बढ़ते मकान किराये ने जर्मनों से छीना सुख चैन
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

जर्मनी में घर की परेशानी से जूझ रहे लोग इस समय हर जगह मिल जाएंगे. मकान बदलने, खरीदने या फिर बनवाने और मरम्मत कराने के लिए लोगों को सालों तक इंतजार करना पड़ रहा है. उस पर भी यह तय नहीं कि मनचाहा आशियाना मिल ही जाएगा.जर्मनी में एक तो मकान किराया लगातार बढ़ रहा है दूसरी तरफ तमाम पैसे खर्च करके भी मनमाफिक घर नहीं मिल रहा. ना किराये पर घर है ना ना खरीदने के लिए. हालत यह है कि घर नहीं मिलने के कारण लोग ना सिर्फ हर दिन सैकड़ों किलोमीटर की यात्रा कर काम की जगह पर पहुंच रहे हैं, बल्कि कई युवा जोड़ों को तो साथ रहने की योजना भी टालनी पड़ रही है. आमतौर पर जर्मन लोग अपने मकान के बारे में नहीं सोचते और किराये के मकान में बड़े चैन से जीवन बिताते हैं, लेकिन बीते सालों में यह इतना आसान नहीं रह गया है.

10 साल में दोगुने से ज्यादा हुआ किराया

जर्मनी में कोई किराया बढ़ने से परेशान है तो कोई मकान नहीं खरीद पाने की समस्या से. बड़े शहरों के साथ ही यह दिक्कत अब छोटी जगहों तक भी पहुंचने लगी है. जर्मनी के प्रमुख शहरों में रहने की जगह महंगी होती जा रही है. ये हालत तब है जब कि किराए पर नियंत्रण के लिए उपाय किए गए हैं.

जर्मनी के लोग घर, गाड़ी के लिए पैसा नहीं बचाते

जर्मनी के आवास मंत्रालय ने विश्लेषण के बाद बताया है कि 14 सबसे बड़े शहरों में विज्ञापन के जरिए दिए जाने वाले घरों का किराया बीते 10 सालों में औसतन 50 फीसदी तक बढ़ गया है. सबसे ज्यादा किराया बर्लिन में बढ़ा है. आंकड़े दिखा रहे हैं कि यहां किराया अब 2015 की तुलना में दोगुना से ज्यादा हो गया है.

इमारत, शहरी मामले और जगह के विकास पर रिसर्च करने वाले संघीय संस्थान, बीबीएसआर ने इस बारे में आंकड़े जुटाए हैं. जो लोग घर की तलाश ऑनलाइन कर रहे हैं और उन्हें जो मकान मालिकों की तरफ से ऑफर दिए जा रहे हैं उनके आंकड़े देखे जा सकते हैं. विज्ञापन देने वाले ज्यादातर घर 40 से 100 वर्गमीटर जगह में बने फ्लैट हैं. हालांकि मंत्रालय ने सावधान किया है कि ये आंकड़े गलत हो सकते हैं क्योंकि इनमें सार्वजनिक जगहों पर बनने वाले घरों के लिए नोटिस, प्रतीक्षा सूची या सीधे दलाल से मोलभाव को शामिल नहीं किया गया है.

सबसे ज्यादा कहां बढ़ा किराया

म्यूनिख किराये के लिहाज से सबसे ज्यादा महंगा शहर बना हुआ है. यहां प्रति वर्ग मीटर किराया 22 यूरो तक पहुंच गया है. इसके बाद बर्लिन की बारीआती है जहां प्रति वर्ग मीटर किराया 18 यूरो पर पहुंच गया है. इसके बाद कारोबारी राजधानी कहा जाने वाला फ्रैंकफर्ट है जहां किराया 16 यूरोप प्रति वर्गमीटर है.

सबसे ज्यादा किराया बढ़ा है बर्लिन में, जहां 2015 के मुकाबले 107 फीसदी तक किराया बढ़ा है. इसके बाद बारी आती है लाइपजिष की जहां किराये में वृद्धि 67.7 फीसदी हुई है. ब्रेमेन में इन दोनों से थोड़ी कम वृद्धि हुई है लेकिन फिर भी यह करीब 57 फीसदी तक है. एक और प्रमुख शहर ड्रेसडेन में मकान का किराया 28.4 फीसदी तक बढ़ गया है. इसमें कुछ भूमिका महंगाई की भी है. महंगाई बढ़ने की वजह से मकान के रखरखाव का खर्च बढ़ रहा है और फिर जाहिर है कि किराया भी.

