससे वे तेल से होने वाली आमदनी से हटकर भी अपनी अर्थव्यवस्था का विकास कर सकें.
यूएई इस इलाके का पहला देश था जिसने साल 2017 में राष्ट्रीय एआई रणनीति को अपनाया और यह दुनिया का ऐसा पहला देश बन गया जिसने आर्टिफिसियल इंटेलिजेंस के लिए एक मंत्री की नियुक्ति की. उसके बाद तो मिस्र, जॉर्डन, मोरक्को, कतर और सऊदी अरब जैसे कई देश यूएई के नक्शे कदम पर चलने लगे और ज्यादातर ने इस रणनीति को पिछले तीन साल में अपनाया है.
सऊदी अरब की चर्चा खासतौर पर की जानी चाहिए क्योंकि वह अपनी नियोम परियोजना में हर तरह के एआई का इस्तेमाल करने जा रहा है. नियोम उसकी भविष्य की शहर निर्माण योजना है. इन तकनीकों में निवेश के लिए उसके पास धन की कोई कमी नहीं है. इस परियोजना में सरकारी पैसे के अलावा सरकार नियंत्रित संप्रभु संपत्ति फंड के जरिए भी निवेश किया जा रहा है.
एआई को लेकर खाड़ी देशों में अलग-अलग धारणाएं हैं. IPSOS के 2022 के सर्वेक्षण में लोगों से एआई के बारे में अंतरराष्ट्रीय रुझान की जानकारी ली गईं. पूछा गया कि उपभोक्ता उत्पादों और सेवाओं में एआई के इस्तेमाल से फायदा ज्यादा होता है या नुकसान? इस मामले में सऊदी अरब के लोग काफी उत्साही दिखे और उनका कहना था कि इससे फायदा ज्यादा होता है. वहीं दूसरी ओर, जर्मन लोग इस बारे में काफी सतर्क दिखे और सिर्फ 37 फीसद का कहना था कि इससे ज्यादा फायदा होता है.
एआई का इस्तेमाल कैसे हो रहा है
खाड़ी देशों में इस समय एआई तकनीकों का उसी तरह इस्तेमाल हो रहा है जैसे दूसरे देशों में हो रहा है. मसलन, चैटबॉट्स के रूप में अथवा बिजली और पानी के लिए सरकारी सेवाओं को सुविधाजनक बनाने में, डिजिटल वित्तीय सेवाओं को बढ़ाने में, एमिरेट्स एयरलाइंस जैसी कंपनियों के परफॉर्मेंस का विश्लेषण करने में या फिर स्थानीय स्वास्थ्य सेवा संबंधी आंकड़ों को प्राप्त करने में इसका इस्तेमाल हो रहा है. मई में, यूएई ने ChatGPT के अपने संस्करण को जारी किया है.
निश्चित रूप से इनमें से कोई भी इस्तेमाल गलत नहीं है. लेकिन एआई को लेकर जो चिंताएं दुनिया भर में हैं, वही यहां भी लागू होती हैं.
डिजिटल राइट्स एक्टिविस्ट्स की चिंता इस बात को लेकर नहीं है कि रोबोट की तरह इस तरह की विज्ञान आधारित चीजें हमें खत्म कर सकती हैं, बल्कि उनकी चिंता डाटा सुरक्षा, सर्विलांस, कंटेंट फिल्टरिंग, प्रोपेगेंडा, एआई की सटीकता, विश्लेषण में पूर्वाग्रह और एआई आधारित तकनीकों को दोहरे इस्तेमाल को लेकर है.
उदाहरण के लिए, एआई-पॉवर्ड फेसियल रिकग्नीशन को नागरिक और सैन्य दोनों क्षेत्रों में इस्तेमाल किया जा सकता है. एक तरफ उसका इस्तेमाल फेसबुक में अपने मित्रों की तलाश में किया जा सकता है तो दूसरी ओर, किसी सरकार विरोधी प्रदर्शन के दौरान इसका इस्तेमाल प्रदर्शनकारियों की पहचान के लिए भी किया जा सकता है.
