श्रीलंका ब्लास्ट: कैथोलिक चर्च में हमले की जानकारी पहले ही दे दी थी भारत ने, लश्कर-ए-तैयबा की थी बड़ी साजिश
खुफिया रणनीति की कला में भारत का तंत्र बहुत अच्छा है. भारत की तरफ से श्रीलंका को दी गई खुफिया जानकारी से यह स्पष्ट हुआ है कि भारत इस तरह की विशेषज्ञता में शीर्ष पर है. यह अलग बात है कि श्रीलंका भारत द्वारा दी गई जानकारी का इस्तेमाल नहीं कर पाया...
खुफिया रणनीति की कला में भारत का तंत्र बहुत अच्छा है. भारत की तरफ से श्रीलंका को दी गई खुफिया जानकारी से यह स्पष्ट हुआ है कि भारत इस तरह की विशेषज्ञता में शीर्ष पर है. यह अलग बात है कि श्रीलंका भारत द्वारा दी गई जानकारी का इस्तेमाल नहीं कर पाया. भारत कुछ समय से नेशनल तौहीद जमात (एनटीजे) पर नजर रख रहा है. नई दिल्ली ने ईस्टर संडे को हुए आत्मघाती हमले से पहले के कुछ दिनों के दौरान बड़ी तत्परता से कार्रवाई योग्य जानकारियां श्रीलंका को मुहैया कराई थीं और यह भारत में गिरफ्तार एक आईएसआईएस संदिग्ध से पूछताछ के दौरान मिली थी.
श्रीलंका सरकार को भी एक चेतावनी मिली थी कि कैथोलिक चर्चो को निशाना बनाया जा सकता है. संदिग्ध ने भारतीय जांचकर्ताताओं को जहरान हाशमी का नाम बताया था. जिसने प्रशिक्षण लिया था और वह श्रीलंका के एक चरमपंथी समूह से जुड़ा हुआ था. जिसे इस हमले के लिए जिम्मेदार माना गया. जहरान हाशमी को उस एक वीडियो में पहचाना गया, जिसे आईएसआईएस ने जारी किया था. आईएसआईएस ने ही ईस्टर संडे के जनसंहार की जिम्मेदारी ली थी.
आईएएनएस ने श्रीलंका के एक नए आतंक केंद्र के रूप में उभरने के पीछे के कारण जानने के लिए कई शीर्ष खुफिया अधिकारियों और विशेषज्ञों से मुलाकात की. इस दौरान लश्कर की एक बहुत बड़ी और गहरी साजिश का खुलासा हुआ. जो पिछले कम से कम 14 वर्षो से चल रही थी, जिससे पता चलता है कि लश्कर-ए-तैयबा ने भारत को घेरने की रणनीति के तहत इन वर्षो के दौरान श्रीलंका, बांग्लादेश, मालदीव और यहां तक कि मलेशिया में भी कितना और किस तरह निवेश किया.
भारतीय खुफिया तंत्र इसके प्रति सतर्क रहा है और उसने श्रीलंका और अन्य पड़ोसी देशों से पनपते इस तरह के आतंकी खतरे से निपटने के लिए अपने सभी कौशल और जमीनी स्तर की जानकारियों का इस्तेमाल किया. यहां इस बात को स्थापित किए जाने की जरूरत है कि आईएसआई सी विंग और लश्कर जिहाद के मामले में सिक्के के दो पहलू हैं.
आईएसआई श्रीलंका में बेरोजगार मुस्लिम युवकों को कट्टरपंथी बनाने के लिए और उन्हें एनटीजे से जोड़ने के लिए इदारा खिदमत-ए-खलक (आईकेके) को एक औजार के रूप में इस्तेमाल करता रहा है. इसके समानांतर भारत ने तमिलनाडु और केरल में एनटीजे के सदस्यों की मजबूत उपस्थिति के कारण इन राज्यों में अपने सुरक्षा तंत्र को मजबूत किया है.
आईएसआई और एक खलीफा स्थापित करने की इसकी जहरीली विचार प्रक्रिया के उदय को श्रीलंका, बांग्लादेश और मालदीव में कुछ लोगों का समर्थन मिला. कम से कम 200-250 मालदीव के नागरिकों ने सीरिया जैसे संकटग्रस्त स्थानों पर आईएस के लिए लड़ाई लड़ी थी और यही लोग यमन गए. जहां उन्हें और प्रशिक्षण दिया गया तथा उसके बाद उन्हें कभी माली और कभी चाड में या फिर कभी इराक और सीरिया में आईएस के झंडे तले लड़ने के लिए भेजा गया.