किराये पर नियंत्रण की कोशिश नाकाम

संसद में वामपंथी पार्टी द लिंके के सदस्य कारेन लाय ने संघीय सरकार से इस बारे में जानकारी मांगी थी. उन्होंने मौजूदा स्थिति की आलोचना की है. उनका यह भी कहना है कि किराये पर नियंत्रण के लिए किए गए उपाय नाकाम हो गए हैं. कारेन लाय का कहना है, "किराये में भारी बढ़ोत्तरी शहरी किरायेदारों का सारा पैसा खींच ले रही है, उनके लिए कहीं जाना असंभव हो गया है और यह हमारे समाज का विभाजन बढ़ाने में और योगदान दे रहा है."

लाय की दलील है कि किराये की जो सीमा तय की गई है उसमें कई कमियां हैं और इस वजह से किरायेदारों को बढ़ते किराये से कोई सुरक्षा नहीं मिल पा रही है. लाय ने चेतावनी दी है कि मौजूदा गठबंधन सरकार सिर्फ नियमों को बढ़ाने की योजना बना रही है लेकिन उसे सख्त करने का कोई उपाय नहीं कर रही है.

किराये की सीमा कैसे तय होती है

किराया पर नियंत्रण के कानून उन इलाकों में काम करते हैं जहां घरों का बाजार बड़ा है और साथ ही सख्त भी. जहां ये कानून लागू होते हैं वहां नई लीज में आमतौर पर मकानों का किराया स्थानीय बाजार की तुलना में 10 फीसदी से ज्यादा नहीं बढ़ सकता है.

हालांकि इसके कुछ अपवाद भी हैं. मसलन फर्नीचर के साथ मिलने वाले घरों में सरचार्ज बढ़ाया जा सकता है. इसी तरह से नई बनी इमारतों में जिन्हें 2014 के बाद पहली बार किराये पर चढ़ाया गया उन्हें भी मकान किराया कानून के दायरे से बाहर रखा गया है. जाहिर है कि किरायेदारों के सामने जो मकान के विकल्प हैं उनमें से बहुतों पर यह कानून लागू नहीं होता. मुश्किलें सिर्फ इतनी ही नहीं हैं. मकानमालिकों पर नजर रखने के लिए कोई सरकारी तंत्र नहीं है. नियमों का उल्लंघन होने पर किरायेदार को खुद ही इसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई के लिए पहल करनी होती है. हर कोई इस तरह के कानूनी जंजाल में फंसना नहीं चाहता.

मकान की किल्लत

बीते कुछ सालों से जर्मनी में मकान की किल्लत काफी ज्यादा बढ़ गई है खासतौर से शहरों में. आर्थिक गतिविधियों के शहरों में केंद्रित होने के कारण ज्यादा से ज्यादा लोग इसकी चपेट में आ रहे हैं. एक तरफ देश में शरणार्थियों की संख्या बढ़ी तो दूसरी तरफ कोरोना और यूक्रेन युद्ध जैसी मुश्किलों ने मकान बनने की रफ्तार धीमी कर दी. हालत यह है कि नए मकान बनाने तो छोड़िए घर में छोटी-मोटी टूट फूट और मरम्मत के लिए भी लोग नहीं मिल रहे हैं. मुश्किलें और भी हैं, घर खरीदने के लिए कर्ज पर ब्याज की रकम पांच साल पहले की तुलना में तिगुनी हो गई है. ऐसे में मकान खरीदना भी आसान नहीं रहा.

घर की मुश्किल छात्रों से लेकर परिवारों तक के लिए बड़ी समस्या बन गई है. खासतौर से युवा इसके कारण सबसे ज्यादा परेशान है. जर्मनी में अगर आप आमतौर पर एक ही घर में रह जाएं तो बड़ी आसानी होती है लेकिन यह हर किसी के लिए संभव नहीं है. नौकरी या पारिवारिक वजहों से लोगों को शहर या जगह बदलनी पड़ती है और तब उन्हें इस संकट से जूझने के सिवा कोई विकल्प नहीं बच रहा.