एआई के क्षेत्र में ज्यॉफ्री हिंटन एक बड़ा नाम हैं जिन्होंने हाल ही में गूगल की नौकरी छोड़कर दुनिया भर में सुर्खियां बटोरी थीं. न्यूयॉर्क टाइम्स से बातचीत में वो कहते हैं, "यह देखना बड़ा मुश्किल है कि आप गलत लोगों को एआई के गलत इस्तेमाल से कैसे रोक सकते हैं.”
गलत लोग और ऑटोक्रेट्स
एआई जब निरंकुश सरकारों के हाथ में चला जाता है तो क्या होता है, जैसे खाड़ी के उन देशों के पास जो इस पर बहुत पैसा खर्च कर रहे हैं. इन देशों में लोकतंत्र की एक झलक तो मिल सकती है लेकिन मुख्य रूप से यहां शाही परिवारों का ही शासन है और शाही परिवारों के ये लोग जरा भी असंतोष और राजनीतिक प्रतिरोध बर्दाश्त नहीं कर पाते हैं.
यूरोपियन ऑफिस ऑफ द सेंटर फॉर डेमोक्रेसी एंड टेक्नोलॉजी (सीडीटी) की डायरेक्टर इवर्ना मैकगावेन कहती हैं, "जिन देशों में शासक वर्ग पहले से ही मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और पत्रकारों को उनके अधिकारों का शांतिपूर्वक प्रयोग करने से रोक रहा है, वहां एआई का इस्तेमाल और ज्यादा विनाशकारी हो सकता है.”
मध्य पूर्व के देशों में एआई को लेकर बने कानूनों के विश्लेषण का सार बताता है कि इस इलाके में एआई पर कोई कानून नहीं है. यह शोध बहुराष्ट्रीय लीगल फर्म कोविंग्टन एंड बर्लिंग ने किया है. इनका कहना है कि यह बात कई अन्य न्यायालयों के लिए भी सही है. यह क्षेत्र काफी हद तक अनियमित है.
यूएई और सऊदी अरब दोनों ने ही एआई के इस्तेमाल को लेकर कुछ नैतिक दिशानिर्देश तय किए हैं. हालांकि, किसी भी देश के दिशानिर्देशों में कोई कानूनी बाध्यता नहीं है. इनमें सिर्फ सॉफ्टवेयर डेवलपर्स को क्या करना है और क्या नहीं करना है, की एक सूची भर दी गई है.
ऑस्ट्रेलिया में डिजिटल कल्चर पर शोध कर रहे ल्यूक मुन ने पिछले साल जर्नल एआई एंड एथिक्स में लिखा था, "एआई नैतिक सिद्धांत बेकार हैं. ये किसी भी सार्थक अर्थ में एआई तकनीकों के नस्लीय, सामाजिक और पर्यावरणीय नुकसान को कम करने में नाकाम हैं. इसका एक कारण नैतिक दिशानिर्देशों का समर्थन करने वाले किसी भी कानून का न होना भी है. यह उच्च विचारधारा वाले सिद्धांतों और तकनीकी प्रैक्टिस के बीच के अंतर का परिणाम है.”
सीडीटी डायरेक्टर मैकगोवेन भी इससे सहमत हैं. डीडब्ल्यू से बातचीत में वो कहती हैं, "इस तरह के व्यवस्थित दमन के संदर्भ में ये स्वैच्छिक उपाय दिखावे से ज्यादा कुछ नहीं हैं.”
अल्गोरिदम वॉच से जुड़े मुलर कहती हैं, "ये तंत्र लोगों के मौलिक अधिकारों के दमन के नए रास्ते खोलते हैं, लोगों को अभिव्यक्ति और खुद का बचाव करने से रोकते हैं. अस्पष्टता, संवेदनशील क्षेत्रों और इन संभावित प्रभावों का संयोजन उन जगहों पर समस्या खड़ी करता है जहां मानवाधिकारों और कानून के शासन का कोई विश्वसनीय संरक्षण नहीं है.”