टोक्यो स्थित एक ऑनलाइन पत्रिका 'द डिप्लोमेट' ने यह कहते हुए इस तथ्य को सत्यापित किया है कि पूर्व एफबीआई एजेंट से कॉन्ट्रैक्टर बने अली सौफान द्वारा संचालित एक निजी खुफिया एजेंसी, सौफान ग्रुप द्वारा दिसंबर 2015 में जारी एक रिपोर्ट में उन विदेशी लड़ाकों की संख्या दी गई है, जिन्होंने स्वेच्छा से सीरिया और इराक में इस्लामिक स्टेट के लिए लड़ा था. सूची में शामिल चार दक्षिण एशियाई देशों -मलेशिया, पाकिस्तान, भारत, और मालदीव ने उनमें से 293 लड़ाके भेजे हैं.
श्रीलंका हिंद महासागर का एक ऐसा देश है, जिसने अपने यहां सलाफिस्ट प्रवृत्ति की तरफ झुकाव रखने वाले कट्टरपंथी इस्लाम के उदय का मौका देकर विश्लेषकों मीडिया को अचरज में डाल दिया.
भारत श्रीलंका में इस्लामिक आतंकवाद पर नजर रखे हुए है, जो 2004 से इसके लिए एक उर्वर जमीन रही है. इस देश में इस्लामिक कट्टरवाद के उदय का मुख्य कारण हर जगह लश्कर-ए-तैयबा की उपस्थिति रही है. सियालकोट निवासी लश्कर के मुजामिल भट के नेतृत्व वाले एक विशेष समूह और उसके समर्थकों ने बांग्लादेश, मालदीव और श्रीलंका में 2005 और 2007 के बीच अपनी उपस्थिति दर्ज करानी शुरू की, ताकि भारत को घेरने और अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने में इस जमीन का इस्तेमाल किया जा सके.
मुजामिल भट 26/11 का एक साजिशकर्ता है और कथित रूप चिट्टीसिंघपोरा जनसंहार की साजिश भी उसी ने रची थी. एफबीआई ने अपने 26/11 के आरोपपत्र में भट का नाम डी के रूप में दर्ज किया था, जिसे लश्कर का एक प्रमुख सैन्य कमांडर कहा गया था. जो तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन के मार्च 2000 में भारत दौरे के पहले जम्मू एवं कश्मीर के चिट्टीसिंघपोरा जनसंहार में शामिल था.
एफबीआई ने शिकागो की एक अदालत में अपने दूसरे आरोपपत्र में एक आईएसआई अधिकारी, मेजर इकबाल और लश्कर के चार गुर्गो -साजिद मजीद, अबु काहफा, अबु अलकामा और अज्ञात लश्कर सदस्य 'डी' का जिक्र किया था. डी के बारे में आरोपपत्र में कहा गया था कि 26/11 के हमले के संबंध में पाकिस्तान में जकी-उर-रहमान लखवी की गिरफ्तारी के बाद वह लश्कर का संचालन कमांडर बन गया था.
एफबीआई के अनुसार अभी तक पाकिस्तान में गिरफ्तारी से दूर 'डी' डेविड कोलमैन हेडली का एक हैंडलर था. हेडली ने भारतीय जांचकर्ताओं से कहा था कि मुजामिल चिट्टीसिंघपोरा जनसंहार में शामिल था. हेडली ने यह भी कहा था कि मुजामिल लखवी का विश्वासपात्र लेफ्टिनेंट था और चिट्टीसिंघपोरा में सिखों की हत्या के अलावा उसने सितंबर 2002 में अक्षरधाम मंदिर हमले की साजिश रची थी.
भारतीय सुरक्षा महकमे के सूत्रों के अनुसार, मुजामिल कश्मीरी है और वह 1976 में पैदा हुआ था. वह शादीशुदा है और उसका परिवार पाकिस्तानी पंजाब के गुजरांवाला में रहता है.
भट एक साजिशकर्ता है और उसकी समझ यह थी कि भारतीय खुफिया और सुरक्षा बल उन दिनों दक्षिण भारत पर बराबर नजर रखे हुए थे. उसका मानना था कि विदेशों में प्रशिक्षण शिविरों में हिस्सा लेना एक बेहतर विचार होगा. सिमी दक्षिण भारत में पहले से सक्रिय था और उसने चार राज्यों में एक दक्षिण शाखा स्थापित कर ली थी जबकि भटकल एक नई धुरी बन गया था.
आतंक का केंद्र उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र से भारत के दक्षिणी हिस्से की ओर स्थानांतरित हो रहा था. इसलिए मुजामिल श्रीलंका पहुंचा और उसने तत्काल महसूस कर लिया कि सुनामी के बाद तमिल मुसलमानों में रुझान था. यही स्थिति बांग्लादेश में 2004-2008 के मध्य रोहिंग्याओं की थी.
लेकिन रॉ ने भट या उसके गुर्गो को वहां टिकने नहीं दिया, क्योंकि एजेंसी बांग्लादेश और श्रीलंका दोनों जगह अत्यंत सक्रिय थी.